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…जब चुरा ली गई थी स्थानीय कवि किंकर की एक कविता




लाइव खगड़िया : किसी कवि की कविता ही उनकी दौलत होती है और अपनी रचनाओं से उन्हें बेहद ही लगाव व अपनापन होता है.हो भी क्यूं नहीं…आखिर किसी कवि की कविता में सिर्फ शब्द ही नहीं बल्कि उस कविता के साथ उसकी भावनाएं भी जुड़ी होती है.साथ ही उनकी मेहनत व लगन का तो कोई मोल ही नहीं होता.ऐसे में यदि किसी कवि की कविता चोरी हो जाये तो उनके दर्द को सहज ही समझा जा सकता है.

कुछ ऐसा ही हुआ है जिले के जाने-माने कवि सह कौशिकी के संपादक कैलाश झा किंकर के साथ.इस संदर्भ में उन्होंने अपना दर्द सोशल साइट पर व्यक्त करते हुए कहा कि नालंदा के डॉ.अंजनी कुमार सुमन के द्वारा उन्हें जानकारी मिली है कि उनकी ‘मास्टर’ शीर्षक की अंगिका कविता को किसी ‘भारतेन्दु विमल’ के द्वारा चोरी कर अपने नाम से प्रकाशित कर लिया गया है.वहीं उन्होंने अपनी फरियाद को पाठकों की अदालत में छोड़ते हुए अपनी कविता को भी शेयर किया है.

कवि कैलाश झा किंकर द्वारा रचित ‘मास्टर’ शीर्षक की मूल अंगिका कविता :

‘मास्टर’

मास्टर के’ मस्टरबा कहभी

ते’ बच्चा पढ़तो’ कहियो नै

ऐतो’ -जैतो’ इस्कूल लेकिन

आगू बढ़तो’ कहियो नै ।

 

उत्स ज्ञान के’ गुरुवे छथनी

गुरुवे से’ इंजोर छै

देखै नै छो’ दस बरस से’

केहन घटा घनघोर छै

 

रहलो’ इहे’ हाल अगर ते’

देश सुधरतो’ कहियो नै

 

वेतन जब से’ मिलै लगलै

गुरु चढ़ल छो’ ऐंख पर

जब विकास के’ सीढ़ी मिललै

चोट करै छो’ पैंख पर ।

 

नौकर जब तक बुझतें रहभो

ज्ञान मँजरतो’ कहियो नै ।

 

गुरू ते’ ब्रह्मा, विष्णु,शिव के’

धरती पर अवतार छथिन

गुरू ते’ भव सागर तड़वैया

माँझी के’ पतवार छथिन

 

मिलतै नै सम्मान गुरु के’

ते’ स्वर्ग उतरतो’ कहियो नै !



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