लाइव खगड़िया (मनीष कुमार मनीष) : भैया जी सोच रहे थे कि दिल्ली जाने का टिकटवा लूट लाएंगे तो पहुंच ही जाएंगे. किस्मत भी अच्छी थी. लूट लाये या खरीद कर यह तो कहना मुश्किल है. लेकिन हाथ लगी टिकट तो राजधानी एक्सप्रेस की ही. सोचा अब तो डायरेक्ट दिल्ली ही उतरना है. इस बीच खेला हो गया. दरअसल जहां उनका व्यापार था और जहां के वे रहने वाले थे, वहां से उन्हें टिकट मिला ही नहीं. वहां का सारा टिकट पहले से ही बुक्ड था और वेटिंग में रहना उन्हें पसंद नहीं. ऐसे में वे खगड़िया चले आये. लेकिन यहां आकर भैया जी को पता चला कि खगड़िया में तो राजधानी एक्सप्रेस रूकती ही नहीं. बावजूद इसके भैया जी हिम्मत नहीं हारे हैं और राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली जाने की जुगत लगा रहे. बहरहाल भैया जी खगड़िया में जनसहयोग से राजधानी पर चढ़ने की कवायद कर रहे हैं. लेकिन इधर उनकी परेशानी बढ़ गई है.
भैया जी के लिए खगड़िया का स्टेशन नया था और ऐसे में वे राजधानी पर चढ़ने के लिए कुछ खर्च कर यहां के कुछ लोगों को साथ लिया. उनसे खुद को दिल्ली भेजने का वादा कराया. उधर जब बंट ही रही थी तो भला लेने से इंकार कौन कर सकता था. सब ने अपने – अपने रूतबा के अनुसार लिया और लग गए भैया जी को दिल्ली पहुंचाने में मदद करने को. लेकिन इधर खबर फैल गई कि भैया जी खुब बांट रहे और जिन्हें मिला वो ही उनके साथ है. बस हो गया खेला शुरू. जिन्हें नहीं मिला वो खुलकर राजधानी को बायपास से निकलने की शोर मचाने लगे. अब हालात कुछ ऐसे बिगड़ गए है कि भैया जी को कुछ सूझ ही नहीं रहा और सहयात्री भी भागने लगे हैं, या यूं कहें कि बिदक से गए है.
दरअसल भैया जी बटुए के बल पर दिल्ली पहुंचने का शाटकट रास्ता अख्तियार कर खगड़िया तो पहुंच गए. लेकिन यहां का स्टेशन ही भूल-भुलैया वाला निकला. बहरहाल वे स्टेशन पर रूक कर राजधानी एक्सप्रेस के आने का इंतजार कर रहे हैं. दूसरी तरफ स्टेशन पर भैया जी के रहने से वहां के वैंडर मालामाल हो रहे. अब भैया जी दिल्ली जाएं या घर, उन्हें कोई फर्क पड़ने वाला नहीं. वैंडरों की तो चांदी हो ही चुकी है. इधर जो स्थिति उभर रही है वैसे में इतना तो कहा ही जा सकता है कि भैया जी को यदि घर भी लौटना पड़े तो वो कभी दिल्ली जाने के लिए राजधानी एक्सप्रेस पकड़ने खगड़िया नहीं आएंगे.
नोट : यह कंटेंट महज मनोरंजन के लिए है और इसका चुनाव व राजनीति से कोई वास्ता नहीं