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जब ताल से भटक जाते तबला वादक तो अशोक दिखाते मंजीरे से राह




लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : सुव्यवस्थित ध्वनी, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है. संगीत में गायन व वादन का समावेश होता है. संगीत एक प्रकार का योग ही है. जिसमें मन को एकाग्र करने की अत्यन्त प्रभावशाली शक्ति होती है. बात यदि शास्त्रीय संगीत की किया जाये तो इसमें ताल का बड़ी ही अहम भूमिका होती है. अमूमन ताल के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मंजीरा आदि का व्यवहार किया जाता है. मंजीरा (झाल) बजाकर संगीत में एक नई जान डाल देने वाले अशोक सिंह के बारे में भले ही आज बहुत कम लोग जानते हो, लेकिन जिन्होंने भी उनकी इस कला को देखा, वो उनके कायल हो जाते रहे हैं.. उनका एक अलग अंदाज भी उन्हें औरों से खास बनाता है. उनके बारे में अधिक कुछ जानें, उसके पहले आप भी अशोक सिंह के कला को एकबार जरूर देख लें.

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मंजीरा वादक 64 वर्षीय अशोक सिंह दरअसल जिले के परबत्ता प्रखंड के नयागांव सतखुट्टी के ही निवासी है. बताया जाता है कि उन्हें बचपन से ही मंजीरा बजाने में महारत हासिल है. जब वे दस मंजीरा के साथ अपने दोनों हाथों में सौ-सौ दाने वाले पैजनी के साथ ताल छेड़ते हैं तो श्रोता संगीत में खो जाते हैं. उसपर से उनकी निराली अदा तो संगीत की महफिल में चार चांद ही लगा जाता है.

मंजीरा वादक अशोक सिंह विभिन्न कार्यक्रमों में भजन सम्राट लखबीर सिंह लख्खा, गायिका कल्पना पतोवरी, देवी के गायन के साथ भी मंजीरा पर संगत दे चुके हैं. 6 वर्ष पूर्व वैशाली में आयोजित एक प्रतियोगिता में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि उनकी कला को अबतक वो कद्र नहीं मिल सका है, जिसका वो वास्तव में हकदार हैं. खेती पर निर्भर रहने वाले मंजीरा वादक को एक पुत्री एवं दो पुत्र हैं. बहरहाल वो विगत तीन वर्षो से आध्यात्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीयता एवं मानवता के उत्थान के लिए चल रहें श्री प्रेमानंद संकीर्तन पाक्षिक गोष्ठी परबत्ता से जुड़ कर मंजीरा वादन के माध्यम से संगीत के क्षेत्र में जुगलबंदी दे रहे हैं.




मंजीरा वादक अशोक सिंह बताते कि गांवों में तान छेड़ने वाले पारंपरिक वाद्य यंत्र आज भी विद्यमान है. लेकिन धीरे-धीरे गांवों में भी अब सुरीली तान की जगह मोडर्न गाने ने ले ली है. वो बताते है कि पहले सामूहिक रूप से चौपाल या अखाड़ा में बैठ कर लोग गीत गाते थे. लेकिन अब स्टूडियो में गाना रिकॉर्ड होकर बाजार के माध्यम से गांवों में पहुंचता है. जिस संगीत में श्रम आधारित संस्कृति वाली बात नहीं है.




मंजीरा वादक अशोक सिंह दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि इन दिनों लोकगायक व पारंपरिक वाद्यों को ताक पर रख कर ऑक्टोपैड, की-पैड, कांगो को अहमियत दी जा रही है और युवा भी गिटार, की-बोर्ड और ड्रम की तरफ ज्यादा मुखातिब हो रहे हैं. बॉलीवुड में तो बड़े-बड़े ऑर्केस्ट्रा समूहों की जगह कंप्यूटर, की-बोर्ड और सिंथेसाइजर जैसी मशीनों ने ले ली है. साथ ही अब गांव की पारंपरिक वाद्य यंत्र की भी पहले जैसी मांग नहीं रही है. वहीं वो संगीत साधना के बारे में चर्चा करते हुए बताते हैं कि लगातार 48 घंटे तक खड़े होकर रामधुन में पैजनी के साथ मंजीरा बजाने की बात ही अलग है.




बावजूद इसके अशोक सिंह को राज्य के कई जिलो में संगीत के बड़े कलाकारों के साथ जुगलबंदी करने का मौका मिल चुका है. लोक भजन कलाकार रविन्द्र झा, शंकर यादव, संगीत कलाकार राजीव सिंह, दुर्गा चरण, प्रतीक कुमार आदि भी अशोक सिंह के पैजनी के साथ मंजीरा वादन पर फिदा हैं. कहा जाता है कि जब कभी तवला वादक संगीत के दौरान ताल मिलाने में भटक जाते हैं तो मंजीरा वादक अशोक सिंह बड़ी ही खुबसूरती से अपने मंजीरे की ताल से तबला वादक को वापस जगह पर लौटा जाते हैं.



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