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हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता, सैल्यूट ‘यादव जी’

लाइव खगड़िया (मनीष कुमार मनीष) : वक्त के साथ हालात कैसे बदल जाते हैं, यह कोई इनके दर्द से महसूस कर सकता है. एक वह दौर भी रहा था जब जिलेवासियों को कोई पत्र-पत्रिका लेनी होती थी तो ‘यादव जी’ की याद आती थी और वे दौड़े खगड़िया स्टेशन परिसर स्थित उनके बुकस्टाल पर पहुंच जाते थे. इंटरनेट की दुनिया से दूर वो वह वक्त था, जब उनका धंधा चकाचक चलता था. लेकिन आज वेब क्रांति ने इस धंधे को इस हाल में पहुंचा दिया है कि दुकान का किराया भी घर से देना पड़ता है. लेकिन विगत 51 वर्षों से लोगों को सेवाएं देने वाले ‘यादव जी’ के जज्बे को सलाम करना ही होगा, जो आज भी एक बेहद ही विकट स्थिति में अपने व्यवसाय से ना सिर्फ जुड़े हुए हैं बल्कि उसी लगन से लोगों को सेवाएं मुहैया करा रहे है.




दरअसल किसी जमाने में चर्चित रहे ‘यादव जी’ का पुरा नाम शत्रुघ्न प्रसाद यादव है और वे मूल रूप से जिले के मानसी के रहने वाले है. वर्ष 1971 में उन्होंने खगड़िया रेलवे स्टेशन पर पत्र-पत्रिका व दैनिक अखबार का स्टाल खोला और फिर यहीं के रह गए. आज भी मानसी से सुबह-सबेरे खगड़िया स्थित अपनी दुकान पर पहुंच जाना और फिर देर शाम अपने घर मानसी जाना उनकी दिनचर्या में शामिल है. उम्र के एक पड़ाव पर पहुंकर विकट परिस्थियों से वे जूझ रहे हैं. स्थितियां आज जैसी भी हो, लेकिन ‘यादव जी’ को बुकस्टाल ने बहुत कुछ दिया है. इसी व्यवसाय से उन्होंने अपना घर-द्वार बनाया और कई कट्ठा जमीन के मालिक बने. साथ ही अपने बच्चे को पढ़ाया, जो आज इंजिनीयर हैं.

‘यादव जी’ बताते हैं कि अब दिनभर का धंधा महज 100-150 रूपये का रह गया है. जो कभी 1500-2000 रूपये प्रतिदिन का हुआ करता था. एक वो दौर भी रहा था जब न्यूज मैगजीन सहित फिल्मी दुनिया पर आधारित पत्रिकाओं के साथ उपन्यास की मांग जबरदस्त रहा करती थी. उस वक्त दैनिक अखबार भी 300-400 प्रति प्रतिदिन तक हाथों-हाथ बिक जाती थी. लेकिन आज इंटरनेट मोबाइल ने स्थितियां बदल दी है और पत्र-पत्रिका सहित दैनिक अखबारों की सेल में भारी गिरावट आई है. निश्चय ही इसमें पत्रिका व अखबारों के डिजिटल संस्करणों ने भी प्रभाव डाला है. लेकिन मीडिया जगत व पाठकों को 51 वर्षों से अपनी सेवाएं देते आ रहे ‘यादव जी’ के जज्बा व जुनून आज भी कम नहीं हुआ है. भले ही स्थितियां बदल गई हो, लेकिन उन्होंने अपने स्वभाव व व्यवहार को बदलने नहीं दिया है.

हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता

टूटे भी जो तारा तो ज़मीं पर नहीं गिरता




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