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सदय कुमार

…और अपनी पहली खबर के साथ ही सदय को होना पड़ा था अपमानित




खगड़िया : जिले की पत्रकारिता जगत में वर्ष 2002 में कदम रखने वाले पत्रकार सदय कुमार का पत्रकारिता की दुनियां में प्रवेश का अनुभव अच्छा नहीं रहा था. वो पीड़ितों को न्याय दिलाने के साथ-साथ भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कलम को अपना हथियार बनाने की सोच के साथ मीडिया जगत में आये.उनके जुनून का एक रोचक कहानी यह भी रहा था कि छात्र जीवन में जब उन्हें इंटर की परीक्षा में “अपने जीवन का लक्ष्य” के संबंध में पश्न पूछा गया तो उन्होंने अपने उत्तर में पत्रकार बनकर समाज की सेवा करने पर ही निबंध लिख डाला था.लेकिन पत्रकारिता जगत के सेवा-भाव के कुछ स्याह तस्वीरों से वो उस वक्त रू-ब-रू हुए जब वे एक मीडिया घराने के स्थानीय कार्यालय पहली बार पहुंचे.उस समय परबत्ता में फैक्स नहीं होने के कारण खबर के साथ कार्यालय पहुंचने पर उन्हें अपमानित होना पड़ा था.वजह रही है थी मीडिया के क्षेत्र में उस वक्त के स्थापित पत्रकारों द्वारा नवागंतुकों पर अपना दबदबा दिखाने का.हलांकि इस हालत में भी वो अपनी जुनून की वजह से अपने आप को उस मीडिया हाउस से लगभग एक वर्ष तक जोड़े रहे.लेकिन अंतत: वर्ष 2004 में वो उन्हें अलविदा कहकर तत्कालीन ब्यूरो चीफ आशीष कुमाार की पहल पर प्रभात खबर से अपनी नई पारी शुरू किया.उनका यह सफर वर्ष 2017 के अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक जारी रहा.इस दौरान उन्होंने तीन ब्यूरो चीफ को बदलते हुए भी देखे और पटना से प्रकाशित होने वाला अखबार भागलपुर से प्रकाशित होने लगा.वहीं उनके कार्यकाल के दौरान परबत्ता में मात्र दो प्रति बिकने वाला अखबार 1 हजार 2 सौ प्रतियों के साथ उनकी ईमानदारी व मेहनत को भी दर्शाता रहा.लेकिन कुछ मुद्दे पर मतांतर होने के बाद उन्होंने इस अखबार को भी राम-सलाम कह दी.इस बीच उनकी कलम कुछ दिनों तक खामोश रही.जिसके बाद वर्ष 2017 के अंतिम माह में दैनिक भाष्कर का खगड़िया में उदय के साथ उन्होंने अपने आप को इस क्षेत्र से पुन: जोड़ लिया और उनकी यह यात्रा जारी है…

सदय कुमार



सदय कुमार के करीब 16 वर्षों के पत्रकारिता जीवन की उपलब्धियों पर यदि नजर डाली जाये तो काफी कुछ उनके खजाने में है.बात चाहे परबत्ता में फर्जी प्रमाणपत्र पर बहाल एक दर्जन नियोजित शिक्षकों को हटाने के लिये उनकी कलम के अभियान का हो या फिर अनुसूचित जाति टोला के 108 अनुसूचित परिवारों को मिले पर्चा की जमीन पर दखल दिलाने का अभियान हो.मामला चाहे पदाधिकारियों की मनमानी व उनके भ्रष्टाचार का हो या फिर मोटरसाइकिल पर ढोये गये सिमेंट,गिट्टी-बालू की बात हो.उन्होंने अपनी कलम के माध्यम से इस मुद्दे पर आवाज को बुलंद करते रहे.उनकी एक खबर ‘मेंहदी लगे हाथों में पंचायत की बागडोर’ की वजह से एक पंचायत की मुखिया को अपना पद छोड़ना पड़ा था.हलांकि सेवानिवृत्ति के ढाई वर्षों बाद तक विद्यालय संचालित कर वेतन उठा रहे एक शिक्षक के मामले को उठाने के बावजूद कार्रवाई नहीं होने की कसक आज भी उनके दिल में है.

सदय कुमार



खबर संकलन व लेखन में वो काफी सतर्कता बरतने की कोशिश करते रहे हैं.लेकिन अबतक के पत्रकारिता जीवन में कुछ मामलों में उनकी सतर्कता नाकाफी भी साबित हुई है.जिसमें विगत लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बिना अपने स्तर से पुष्टि किये एक नेता के मोबाईल पर परबत्ता थानाध्यक्ष के खिलाफ दिए गये बयान को प्रकाशित करना जैसी भूल भी शामिल है.


जिले की पत्रकारिता जगत पर  पूछे गये एक सवाल पर उन्होंने बताया कि यहां काफी सारे बहुत ही अच्छे पत्रकार हैं और उनकी लेखनी व उनके विचार भी अच्छे हैं.अधिकांश अच्छे लक्ष्य के साथ पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धान्तों का पालन भी करते रहे हैं.लेकिन कुछ अपवाद तो हर क्षेत्र में है.

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