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तथाकथित कलमकारों के नाचते शब्दों से पनाह मांगती पत्रकारिता

लाइव खगड़िया : अमूमन ‘लाइव खगड़िया’ किसी भी मीडिया या फिर तथाकथित मीडिया के खबर की आलोचना नहीं करता है और हम अपनी इस परंपरा को आगे भी यूं ही कायम रखेंगे. लेकिन बात जब तथाकथित कलमकारों के द्वारा ‘लाइव खगड़िया’ की किसी खबर को भ्रामक बताने और सच को झूठ साबित करने जैसी कोशिश की हो तो इसका पोस्टमार्टम करना भी जरूरी हो जाता है. बीते दिनों ‘लाइव खगड़िया’ से मिलते – जुलते नाम से डोमेन लेकर पाठकों के बीच भ्रम फैलाने संबंधित एक खबर प्रकाशित की गई थी. उल्लेखनीय है कि उस पूरी खबर में कहीं भी ‘लाइव खगड़िया’ की लोकप्रियता का हवाला ही नहीं दिया गया था. बावजूद इसके तथाकथित समझदार ‘चर्चित’ को ‘लोकप्रिय’ समझ बैठे और इसी को आधार बना बहुत कुछ लिख डाला. इतना ही नहीं लोगों को भरमाने के लिए फेसबुक पर उस खबर के लिंक पर आई कुछ टिप्पणियों का भी हवाला दिया गया. लेकिन सच्चाई यह है कि ‘लाइव खगड़िया’ या फिर ‘मनीष कुमार’ के पोस्ट पर किसी फेसबुक यूजर का इस तरह की कोई टिप्पणी आई ही नहीं थी.

इस बीच मंगलवार की सुबह ऐसे ही तथाकथित कलमकारों के द्वारा वाट्सएप पर किसी अखबार की कटिंग शेयर की गई और आरोप लगाया गया कि एक शिक्षक को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.

लेकिन सच्चाई यह कि ‘लाइव खगड़िया’ से मिलते-जुलते डोमेन को उस शिक्षक के आईडी से ही लिया गया था और इस बात की गवाही उस डोमेन का डिटेल दे रहा है. ऐसे में उनकी मंशा पर सवाल था और वो आज भी कायम है.

दूसरी तरफ शेयर की गई कटिंग किसी अखबार का है या फिर कुछ और…यह तो संबंधित ही जानें. वैसे कई स्तरों से गुजर प्रिंट में जाने वाले अखबारों में इस तरह की बड़ी भूल की संभावना बहुत ही कम रहती है. लेकिन इस तथाकथित खबर में शीर्षक से लेकर पूरी खबर की अशुद्धियां दंभ भरने वाले तथाकथित कलमकारों के लिए किसी आईने से कम नहीं. आरोप अपनी जगह है और इसकी सच्चाई भी अपनी जगह, लेकिन दो शब्दों के शीर्षक में से पहले शब्द की अशुद्धि ही ऐसे तथाकथित अखबार की विश्वसनीयता और तथाकथित कलमकारों की योग्यता को साबित करने के लिए काफी है.

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