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फाइलों में चमकते हुए खगड़िया का है एक कृष्ण पक्ष भी

लाइव खगड़िया (आज़ाद राजीव) : निश्चय ही विचार नकारात्मक नहीं होना चाहिए और ना भाव ही. लेकिन जब संग चार दशक के एक लंबे सफर का हो तो चिंतन भी जरूरी ही है. वैसे भी 41 साल का समय कम नहीं होता. लेकिन जिले की आत्मा माना जाने वाले मुख्यालय आज भी अच्छी सड़कों के लिए तरस रहा है. बखरी बस स्टैंड से राजेन्द्र चौक की सड़क हो या फिर बायपास मार्ग, दोनों ही उम्मीदों को तोड़ने वाली सड़क बन गई है. हाल तो नाले का भी बुरा है. शहर के मालगोदाम रोड की 2 -2 फीट चौड़े नाले किसी हादसे के इंतजार में मुंह खोले खड़ा है. शहर के हृदय स्थल राजेन्द्र चौक से बखरी बस स्टेंड तक की जाम जैसे आम समस्या बन चुकी है.

खगड़िया के पड़ोसी जिले के दो-दो रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास का दर्जा मिल चुका हैं और एक दर्जन से ज्यादा ट्रेनें खगड़िया रेलवे स्टेशन को मुंह चिढ़ा कर फड़फड़ाते हुए निकल जा रही हैं. बेहतर राजस्व देने के बाद भी आज भी कई महत्वपूर्ण ट्रेनों का खगड़िया जंक्शन पर ठहराव सुनिश्चित नहीं हो सका है.

वर्षों बाद भी खगड़िया जिला का गौरव गौशाला मेला को भी उचित स्थान नहीं मिल पाया है और ना ही कात्यायनी स्थान को ही उसका सम्मान. आज भी फरकिया के कई इलाके ऐसा है जो खुद को मुख्यधारा से कटा हुए महसूस करते हैं. ना तो यहां की मछलियां आंध्रा की मछलियों के सामने टिक पा रही हैं और ना ही यहां की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भी अन्यत्र जिलों के सामानांतर खड़ा हो पाया है. रोजगार का अभाव में जिले के लोगों को आज भी पलायन को मजबूर होना पड़ता है. शिक्षण संस्थानों में संसाधनों की कमी आज भी है. खेल के क्षेत्र में प्रदेश को कई प्रतिभा देने वाले जिले के खिलाड़ियों को आधुनिक स्टेडियम नहीं मिला और ही ना यात्रियों की सुविधा के ख्याल से बस पड़ाव बेहतर ही बनाया जा सका.

जमीन का अतिक्रमण भी खगड़िया की एक बड़ी समस्या है और दानवीरों की जमीन का दुरुपयोग जिले के लिए दुर्भाग्य जैसा ही है. आज भी जिला एक अच्छे पार्क का सपना ही देख रही है और मेडिकल कॉलेज के बारे में सोचा ही जा रहा है. माना जा सकता है कि फाइलों में चमकते हुए खगड़िया का अपना एक कृष्ण पक्ष भी है. बावजूद इसके उम्मीद से भरे यहां के लोग हैं और अथाह पानी व तेज आंधी में भी उम्मीदों की नाव को मंजिल तक पहुंचाने का हौसला रखते हैं. बेतरतीब फैली सुखी रेत से जीवन को संवारा जानते हैं. उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में देश के मानचित्र पर जिले के लागों के उम्मीदों का खगड़िया निखर कर समाने आयेगा.

10 मई 1981 को खगड़िया को मिला था जिला का दर्जा

10 मई 1981 को कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग, बिहार सरकार की अधिसूचना संख्या 7/टी.-1-207/79 के द्वारा खगड़िया को एक जिला घोषित किया गया था. खगड़िया इसके पूर्व तक मुंगेर जिला का हिस्सा था. एक जिले के रूप में स्थापना के बाद जिले के प्रथम डीएम के तौर पर रामाशंकर तिवारी ने पदभार ग्रहण किया था और समाहरणालय भवन के रूप में वर्तमान अनुमंडल कार्यालय का उपयोग होता था. इसके उपरांत 4 जून 1988 को वर्तमान समाहरणालय भवन का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के द्वारा किया गया था. जबकि आरक्षी अधीक्षक के रूप में प्रदीप कुमार शर्मा ने 10 मई 1981 को पदभार ग्रहण किया था. जिले में बूढ़ी गंडक के किनारे अवस्थित अघोड़ी स्थान, कोसी-बागमती के किनारे धमहारा घाट के निकट मां कात्यायनी स्थान व सन्हौली दुर्गा मंदिर का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व है. जबकि मुगलकाल की पुरानी हवेली भरतखंड स्थित ’52 कोठरी 53 द्वार’ का अपना ऐतिहासिक महत्व है. जिले के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन है. यहां मुख्य रूप से मक्का, धान और गेहूं की खेती होती है. जिले में खेती योग्य एक लाख चार हजार हेक्टेयर भूमि है.

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