स्नातक पास इस मूर्तिकार की एक सीजन में कमाई है एक लाख
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : कला संस्कृति की वाहिका है और वास्तव में धर्म ही भारतीय कला का प्राण है.भारतीय कला धार्मिक एवं आध्यात्मिक भावनाओं से सदा अनुप्राणित रही है.जिसका इतिहास अत्यंत प्राचीन रहा है.इस क्रम में मानव गुफाओं की दीवारों में चित्रकारी सहित मूर्तियां बनाने की कला प्रागतिहासिक काल से ही चला आ रहा है.जिले के विभिन्न क्षेत्रों में इन दिनो मां सरस्वती की प्रतिमा तैयार करने में मूर्तिकार दिन-रात लगे हुए है.
ऐसे ही कुछ मूर्तिकारों में एक जिले के परबत्ता प्रखंड के तेमथा करारी पंचायत अंतर्गत रहीमपुर मोड़ स्थित तेमथा करारी निवासी 55 वर्षीय रविन्द्र पंडित का नाम भी आता है.रविन्द्र पंडित ने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की है और 25 वर्षो से मूर्ति बनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते आ रहे हैं.वसंत पंचमी का कुछ दिन ही शेष बचा हुआ है और वे मां सरस्वती की प्रतिमा निर्माण कार्य में व्यस्त हैं.उनके द्वारा निर्माणाधीन हर प्रतिमा लगभग बुक हो चुकी है.
वहीं रविन्द्र पंडित बताते हैं कि हर वर्ष दीपावली खत्म होते ही मां सरस्वती की प्रतिमा निर्माण की तैयारियां शुरू कर देते हैं.इस वर्ष एक सौ से अधिक मां सरस्वती की प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है और एक हजार पांच सौ से लेकर चार हजार पांच सौ रुपये तक की प्रतिमा का निर्माण कार्य अंतिम दौर में है.उनके इस कार्य में परिवार के सभी सदस्य हाथ बंटाते है.
बताया जाता है कि प्रतिमा का साज व रंग कोलकाता के बाजारों से लाया जाता है.जबकि एक सीजन में लगभग एक लाख रूपये मुनाफे की बात बताई जाती है.मिट्टी की मुर्ति निर्माण में सीमेंट, प्लास्ट ऑफ पेरिस का भी उपयोग होता है.रविन्द्र पंडित के पुत्र एवं पुत्री भी पढ़ाई के साथ-साथ अपने पिता के कार्यो में हाथ बंटाते हैं.
रविन्द्र पंडित का मूर्ति निर्माण की कला सीखने की कहानी भी दिलचस्प है.बताया जाता है कि उन्होंने खेल ही खेल में अपनी कला को एक नये मुकाम तक पहुंचाया है.सर्वप्रथम उन्होंने यूं ही एक मूर्ति का निर्माण शौकिया तौर पर किया.जिसे लोगों के द्वारा काफी पसंद किया गया और फिर तो वे इसी कार्य में रम गये.अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने अपनी हुनर को एक नई पहचान दी और आज वे हर साल करीब सौ से अधिक मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं.हलांकि मूर्ति निर्माण कला क्षेत्र में एक मुकाम तक पहुंचने में वे मां सरस्वती की कृपा भी मानते हैं.साथ ही वे अन्य लोगों को भी मूर्ति बनाने की कला सीखा रहे हैं.बताया जाता है वे अबतक करीब आधे दर्जन सगे-संबंधियों को यह कला सीखा चुके हैं.