बचपन की दिवाली : अब घरों के आंगन में नहीं दिखता ‘मिट्टी का घरौंदा’
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : “सभी मिट्टी के घरौंदे टूट गए,हाथों से हाथ जब छूट गए”.भारतीय संस्कृति का हर पर्व अपना विशेष महत्व रखता है और जब बात रोशनी का पर्व दीपावली की हो तो बहुत कुछ खास नजर आता है.ऐसे ही कुछ खास चीजों में एक ‘मिट्टी का घरौंदा’ भी है.दीपावली में घरौंदे बनाने की परंपरा सदियों पुरानी रही है.
हलांकि यह परंपरा अब धीरे’धीरे विलुप्त हो रहा है.लेकिन इक्का-दुक्का ही सही आज भी गांव में भारतीय संस्कृति की पुरानी परंपरा नजर आ ही जाता है और घरौंदा बनाने के कार्य को अंतिम रूप दिया जा रहा है.एक समय था जब घर-घर में मिट्टी के घरौंदे बनाए जाते थे.लेकिन बदलती जीवन शैली में घरौंदे का निर्माण लकड़ी,कागज के गत्ते,थर्मोकोल से किया जाने लगा है.धरौंदा ‘घर’ शब्द से बना है जो आमतौर पर दीपावली के अवसर पर अविवाहित लड़कियों द्वारा बनायी जाती है.
घरौंदे से जुड़ी पौराणिक कथा
भगवान श्रीराम चौदह साल के वनवास के बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे थे.तब उनके आगमन की खुशी में नगरवासियों ने घरों में घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था.उसी दिन से दीपावली मनाए जाने की मान्यता रही है.कहा जाता है कि अयोध्यावासियों का मानना था कि भगवान श्रीराम के आगमन से ही उनकी नगरी फिर वसी है.इसी को देखते हुए लोगों द्वारा घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन आरंभ हुआ.
सुख-समृद्धि का प्रतीक है घरौंदा
दुर्गा पूजा के कुछ दिनों के बाद से ही अविवाहित लड़कियां अपने आंगन या छत पर घरौंदे बनाना प्रारंभ कर देती थी.इस क्रम में एक से लेकर पांच महल का घरौंदे बनाया जाता था.साथ ही बच्चों के बीच होड़ लगी रहती थी कि किसका घरौंदा ज्यादा सुन्दर व आकर्षक बना है.लेकिन धीरे-धीरे मिट्टी की घरौंदा बनाने की परंपरा मिट्टी में समाती चली जा रही है.एक वो वक्त था जब घरौंदा को सजाने के लिए लड़कियां दीपावली के दिन दीपक एवं रंग-बिरंगे मिठाईयां लाती थी और घरौंदे में भगवान गणेश एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा’अर्चना की जाती थी.घरौंदे पर छठ पूजा तक दीपक जलाने की परंपरा थी.एेसी मान्यता रही है कि भविष्य में जब वे दांपत्य जीवन में जाएगी तो उनका संसार भी सुख-समृद्धि से भरा रहेगा.
आंगन की शान थी घरौंदाग्रामीण इलाके में मिट्टी द्वारा निर्मित घरौंदा की एक अलग पहचान थी.पहले शहरी क्षेत्रों में भी दीपावली के मौके पर इसे बनाया जाता था.लेकिन अब तो गांव में भी इक्का-दुक्का बड़ी मुश्किल से दिखाई देता है.बावजूद इसके आज भी सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में घरौंदा की अलग पहचान है.मिट्टी की चहारदीवारीनुमा घरौंदा दीपावली में आंगन की शान माना जाता है.