
चुनावी मौसम में याद आ रहा नीति व सिद्धांत, व्यक्तिगत स्वार्थ या फिर कुछ और…!
लाइव खगड़िया (मनीष कुमार मनीष) : वैसे तो आज की राजनीतिक दौर में नीति व सिद्धांत की बातें करना ही बेईमानी है और संगठन के शीर्ष नेतृत्व के फैसले का सम्मान करना अनुशासन. लेकिन चुनावी दौर में जिले के विभिन्न संगठनों के नेता नीति व सिद्धांत की बातें कह रहे तो इसे व्यक्तिगत स्वार्थ कहें या कुछ और… दूसरी और मामले को लेकर सवाल उठना भी लाजिमी है. वैसे भी सवाल तो उस वक्त ही उठना चाहिए जब कल तक एक-दूसरे के विरोधी रहे दल का शीर्ष नेतृत्व एक मंच पर आने का फैसला कर रहे थे. आंख तो उस वक्त ही ततेरी जानी चाहिए थी जब संगठन के शीर्ष नेतृत्व स्तरीय नेता आपस में गले मिल रहे थे. स्थानीय कार्यकर्ता व नेताओं में आक्रोश तो गठबंधन में शामिल होने के फैसले के वक्त ही पनपना चाहिए. नीति व सिद्धांत की दुहाई देकर और अतीत के राजनीतिक विरोध की बातें कह कर ऐसे स्थानीय नेताओं को तो अपना व्यक्तिगत राजनीतिक फैसला उस वक्त ही ले लेना चाहिए था, जब चुनाव की घोषणा के पूर्व ही किसी खास गठबंधन के साथ चलने की कवायद शुरू हुई थी. लेकिन उस वक्त चुप्पी दिखी और आज मामले को एक नया मोड़ देने की कवायद की जा रही है. मामला एनडीए के घटक दल के कुछ स्थानीय नेताओं से जुड़ा है, जो आज एनडीए समर्थित लोजपा (रा) प्रत्याशी राजेश वर्मा का विरोध कर रहे है.
दरअसल विगत विधानसभा चुनाव में लोजपा ने विभिन्न सीटों पर एनडीए समर्थित जदयू उम्मीदवार से इतर अपना उम्मीदवार भी मैदान में उतारा था. बताया जा रहा है कि लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान के इस फैसले ने उस वक्त के चुनाव में जदयू को नुक़सान पहुंचाया था. यदि इस बात में थोड़ी भी सच्चाई है तो इसे सीएम नीतीश कुमार सहित जदयू के शीर्ष नेतृत्व भी अच्छी तरह से समझ रहे होंगे. बावजूद इसके आज की तारीख में चिराग पासवान व नीतीश कुमार राजनीतिक रूप से एक मंच पर हैं तो दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को दल के शीर्ष नेतृत्व के फैसले का कम से कम अनुशासनिक तौर पर सम्मान करना चाहिए था या फिर उन्हें संगठन से अपनी राहें जुदा कर लेना. लेकिन स्थिति यह है कि जदयू के कुछ स्थानीय नेता ना सिर्फ जदयू समर्थित लोजपा (रा) प्रत्याशी का विरोध कर रहे बल्कि जदयू के परंपरागत वोट बैंक पर भी दावा जता रहे. बहरहाल देखना दीगर होगा कि वोटर सीएम नीतीश कुमार सहित जदयू के शीर्ष नेतृत्व की बातों पर एतबार करते हैं या फिर संगठन से खुद को बड़ा समझने वाले ऐसे नेता की बातों पर. लेकिन इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी संगठन से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं हो सकता और हर क्षेत्र में अनुशासन भी बहुत ही जरूरी है.