LJP (R) : भागलपुर के राजनीतिक खिलाड़ी खगड़िया के चुनावी मैदान में, स्थानीय बाउंड्री के बाहर
लाइव खगड़िया (मनीष कुमार मनीष) : एनडीए के घटक दलों के बीच खगड़िया संसदीय सीट एक बार फिर चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रा) के हिस्से में आई थी और शनिवार को इस सीट से पार्टी प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर दी गई है. लोजपा (रा) ने खगड़िया संसदीय सीट से राजेश वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है. राजेश वर्मा भागलपुर के रहने वाले हैं और भागलपुर ही उनकी राजनीति कर्मभूमि भी रही है. जिसके साथ ही खगड़िया में चर्चाओं का बाजार गर्म हो चुका है. इधर टिकट की रेस में शामिल स्थानीय नेताओं को मायूसी हाथ लगी है.
दरअसल लोजपा के संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान काल से ही उम्मीदवार चयन के मामले में पार्टी चर्चाओं में रही है और कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि उनके पुत्र चिराग पासवान ने भी उस परंपरा को क़ायम रखा है. टिकट को लेकर चल रही तमाम चर्चाओं और स्थानीय संभावित उम्मीदवारों के दावों को धत्ता बताते हुए चिराग पासवान की नज़र भागलपुर गई और वहां के राजेश वर्मा को खगड़िया संसदीय सीट की टिकट सौंप दी. राजेश वर्मा भागलपुर के बड़े व्यापारी हैं. वे लोजपा की टिकट पर ही 2020 में भागलपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ चुके है. हलांकि इस चुनाव में वे तीसरे नंबर पर रहे थे. दूसरी ओर लोजपा के स्थानीय सांसद चौधरी महबूब अली केसर, लोजपा (रा) के जिलाध्यक्ष शिवराज यादव, पूर्व सांसद रेणु कुशवाहा सहित जिले के कई अन्य चर्चित नाम टिकट की बाट जोहते रह गए और पार्टी सुप्रीमो चिराग पासवान ने पार्टी कार्यकर्ताओं सहित संसदीय क्षेत्र वासियों को चौंका दिया. यह अलग बात है कि लोजपा (रा) उम्मीदवार के नाम की घोषणा के बाद सोशल साइट्स के माध्यम से सामने आ रही टिप्पणियां पार्टी सुप्रीमो के उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर कई सवाल खड़ा कर रहा है.
चिराग ने नहीं रखा स्थानीय कार्यकर्ताओं के भावनाओं का ख्याल
वर्ष 2021 में लोजपा में टूट के बाद चिराग पासवान के नेतृत्व में लोजपा (रा) अस्तित्व में आया और जिले में लोजपा (रा) का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी शिवराज यादव को मिली. वे पार्टी के जिलाध्यक्ष बनाये गए. जिसके बाद जिले में संगठन का विस्तार एवं पार्टी की गतिविधियों को लेकर वे लगातार प्रयास करते रहे. गौरतलब है कि शिवराज यादव भी टिकट की रेस में शामिल थे. लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने खगड़िया के पूर्व सांसद सह पार्टी नेत्री रेणु कुशवाहा सहित शिवराज यादव की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया और गेंद भागलपुर के राजनीतिक मैदान में जा गिरा. जिससे लोजपा (रा) सहित एनडीए के घटक दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच आक्रोश भी देखा जा रहा है. हालांकि यह अलग बात है कि ऐसे नेता व कार्यकर्ता खुल कर सामने नहीं आ रहे. दूसरी तरफ लोजपा में टूट के दौरान पार्टी के स्थानीय सांसद चौधरी महबूब अली केसर चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस गुट में चले गए थे. जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है और चिराग ने उन्हें तरजीह नहीं दी है.
कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं देने का आरोप लगा कभी सुशांत ने छोड़ी थी लोजपा
फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव के उपरांत बिहार में सत्ता की चाबी लेकर घुमने वाली लोजपा अक्टूबर 2005 के चुनाव में बिहार में चारों खाने चित हो गई थी. यह लोजपा के अस्तित्व में आने के बाद पार्टी का सबसे बुरा दौर था. लेकिन पार्टी के मुश्किल वक्त में खगडिया युवा लोजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष सुशांत यादव पार्टी से जुड़े रहे और जिले में पार्टी के जनाधार को बढाने के लिए लगातार संघर्ष करते रहे. उस वक्त जिले में शहर के जेएनकेटी मैदान में आहूत लोजपा की रैली की सफलता में सुशांत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बाद में वक्त ने करवट ली और संसदीय चुनाव के वक्त लोजपा राजग में शामिल हो गई. मोदी लहर में पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहा और रामविलास पासवान मोदी सरकार में मंत्री बन गए. इधर बिहार विधान चुनाव के दौरान खगडिया युवा लोजपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष सुशांत यादव जिले के बेलदौर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने सुशांत यादव को तरजीह नहीं दी. ऐसे में सुशांत यादव ने पार्टी के उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी. बहरहाल एक बार फिर चिराग पासवान की लोजपा (रा) जिले के राजनीतिक गलियारे में इस ही मामले को लेकर चर्चाओं में है.