भाजपा की ई.धर्मेन्द्र से यारी, खगड़िया में ‘कमल’ खिलाने की तैयारी
लाइव खगड़िया : जाति व पार्टी में फंसी बिहार की चुनावी राजनीति के बीच ई. धर्मेंद्र ने भाजपा में शामिल होकर एक नये राजनीतिक जमीन की तलाश कर ली है. जनसरोकार के मुद्दे पर संघर्ष व समाजसेवा के बल पर चर्चाओं में रहने वाले ई.धर्मेन्द्र के राजनीतिक जीवन का यह एक अहम फैसला माना जा रहा है और जिस तरह से भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें हाथों-हाथ लिया है, वह एक अलग नजारा था. वैसे भी संघ के कार्यक्रमों में उनकी पूर्व में गतिविधियां रह चुकी है और उनके भाई डॉक्टर स्वामी विवेकानंद भी भाजपा से जुड़े हुए हैं. इधर समर्थकों की फौज के साथ पार्टी में शामिल होने का उनका शाही अंदाज राजनीतिक रूप से कई संकेत भी दे गया है.
गठबंधन के घटक दलों के बीच टिकट की रेस में अबतक जिस तरह से भाजपा जिले में पिछड़ती रही है, उस दूरी को ई. धर्मेन्द्र पाट दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. खास कर खगड़िया विधानसभा क्षेत्र एवं जिले के युवाओं के बीच उनका अपना अलग प्रभाव रहा है. वैसे भी जिले के चुनावी राजनीति के जातिगत समीकरण में वे फिट बैठते हैं और उनका इतिहास रहा है कि जिस भी संगठन से वे जुड़े हैं उसके लिए वे समर्पित रहे हैं और तन-मन-धन से काम किया है. उधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का राजनीतिक कर्मभूमि भी खगड़िया ही रहा है और उनका भी जिले में अपना प्रभाव है.
बात चाहे अन्ना आंदोलन के दौरान की हो या फिर आम आदमी पार्टी की, ई़ धर्मेंद्र जन जागरूकता और संगठन की मजबूती के लिए जमकर सड़कों की धूल फांकी थी. साथ ही विभिन्न मुद्दों को लेकर उनके द्वारा की गई अनशन को आज भी जिले के लोग याद करते हैं. यह बात अलग है कि अबतक चुनावी राजनीति मेंं उनके संघर्ष को सार्थक परिणाम नहीं मिल सका. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005, 2010 और 2020 के चुनावों में खगड़िया विधान-सभा क्षेत्र से वे निर्दलिय प्रत्याशी के तौर पर अपनी किस्मत आजमा चुके हैं. हालांकि बाद के दिनों में वे राजनीतिक मंचों से दूर हो गए थे. लेकिन सुर्खियों में बने रहने वालें ई.धर्मेन्द्र की खामोशी को तूफान के पूर्व की शांति के तौर पर भी देखा जा रहा था और आखिरकार उन्होंने एक बड़े राजनीतिक विकल्प को तलाश कर ही लिया. वैसे भी जातिय व दलीय मकड़जाल में उलझी जिले की राजनीति में एक निर्दलिय या कमजोर जनाधार वाले पार्टी के सहारे चुनावी वैतरणी को पार करना इतना आसान नहीं था. शायद इस बात का एहसास धर्मेन्द्र को हो चुका था. टिकट के खेल में कहीं ना कहीं उम्मीदवार के व्यक्तिगत प्रभाव को भी तब्बजों मिलती है और मिलन समारोह के बहाने ई. धर्मेंद्र इसका प्रदर्शन करने में कामयाब रहे हैं. राजनीतिक जानकारों कि मानें तो चुनावी राजनीति के हर पहलू पर गहन मंथन के बाद ई. धर्मेन्द्र ने राजनीति में फिर से कदम बढ़ायें हैं. बहरहाल एकबार फिर जिले के राजनीतिक गलियारें में उनकी चर्चाएं तेज है.