नवरात्र : इस मंदिर में सदियों से बनती आ रही है चार भुजाओं वाली मां दुर्गा की प्रतिमा
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर अवस्थित परबत्ता प्रंंखड का बिशौनी दुर्गा मंदिर संतान की मनोकामना पूर्ण करने के लिए इलाके में विख्यात है. आमतौर पर शारदीय नवरात्रा में दुर्गा मंदिरों में आठ से दस भुजा वाली मां दुर्गा की प्रतिमा बनती है. लेकिन बिशौनी गांव के अति प्राचीन सिद्ध पीठ श्रीचतुर्भुजी दुर्गा मंदिर में सदियों से चार भुजाओं वाली मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना की जाती है.
मूल प्रकृति स्वरूप है चार भुजाओं वाली मां दुर्गा
श्री शिव शक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज कहते हैं कि महा लक्ष्मी, सरस्वती स्वरूप हैं चार भुजा वाली मां दुर्गा का मूल प्रकृति स्वरूप है. इसी मूल प्रकृति स्वरूप से ही अष्ट, दस आदि भुजाओं वाली नाम से विकसित हुआ है. बताया जाता हझ मूल प्रकृति स्वरूप चतुर्भुजी दुर्गा की पूजा करने से सभी बाधाएँ दूर होती है तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
साग एवं बगिया का लगता हैं भोग
इस मंदिर में षप्ठी के दिन संध्या में मां की प्रतिमा पिंडी पर विराजमान कर मंदिर का पट खोल दिया जाता है. मां दुर्गा के पिंडी पर विराजमान होने के बाद सुबह-शाम साग एवं चावल की बगिया का भोग लगाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि वर्षों पूर्व बार-बार बाढ़ कि विभीषिका से लोग तंग आ चुके थे. ऐसे में मंदिर के पंडित एवं ग्रामीणों ने मां से विनती किया कि बाढ़ की वजह से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है और अब वे सेवा करने के लिए असमर्थ हैं. साथ ही भक्त गणो ने निर्णय लिया कि अगले वर्ष शारदीय नवरात्रा में पूजा पाठ नहीं होगी. इस बीच विजयादशमी के दिन प्रतिमा के साथ मेढ को भी गंगा में विसर्जित कर दिया गया. बताया जाता है कि अगले वर्ष शारदीय नवरात्रा के कुछ दिन पूर्व मां दुर्गा ने मंदिर के पंडित को स्वप्न दिया कि वे जो प्रतिदिन भोजन ग्रहण करते हैं उसी से भोग लगाओ. जिसके बाद पुनः पूजा प्रारंभ हुई तथा उसी दिन से साग एवं बगिया का भोग लगाया जाने लगा.
अंग्रेज भी मंदिर में टेकते थे माथा
शारदीय नवरात्र के दौरान लगातार 35 वर्षों से लगातार अतिप्राचीन सिद्ध पीठ श्री चतुर्भुजी दुर्गा मंदिर बिशौनी में मुख्य पंडित के रूप में महत्वपूर्ण योगदान देते आ रहें खजरैठा निवासी डॉ प्राण मोहन कुंवर, ग्रामीण उमेश चन्द्र झा, विद्यापति झा, धनंजय झा, रतन शंकर मिश्र , प्रेमप्रकाश मिश्र, मनोज झा , मनोज मिश्र, कौशल कुमार मिश्र उर्फ पप्पू मिश्र, खगेश झा, सिंधु मिश्र, आदि बताते हैं कि उनके पूर्वजों के मुताबिक ब्रिटिश शासन काल में एक अंग्रेज अधिकारी को संतान नही था और उसने भी मां के दरबार में माथा टेका और फिर उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जिसके बाद कई वर्षों तक वे भी शारदीय नवरात्रा में मंदिर आकर माथा टेकते थे.
निशा पूजा का है विशेष महत्व
अतिप्राचीन सिद्ध पीठ श्री चतुर्भुजी दुर्गा मंदिर बिशौनी में शारदीय नवरात्रा के दौरान पूजा विधि विधान की तौर तरीके इलाके में चर्चित है. पूजा की प्राथमिकता को लेकर यह मंदिर जिले में विख्यात हैं. यहां सप्तमी की रात्रि में निशा पूजन किया जाता हैं और बारह बजे रात्रि से पूजा प्रारंभ होती है. जो लगभग दो घंटे चलती है. इस पूजन को देखने के लिए काफी संख्या में भक्त मंदिर में जमे रहते हैं. एेसी मान्यता है कि भाग्यशाली भक्त ही निशा पूजन देख पाते हैं और जिनपर मां की कृपा नहीं होती हैं वे निन्द्रा के आगोश में चले जाते हैं. निशा पूजा में काला कबूतर एवं काला छागर की बलि दी जाती हैं. उसके बाद नवमी के दिन लगभग ढाई सौ छागर की बलि दी जाती है.
आस्था का सैलाब उमड़ता हैं प्रतिवर्ष, मंदिर का आकार भी चतुर्भुज
शारदीय नवरात्रा में इस मंदिर में सुबह-शाम भक्तजनों की काफी भीड़ उमड़ती है. यहां दूर-दराज से भी भक्त गण आते हैं और मन्नतें मांगते है. अतिप्राचीन सिद्ध पीठ श्री चतुर्भुजी दुर्गा मंदिर बिशौनी का आकार भी चतुर्भुज है. बिशौनी की श्री चतुर्भुजी दुर्गा अति प्राचीन सिद्ध पीठ के रुप में पूजा होती है. पंडित गण का कहना है कि बिहार में मात्र दो स्थान बिशौनी एवं नयागांव सतखुट्टी में ही शारदीय नवरात्रा में चार भुजावाली माँ दुर्गा की प्रतिमा बनाकर सदियों से पूजा की जा रही है. मंदिर के पंडित डॉ मनोज कुंवर, आचार्य उत्कर्ष गौतम उर्फ रिंकु झा ने बताते हैं कि मां की महिमा अगम अपार है और श्रीचतुर्भुजी दुर्गा सुख, शांति एवं समृद्धि का प्रतीक है. जो सभी की मन्नतें पूर्ण करती हैं.
कुंवारी कन्याएं को हंसने के लिए की जाती है विनती
नवमीं के दिन मंदिर में करीब दो दर्जन से अधिक कुंवारी कन्याओं को भक्तजन नए कपड़े में सुशोभित करते हैं एवं माँ दुर्गा की प्रतिमा के सामने कतार बद्ध कर पैरों पर जल फूल चढाया जाता है. वहीं विधि विधान के साथ कुंवारी कन्याओं का पूजन किया जाता है. इस क्रम में कुंवारी कन्या को सिन्दुर का टीका लगाने के बाद खोइछा भरने की परंपरा है. कुंवारी कन्या को भक्तजन खोइछा में विभिन्न तरह के मिष्ठान एवं द्रव्य देते हैं. खोइछा भरने के लिये भी भक्तजनों की भीड़ उमड़ पडती है. कुंवारी पूजन के अंतिम क्षण श्रद्धालु कन्या को हंसने के लिए विनती करती है और भक्तजनों की विनती पर कुंवारी कन्याएं जैसे ही हंसती हैं वैसे ही मंदिर परिसर का वातावरण खुशहाल हो जाता है.