आंखों से दिव्यांग रही पुनम को संगीत ने दिया नई रोशनी
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : माना जाता है कि संगीत इंसान का सबसे अच्छा साथी है जो तन्हाई में भी इंसान का साथ नहीं छोड़ता और साथ ही सुकून प्रदान करता है.संगीत एक ऐसी कला है जो ना सिर्फ सुर को संयमित करता है बल्कि जीवन को भी संयमित रखने की सीख देता है.कहा जाता है कि संगीत के सान्निध्य मात्र से ही तन-मन और आत्मा तृप्त हो जाती है और संपूर्णता का एहसास होता है.यदि जीवन में संगीत शामिल हो जाये तो शारीरिक व मानसिक कमियां खुद व खुद दूर हो जाती है.कहा जाता है कि चिकित्सा जगत ने भी यह माना है कि बहुत सी मानसिक व शारीरिक बीमारियों का इलाज संगीत से ही संभव है.कुछ ऐसी ही कहानी है जिले के परबत्ता प्रखंड अंतर्गत खीराड़ीह गांव निवासी अशोक पासवान व अनमोल देवी की पुत्री पुनम भारती की…आंखों से दिव्यांग रही पूनम आज संगीत के माध्यम से ना सिर्फ दुनिया देख रही है बल्कि संगीत ने ही उन्हें जीने का सहारा भी दिया है.साथ ही बचपन से ही अपनी आंखों की रोशनी से बंचित रहने वाली 20 वर्षीय पुनम आज संगीत साधना से अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है.बात लगभग एक दशक पूर्व की है जब दिव्यांग पुनम के मन में अपनी आंखों को लेकर हीनता का भाव उभर आया था.उस वक्त ही खीराडीह से सटे अगुवानी डुमरिया बुजुर्ग निवासी संगीतज्ञ पंडित रामावतार सिंह अपने आवास पर संगीत की पाठशाला चलाया करते थे.इस क्रम में पुनम की कानो तक शास्त्रीय संगीत की धुन प्रति दिन पहुंच जाती थी.पड़ोस से आती संगीत की वो धुन धीरे-धीरे पुनम को आकर्षित करने लगी और एक दिन तो ऐसा हुआ की पुनम संगीतज्ञ पंडित रामावतार सिंह के पाठशाला तक पहुंच गई और संगीत सीखने की जिज्ञासा जाहिर कर दिया. फिर तो वो संगीत के पाठशाला में शास्त्रीय संगीत में ही रम गई.इस बीच उन्होंने मैट्रीक अगुवानी डुमरिया बूजुर्ग से किया और फिर इलाहावाद से शास्त्रीय संगीत में स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली.अब तो पुनम की सुरीली आवाज व भाव पूर्ण भक्ति संगीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर जाता है. अपने सात भाई-बहनों में चौथे स्थान पर रही आंखो से दिव्यांग पुनम भारती लोकप्रिय गायिका लता मंगेशकर को अपना आर्दश मानती है.जबकि उन्होंने एक खास बातचीत में बताया कि शुरुआती दौर में उन्हें काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा और संगीतज्ञ स्वर्गीय पंडित रामावतार सिंह उनके हौसले को पंख दिया.साथ ही वो अपना जीवन संगीत को समर्पित कर देने की बातें कहते हुए बताती है कि आंख से दिव्यांग होने के बावजूद संगीत ने ही उन्हें नई उर्जा व हिम्मत दिया है. जिसके बल पर वो आज अपनी जिन्दगी की उड़ान भर रही है.संगीत ही ने उनके अंधेरी आंखों को नई रोशनी दी है जिसके दम पर वो सबकुछ देख सकती है.बताया जाता है कि बिहार के कई जिलों में दर्जनों मंच पर वो अपनी गायन शैली का प्रदर्शन कर श्रोताओं का दिल जीत चुकी है.साथ ही वो पंजाब सहित कई अन्य प्रदेशों में प्रसिद्ध गायक-गायिकाओं के साथ मंच साझा कर चुकी हैं.वहीं पुनम कार्यक्रमों की चर्चा करते हुए बताती है कि एक बार जिले के परबत्ता प्रखंड के रहीमपुर में तत्कालिन विधायक राकेश कुमार चौधरी उर्फ सम्राट चौधरी का कार्यक्रम था.जिसमें उनके द्वारा स्वागतगाण प्रस्तुत किया गया.वहीं तत्कालिन विधायक सम्राट चौधरी के द्वारा मंच पर से ही वादा किया गया था कि वो उनकी मदद करेंगे.लेकिन वो शायद उस वादे को भूल चुके हैं.जिसकी कसक आज भी पुनम को है.गरीबी की मार झेल रही संगीत प्रतिभा की धनी पुनम की इच्छा है कि उन्हें किसी विद्यालय में संगीत शिक्षक के तौर पर सेवा प्रदान करने का अवसर मिले.ताकि वो आर्थिक संकट से बाहर निकलते हुए अपनी संगीत साधना को एक नया आयाम दे सकें.बताया जाता है कि गरीबी ने ही उन्हें उस मुकाम को छूने नहीं दिया जिसका वो वास्तवित तौर पर हकदार रही हैं.कहा जाता है कि पुनम के स्वर में साक्षात सरस्वती का वास है.
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