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श्री कृष्ण सेतु के पीछे है संघर्ष की एक लंबी कहानी भी…

लाइव खगड़िया (मनीष कुमार) : करीब 20 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार शुक्रवार को अंग व कोसीवासी को डबल डेकर पुल की सौगात मिल गया. सीएम नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नुंगेर के लाल दरवाजा से मुंगेर – खगड़िया रेल-सह-सड़क पुल का लोकार्पण किया. एक बड़े से मंच पर बिहार सरकार के दोनों डिप्टी सीएम और स्थानीय सांसद ललन सिंह समेत कई मंत्री व विधायक मौजूद रहे. जबकि दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी वर्चुअली इस कार्यक्रम से जुड़े और रिमोट के द्वारा लोकार्पण के शिलापट का पर्दा हटाया गया.

समारोह एवं पुल को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे. इस पुल के निर्माण के बाद मुंगेर व खगड़िया की दूरी सिमट गई. दरअसल, पहले मुंगेर से खगड़िया एवं खगड़िया से मुंगेर जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था और ऐसे में घंटों का वक्त लगता था. लेकिन अब सड़क पुल चालू हो जाने से महज 15 से 20 मिनटों में ही खगड़िया से मुंगेर पहुंचा जा सकता है.

मुंगेर से खगड़िया की दूरी अब मात्र 25 किलोमीटर

गंगा पर निर्मित रेल सह सड़क सेतु की कुल लंबाई 3.75 किलोमीटर है, जबकि इससे जुड़ने वाले एप्रोच पथ अर्थात एनएच 333 बी की लंबाई 14.517 किलोमीटर है. मुंगेर की ओर एप्रोच पथ की लंबाई 9.394 किलोमीटर तथा खगड़िया की ओर एप्रोच पथ की लंबाई 5.198 किलोमीटर है. इस प्रकार यदि एप्रोच पथ एवं रेल सह सड़क पुल की कुल लंबाई जोड़ दें तो एनएच 333बी कुल लंबाई 18.267 किलोमीटर होगी. जबकि यह एनएच 333बी खगड़िया एवं बेगूसराय के बीच एनएच 31 को तथा मुंगेर के तेलिया तलाब के पास एनएच 80 को आपस में जोड़ेगा. इस एनएच 333बी के चालू हो जाने से मुंगेर एवं खगड़िया के बीच की कुल दूरी महज 25 किलोमीटर रह जाएगी तथा मुंगेर से बेगूसराय के बीच की दूरी घटकर महज लगभग 50 किलोमीटर रह जाएगी. बिहार के पूर्व सीएम श्री कृष्ण बाबू के नाम पर इस पुल का नाम रखा गया है. श्री कृष्ण सेतु के ऊपर मोटरगाड़ी तो नीचे रेलवे ट्रैक पर ट्रेनें दौड़ेंगी.

लोगों के आकांक्षाओं का पुल है श्रीकृष्ण सेतु

अंग व कोसी के लोगों की आकांक्षाओं को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने समझा था और उन्होंने 26 दिसंबर 2002 को दिल्ली से रिमोट कंट्रोल के माध्यम से श्रीकृष्ण सेतु की आधारशिला रखी थी. उस समय बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में रेल मंत्री हुआ करते थे और वे इस रेल सह सड़क पुल के शिलान्यास के मौके पर मुंगेर पहुंचे थे. उस समय इस महत्वाकांक्षी डबल डेकर पुल की कुल अनुमानित लागत 921 करोड़ आंकी गई थी. लेकिन शिलान्यास के लगभग 19 साल 2 माह बाद जब उद्घाटन का समय आया है तो इसकी कुल लागत मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तीन गुना बढ़कर 2777 करोड़ पहुंच गई.

अप्रैल 2016 से यात्री ट्रेनों का परिचालन हुआ था शुरू

इस रेल सह सड़क सेतु से यात्री ट्रेन का परिचालन अप्रैल 2016 से आरंभ हुआ और बेगूसराय रेलवे स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम के माध्यम से तत्कालीन रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा, बेगूसराय व मुंगेर के तत्कालीन सांसद ने हरी झंडी दिखाकर पहली यात्री ट्रेन को जमालपुर के लिए रवाना किया था. इससे पूर्व मार्च 2013 में पहली बार इस रेलखंड पर ट्रेन परिचालन का ट्रायल किया गया था. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरी झंडी दिखाकर मुंगेर रेल सह सड़क सेतु पर मालगाड़ी के परिचालन को आरंभ किया था.

श्री कृष्ण सेतु : संघर्ष की एक लंबी कहानी भी है

मुंगेर गंगा पुल के लिए संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है. मुंगेर गंगा रेल सह सड़क पुल का निर्माण अपने पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी भी सहेजे हुए है. पुल निर्माण को लेकर मुंगेर की धरती पर 14 दिनों तक आमरण अनशन हुआ था. इस पुल को मुंगेर-बेगूसराय-खगड़िया जिला के सामूहिक संघर्ष का परिणाम भी कहा जा सकता है. इस पुल के निर्माण के लिए जागृति नाम की संस्था ने आंदोलन को जारी रखा था. बाद में मुंगेर के तत्कालीन सांसद ब्रह्मानंद मंडल ने पुल की मांग को लेकर जब अनशन किया तो पहली बार भारत सरकार के तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष प्रणव मुखर्जी ने मुंगेर में पुल इस पुल को बनाने का फैसला मंजूर किया. नीतीश कुमार के रेल मंत्री रहते हुए इस पुल को स्‍वीकृत किया गया. फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस पुल का शिलान्यास किया.

इसके पूर्व 70 के दशक में पुल निर्माण के लिए आंदोलन ने रफ्तार पकड़ी. तब जाकर 1976 में रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक संस्था यहां सर्वे किया. टीम ने सर्वे रिपोर्ट में बताया कि मुंगेर भूकंप प्रभावित क्षेत्र है और यहां पुल का निर्माण मुश्किल और खर्चीला है. लेकिन लोगों ने पुल निर्माण के आंदोलन को जारी रखा. मुंगेर, बेगूसराय व खगड़िया के लोगों की बेगूसराय के शालिग्रामी उच्च विद्यालय में बैठक हुई और आंदोलन का फैसला लिया गया. ‘नयी क्रांति का नया बिगुल, लक्ष्य हमारा गंगा पुल’… के नारे के साथ साल 1988 में आंदोलन को नया रूप मिला. जिसके बाद अनवरत बाजार बंद, सड़क जाम सहित अन्य तरह के आंदोलन होने लगे. मुंगेर, बेगूसराय व खगड़िया के लोग पुल निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन जारी रखा. इस क्रम में न सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के लोगों ने बल्कि स्कूली बच्चों ने भी प्रदर्शन में भाग लिया. युवाओं द्वारा रन फोर गंगा ब्रिज का आयोजन किया गया था. 1989 में जागृति की ओर से 9 व 10 अगस्त को दो दिवसीय जनता कर्फ्यू लगाया गया. तत्कालीन सांसद ब्रह्मानंद मंडल ने पहली बार 1991 में लोकसभा में मुंगेर में गंगा पर रेल सह सड़क पुल का मुद्दा उठाया था. रेल एवं भूतल परिवहन मंत्रालय से पुल निर्माण को लेकर लेटर लिखे गए. बावजूद उस वक्‍त की सरकार ने मुंगेर में गंगा पर पुल की मांग को अस्वीकार कर दिया. तब सांसद ने 13 सहयोगियों के साथ अक्‍टूबर 1994 में आमरण अनशन करते हुए सत्याग्रही आंदोलन मुंगेर में शुरू किया.

आमरण अनशन के 14वें दिन जार्ज फर्नांडिस ने तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष प्रणव मुखर्जी को पत्र लिख कर इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की. इसके बाद प्रणव मुखर्जी ने सांसद ब्रह्मानंद मंडल को पत्र लिख कर आमरण अनशन समाप्त करने का आग्रह किया और मुंगेर में रेल सह सड़क पुल निर्माण का लिखित आश्वासन भी दिया. इसके बाद केंद्र सरकार ने 10वीं पंचवर्षीय योजना में पुल निर्माण की परियोजना को शामिल किया. 15 अगस्त 2002 को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल किले से मुंगेर में पुल निर्माण की घोषणा की और 25 दिसंबर 2002 को दिल्ली से इस पुल का शिलान्यास किया गया.

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