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जिन मशीन के बने कपड़े कभी जाते थे विदेश, उस मशीन पर आज धूल जम रहा

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : दिल में बड़े अरमान संजोए रोजी-रोटी के लिए परदेस जाकर काम कर रहे थे. खुद भी खुश थे और परिवार में भी खुशियां थी. लेकिन कोरोना महामारी का ऐसा संकट गहराया कि सपने चूर हो गए. लॉकडाउन में रोजगार चौपट हुआ तो मजबूरी में मशीनें लेकर गांव चला आया और आज आर्थिक संकट के कारण इन मशीनों पर धूल जमने लगी है. यदि जिलो के परबत्ता प्रंखड के कन्हैयाचक निवासी विमलेश चौधरी को आर्थिक मदद मिल जाती तो आत्मनिर्भरता को मुहिम को गति मिल जाती और जिले में गारमेंट्स के क्षेत्र में युवाओं को रोजगार एवं आत्म निर्भर बनाने का एक नया मार्ग प्रशस्त होता. 


विमलेश चौधरी पच्चीस साल पूर्व दिल्ली रोजी रोटी की तलाश में निकलें थे. जहां उन्हें एक गारमेंट्स कंपनी में नौकरी मिली. बाद के दिनों में उनका पुत्र गुलशन भी गारमेंट्स कंपनी में काम करते हूए एएमटीडी का डिप्लोमा कोर्स किया. जिसके बाद 2018 में पिता पुत्र ने मिलकर हरियाणा के फरिदाबाद में एक गारमेंट्स की कंपनी खोल ली. जिहां 150 मशीनों के सहारे कपड़े की  चेकिंग, कटाई, सिलाई, धूलाई, टेंगिंग, पेंकिंग आदि का कार्य शुरू हो गया. धीरे-धीरे धंधा चल पड़ा और कंपनी में डेढ़ सौ से अधिक लोग कार्य करने लगे. कुछ ही दिनों के बाद उन्हें कई प्रसिद्ध गारमेंट्स कंपनी का भी काम उन्हें मिलने लगा. यहां के तैयार कपड़े बड़े-बड़े मॉल के साथ विदेश भी जाने लगे और विमलेश व गुलशन की किस्मत ही बदल गई.

लेकिन नागरिक संसोधन बिल को लेकर चल रहे धरना-प्रर्दशन ओर कोरोना महामारी ने कंपनी को डूब दिया. बताया जाता है कि बाजार में काफी पूंजी फंस गए और अंत में कंपनी को बंद करना पड़ा. इस बीच आर्थिक संकट के कारण पिता-पुत्र कोरोना काल में चालीस मशीनें लेकर खगड़िया चले आये. उन्हें उम्मीद थी कि स्थिति सामान्य होते ही वे गृह जिला में ही रोजगार शुरू कर लेंगे. लेकिन पुंजी के आभाव ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया और आज मशीनें कन्हैयाचक स्थित उनके घर पर धूल फांक रही है. 


विमलेश चौधरी ने बताते हैं कि आर्थिक मदद मिलती तो गारमेंट्स का कार्य शुरू किया जा सकता है. जिससे ना सिर्फ स्थानीय लोगों को रोजगार का अवसर मिल जाता बल्कि युवाओं को गारमेंट्स के क्षेत्र में प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है. अपना रोजगार शुरू नहीं होने की वजह से गुलशन फिलहाल दिल्ली में एक गारमेंट्स कंपनी में क्वालिटी इंचार्ज पद पर कार्य करने चले गये हैं. दूसरी तरफ जिले में पड़ी मशीनें खामोशी से किसी तारणहार का बाट जोह रहा हैं.

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