लाइव खगड़िया (डॉ कामाख्या चरण मिश्र) : “और कसो तार, तार सप्तक में गाऊँ” ।। गीत की यह पंक्ति हिन्दी के अप्रतिम गीतकार आचार्य कवि जानकीवल्लभ शास्त्री की स्मृति में उमड़ आई है. शास्त्री जी वाल्मीकि, व्यास से महाकवि निराला तक की महान परंपरा के आधुनिकतम मन, प्राण और स्वर संगीत रहे हैं. आमलोगों के बीच वह कवि सम्मेलनों, रेडियो औ दूरदर्शनों के माध्यम से आए थे. इसलिए लोगों ने इन्हें कवि के रूप में ही स्वीकार किया. यद्यपि गद्यकार के रूप में भी वह उतने ही महान रहे. उनकी लिखी 65 से भी अधिक कृतियों में दो दर्जनों से भी अधिक काव्य कृतियां हैं. अपने साहित्यिक जीवन में उन्होंने डेढ़ दर्जन से अधिक पत्र-पत्रिकाओं, ग्रथों और अपने समय के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की रचनाओं का संपादन किया होगा. उनका कथा – साहित्य, पत्र – साहित्य, निबंध, उपन्यास, नाटक, संस्मरण – आत्मकथा, आलोचना – – – – – साहित्य उनके रचना संसार की विविधता का ही नहीं, अपितु गद्य की शैलियों पर भी उनके अधिकार का प्रमाण है. उनकी अथक, अनवरत साहित्यिक सेवाओं तथा हिन्दी के प्रति समर्पण की भावना आदर करते हुए सरकार तथा साहित्यिक संस्थाओं ने साहित्य साधना, राजेन्द्र शिखर, साहित्य अकादमी, पद्मश्री से सम्मानित किया है. वर्ष 1997 में बिहार के पूर्व राज्यपाल डॉ ए. आर. किदवई ने महाकाव्यातमक औपन्यासिक कृति ‘ कालिदास ‘ के लिए उन्हें ‘ भारतेंदु सम्मान’ से गौरवान्वित किया था.
आचार्य कवि श्री जानकीवल्लभ शास्त्री जी का जन्म सन 1916 की माघ, शुक्ल द्वितीया (5 फरवरी) को बिहार के गया जिले के मैगरा गांव में हुआ था. जिन्होंने अपनी काव्य यात्रा गीत संगीत रचना का आरंभ सन 35 में ‘काकली’ से किया था. उसी समय से वह हिन्दी की विशिष्ट पत्र पत्रिकाओं में छपने लगे थे. सन ’36’ में ‘किसने बांसुरी बजाई ‘ की जनम – जनम की पहचानी तान सुनाकर सदा – सदा के लिए वह श्रोताओं के मन, प्राणों में बस गए.
दो हजार से भी अधिक गीतों में फैला आचार्यश्री का भाव संसार जीवन के प्रायः सभी पक्षों, प्रकृति के प्रायः सभी गुणों और सौंदर्य के सूक्ष्म से सूक्ष्म अणु – परमाणुओं तक को अपने में समेटे हुए है. शत – शत मुक्तकों के अतिरिक्त सात पर्वों वाले ‘राधा’ ‘ (महाकाव्य), गीति नाटयों, मेघगीत, श्यामासंगीत’, ‘धूप-तरी’ से ‘सुने कौन नग्मा ‘ तक में इन गीतों की विविध प्रकृति के दर्शन होते हैं.
आचार्य श्री भाव-संसार विशाल है. वह बिहार के ही नहीं, अपितु संपूर्ण हिन्दी जगत के एक अप्रतिम और संभवतः ऐसे अकेले गीत – कवि हैं जिन्होंने’ निराला’ की गहन गीत – दृष्टि का विकास ही नहीं किया, अपितु उसे और अधिक गहराई दी.अबतक उन पर दो दर्जन से अधिक थीसिस लिखे जा चुके हैं और कुछ पुस्तकाकार प्रकाशित भी हैं, किन्तु बिहार अभी कोसों दूर है. हमारी दृष्टि में आचार्य – कवि श्री जानकीवल्लभ शास्त्री जी की जयंती का उद्देश्य उनकी सभी रचनाओं का ग्रंथावली के रूप में प्रकाशन और उनकी कृतियों का सही मूल्यांकन होना चाहिए.