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खगड़िया : आंतरिक गुटबाजी व शीर्ष नेतृत्व की दखलअंदाजी से तार-तार हुई जदयू – Live Khagaria
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खगड़िया : आंतरिक गुटबाजी व शीर्ष नेतृत्व की दखलअंदाजी से तार-तार हुई जदयू

लाइव खगड़िया : जिला जदयू की वर्षों से चली आ रही आंतरिक गुटबाजी आखिरकार उस मोड़ पर पहुंच ही गई, जहां से संगठन को सैकड़ों सक्रिय कार्यकर्ताओं के खोने का एक बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. दरअसल इसे सिर्फ आंतरिक गुटबाजी का नतीजा ही नहीं बल्कि सत्ता के नशे में मदमस्त जदयू के शीर्ष नेतृत्व द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं के भावनाओं की अवेहलना का प्रतिफल भी माना जा सकता है. स्थिति भी वैसे वक्त में सतह पर आई है जब आगामी चुनाव के मद्देनजर जदयू बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने की मुहिम चला रही है. मामला दिलचस्प है कि रविवार को ही जिले में जदयू की दो सभाएं चल रही थी. जिसमें से एक में प्रदेश से आये एक नेता जिले में संगठन को मजबूत करने की बातें कह रहे थे तो दूसरी तरफ एक सभा में जदयू के सैकड़ों सक्रिय कार्यकर्ता पूर्व जिलाध्यक्ष पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने और पार्टी के प्रदेश नेतृत्व पर कार्यकर्ताओं की बातों को नहीं सुनने का गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ने की कवायद में जुटे हुए थे. अंतत: जिला जदयू के कई बड़े नामों सहित पार्टी के 337 नेता व कार्यकर्ताओं ने संगठन को सामूहिक रूप से बाय-बाय कह दिया.

जिसमें निर्वाचित जिलाध्यक्ष बबलू मंडल, जिला महासचिव सह जिला पार्षद योगेंद्र सिंह, पंचायती राज प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव सुनील कुमार मुखिया, व्यवसायिक प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव सह नगर परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष राजकुमार फोगला, प्रदेश प्रवक्ता सह नगर निकाय प्रकोष्ठ के महासचिव अरविन्द मोहन, उद्योग प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव पंकज कुमार सिंह, पंकज गुप्ता, व्यवसायिक प्रकोष्ठ के प्रखंड अध्यक्ष पंकज कुमार पटेल, पूर्व जिला उपाध्यक्ष पुरूषोत्तम अग्रवाल, पूर्व जिला महासचिव राजीव कुमार गुप्ता, पूर्व सदर प्रखंड अध्यक्ष रंजना कुमारी, पूर्व जिला सचिव मदन वर्मा, पंचायत अध्यक्ष श्रवण कुमार आदि का नाम शामिल है.

पूर्व जिलाध्यक्ष पर लगे हैं ये आरोप

शहर के आर्य समाज स्कूल के प्रांगण में रविवार को जदयू के नाराज कार्यकर्ताओं की बैठक में वक्ताओं ने पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष सुनील कुमार की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा करते हुए विगत तीन साल से उनके कार्यकाल के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित करने सहित आर्थिक दोहन तक का आरोप मढ़ा है. साथ ही उनपर ‘बांटो और राज करो’ की सिद्धांत पर कार्य कर संगठन को नुकसान पहुंचाने और पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को अपमानित करने का आरोप लगाया गया है.

शीर्ष नेतृत्व से मिलने का समय मांगते रहे कार्यकर्ता लेकिन नहीं मिला वक्त

जदयू के निर्वाचित जिलाध्यक्ष बबलू मंडल कि यदि मानें तो वे पार्टी के प्रदेश नेतृत्व से मिलकर अपनी बातों को रखने के लिए वक्त मांगते रहे, लेकिन उन्हें इसके लिए वक्त नहीं दिया गया. इस संदर्भ में उन्होंने मोबाइल से नंबर भी लगाया था लेकिन प्रदेश नेतृत्व ने इसकी जुर्रत नहीं समझी और उन्हें बुलावा नहीं आया.




संगाठनिक चुनाव में शीर्ष नेतृत्व की दखलअंदाजी भी जदयू को पड़ गया भारी

दरअसल जिला जदयू के वर्तमान हालात की नींव हाल ही में संपन्न जदयू के संगाठनिक चुनाव के दौरान ही पड़ गई थी. 11 सितंबर को जिलाध्यक्ष सहित अन्य पदों के लिए मतदान होना था. लेकिन मतदान के एक दिन पूर्व 10 सितंबर की रात्रि में राज्य चुनाव पदाधिकारी ने जिला निर्वाचन पदाधिकारी को अपरिहार्य कारणों का हवाला देते हुए चुनाव स्थगित करने का निर्देश दिया था. बताया जाता है इस संदर्भ में राज्य चुनाव पदाधिकारी द्वारा WhatsApp के माध्यम से भेजे गये पत्र को जिला निर्वाचन पदाधिकारी नोटिस नहीं कर पाये और वे तय समय पर लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव की प्रक्रिया संपन्न करा गये. हलांकि बाद के दिनों में उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा और पार्टी के निर्देशों का पालन नहीं करने के आरोप में जिला चुनाव पदाधिकारी को जदयू से निष्कासित कर दिया गया था. रही सही कसर जदयू के शीर्ष नेतृत्व ने लोकतांत्रिक ढंग से चयनित जिलाध्यक्ष बबलू मंडल को दरकिनार कर संगाठनिक चुनाव में मात्र एक मत प्राप्त करने उम्मीदवार विधान पार्षद सोनेलाल मेहता के सिर पर जिलाध्यक्ष की ताज रख कर पूरी कर दी. उल्लेखनीय है कि चुनाव में कुल 74 मतदाताओं ने भाग लिया था. जिसमें से 69 मत बबलू मंडल के के नाम रहा था. बावजूद इसके आक्रोशित गुट के कार्यकर्ता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के फैसले का सम्मान करते हुए धैर्य बनाये रखा. लेकिन जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित जिलाध्यक्ष के प्रति शीर्ष नेतृत्व की तरफ से संवेदना के दो शब्द तक नहीं आया और साथ ही स्थानीय स्तर पर भी एक गुट के कार्यकर्ताओं की अवहेलना शुरू हुई तो कार्यकर्ताओं का सब्र का बांध टूट गया. कहना अनुचित नहीं होगा कि एक तरफ जिला जदयू तिनका-तिनका जुटाकर संगठन को बूथ स्तर पर मजबूत करने का दावा करती रही और उधर अंहकार व उपेक्षा की आंधी ने संगठन के सक्रिय कार्यकर्ताओं के एक बड़े कुनबे को ही तहस-नहस कर जिला जदयू को एक बड़ा नुकसान कर डाला.


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