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अंग्रेज कोड़े बरसाते रहे और उनके मुंह से निकलता ही रहा ‘भारत माता की जय’




लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : स्वतंत्रता संग्राम में जिले के परबत्ता थाना क्षेत्र से करीब दो दर्जन अधिक लोगों ने अपनी महती भूमिका निभाई थी. इन्हीं में से एक  परबत्ता प्रखंड के कवेला पंचायत अन्तर्गत डुमरिया खुर्द निवासी स्व. शालिग्राम मिश्र उर्फ चन्द्रशेखर का नाम काफी सम्मान के साथ लिया जाता है. स्वतंत्रता सेनानी स्व. शालिग्राम मिश्र का जन्म एक साधारण परिवार में 1917 ई. में हुआ था. जिन्होंने भारतीय पर अंग्रेजों के अत्याचार को देखकर खुद जीवन देश के नाम कर दिया और वे  आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.

चन्द्रशेखर आजाद के विचार से थे प्रभावित

शालिग्राम मिश्र महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद के विचार से काफी प्रभावित थे और उनके प्रति उन्हें अगाध प्रेम था. बताया जाता है कि 1930. ई. में जब कांत्रिकारी शालिग्राम मिश्र पिकेटिंग में भाग लेने के लिए गए तो उनपर अंग्रेजों ने जमकर कोड़े बरसाए. कहा जाता है कि जब स्व. मिश्र के जिस्म पर कोड़े बरसाए जा रहे थे तो उनके मुख से भारत माता की जय निकलता रहा और उन्होंने अंग्रेज को अपना नाम चन्द्रशेखर बताया. यह कहानी उनके चन्द्रशेखर आजाद के प्रति लगाव को बतलाता है. उस वक्त स्व. मिश्र को लोग चन्द्रशेखर के ही नाम से पुकारा करते थे.



तेरह वर्ष की आयु में कारावास

स्व. मिश्र को तेरह साल की उम्र में प्रथम श्रेणी दंडाधिकारी एम.ए. वकील खां ने छह माह के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाया थी. इस सजा को उन्होंने मुगेंर तथा पटना के जेल में काटा. बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चन्द्रशेखर आजाद के आंदोलन में भाग लेते रहे.

1942 ई० के भारत छोड़ो आंदोलन में रही अहम भूमिका

महात्मा गांधी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में ‘करो या मरो’ का नारा दिया. इस आंदोलनों में दस हजार से अधिक भारतवासी शहीद हुए. एक लाख से अधिक आंदोलनकारियों को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. लेकिन आंदोलन की लौ गांव-गांव तक फैल गई थी और कई स्थानों पर ब्रिटिश शासन को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था. इस क्रम में बलिया, मुंगेर,  मुजफ्फरपुर,  सतारा, कोल्हापुर, तालचर,  तामलुक,  मुर्शिदाबाद आदि जैसे अनेक जिलों पर आंदोलनकारियों का कब्जा हो गया. जबकि बलिया पर पुनः नियंत्रण करने के लिए ब्रिटिश वायुसेना को बमबारी करनी पड़ी थी.

उधर ब्रिटिश दमन के कारण आंदोलन भयावह रुप से हिंसक हो उठा था. आंदोलनकारियों के द्वारा रेल पटरियों को उखाड़ दिया गया,  टेलीफोन के तारों को तहस-नहस कर दिया गया. साथ ही अनेकों डाकघरों को भी ध्वस्त कर डाला गया. जिससे देश में शासकीय संपत्ति को भारी नुकसान पंहुचा. इस आंदोलन में स्व. मिश्र ने भी बढ-चढ कर हिस्सा लिया. उस समय वे शिक्षक की  नौकरी पाकर बेगुसराय जिले में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे. दूसरी तरफ भारत छोडो आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज पुलिस ने दमन चक्र चलाकर स्व. मिश्र का करीब एक हज़ार रुपये का अनाज बर्बाद कर दिया और अंग्रेजों का अत्याचार व जुल्म को देखते हुए वे शिक्षक की नौकरी को त्याग कर स्वतंत्रता संग्राम कूद पड़े. इस दौरान कई बार उनके जिस्म पल अंग्रेजों ने कोडे भी बरसाए लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा.

सामाजिक कार्यों एवं साहित्य में भी रही थी गहरी रुचि

स्वतंत्रता सेनानी स्व. शालिग्राम मिश्र उर्फ चन्द्रशेखर सामाजिक कार्यों में भी काफी बढ़-चढ कर हिस्सा लिया करते थे. लोगों की मदद करने में वे सदैव आगे रहते थे. उन्होंने संस्कृत से आचार्य की उपाधि प्राप्त किया था. ऐसे में उनकी साहित्य में भी काफी रूचि थी और कई बार वे सम्मानित भी हो चुके थे.वे इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी के सदस्य भी हुआ करते थे.

76 वर्ष की आयु में निधन

उनके परिजन आशुतोष कुमार ने बताते हैं कि 10 मार्च 1993 में स्व० मिश्र का निधन उनके पैतृक आवास डुमरिया खुर्द में हुआ. उनकी धर्म पत्नी देवकी को राज्य एवं भारत सरकार की ओर से स्वतंत्रता सेनानी के परिजन के रूप पेंशन राशि दी जा रही है.  ग्रामीण बताते हैं कि स्वतंत्रता सेनानी स्व. शालिग्राम मिश्र लोगों को अंग्रेजों से लड़ाई करने के लिए प्रेरित भी किया करते थे. जबकि वे खुद चरखा चलाकर खादी वस्त्र तैयार कर धारण किया करते थे. आज भी अंग्रेजों के द्वारा स्व. मिश्र के जिस्म पर कोड़े की निशानी की कहानी सुनकर लोगों का रुह कांप जाता है.


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