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चुनावी मैदान में एनडीए समर्थित जदयू प्रत्याशी, दांव पर भाजपा की साख




लाइव खगड़िया (मनीष कुमार) : इस बार का चुनाव जिला भाजपा के लिए कई नजरिए से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. जिले में भाजपा के लिए इस बार पिछले चुनाव से स्थितियां पूरी तरह बदली हुई है. पिछले चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरने वाली जदयू के साथ भाजपा एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरी है. दूसरी ओर एनडीए में भाजपा की सहयोगी पार्टी लोजपा ने एनडीए से बाहर जाकर जिले के चारों सीटों पर जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया है. ऐसी जटिल स्थितियों में जिले के भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए पहली परीक्षा गठबंधन धर्म निभाने की होगी. साथ ही उन्हें इस चुनाव में यह भी साबित करना है कि उनकी साख व विश्वास जनता के बीच कहीं अधिक है. 

वर्ष 2015 के चुनाव में जदयू और राजद के बीच गठबंधन था और जिले के चार सीटों में से खगड़िया, परबत्ता व बेलदौर की सीट से जदयू के उम्मीदवार ने जीत का परचम लहराया था. साथ ही अलौली की सीट पर राजद प्रत्याशी ने जीत की इबादत लिख दी थी. उस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में रामानुज चौधरी ने भी परबत्ता की सीट से अपनी किस्मत आजमाई थी. लेकिन विगत चुनाव में भाजपा सहित एनडीए के घटक दल हम व लोजपा के उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा था और उस चुनाव में जिले में एनडीए का हाथ खाली रहा था. 

लेकिन इस बार जदयू एक बार फिर अपनी पुराने सहयोगी पार्टी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरी है. जबकि लोजपा ने एनडीए से किनारा करते हुए जदयू के खिलाफ जिले के चारों सीटों पर प्रत्याशी उतार दिया है. इस बदले हुए माहौल में भाजपा के जिला रणनीतिकारों की भी परीक्षा होनी है. रोचक पहलू है कि लोजपा ने जिले में जिन चार पहलवानों को चुनावी मैदान में उतारा है, उनमें से तीन कल तक जदयू या फिर भाजपा के ही सिपाही थी. उल्लेखनीय है कि खगड़िया से लोजपा ने रेणु कुशवाहा, परबत्ता से बाबूलाल शौर्य व अलौली से रामचन्द्र सदा को उम्मीदवार बनाया है. बिहार सरकार के पूर्व रेणु कुशवाहा बीते वर्ष लोकसभा चुनाव के पूर्व टिकट बंटवारें से नाराज होकर भाजपा से इस्तीफा दे दिया था. जबकि इसके पूर्व वे जदयू में रहीं थीं और करीब 9 वर्षों तक नीतीश कैबिनेट में मंत्री रह चुकी है. जबकि बाबूलाल शौर्य भाजपा के जिलामंत्री थे और राजग घटक दलों के बीच भाजपा कोटे में सीट नहीं आने के बाद वे टिकट के साथ लोजपा उम्मीदवार बन बैठे हैं. इसी तरह लोजपा प्रत्याशी रामचंद्र सदा वर्ष 2010 में जदयू की टिकट पर अलौली से चुनाव जीते थे. दूसरी तरफ इस बार एनडीए के घटक दलों के बीच जिले की चारों सीट जदयू कोटे में रही है और जदयू ने खगड़िया से पूनम देवी यादव, परबत्ता से डॉ संजीव कुमार, बेलदौर से पन्नालाल पटेल और अलौली से साधना देवी को मैदान में उतारा है. 


वैसे भी गठबंधन की स्थिति में चुनावी रणनीति बनाना किसी भी दल के लिए काफी कठिन काम होता है. इस काम में सहयोगी दल का मूड मिजाज भांपने के साथ ही उसे साधे रखने और अपने दल को मजबूत बनाने की भी जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जिले में भाजपा के सामने कुछ ऐसी ही जटिल स्थिति है. एक तरफ भाजपा जिले में अपनी स्थिति को मजबूत बनाना चाहती है और दूसरी तरफ उसे संगठन के शीर्ष नेतृत्व के निर्देशों का पालन करते हुए एनडीए प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने व गठबंधन धर्म का पालन भी एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में देखना दीगर होगा कि भाजपा के जिलाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह, पूर्व जिलाध्यक्ष रामानुज चौधरी व अर्जुन शर्मा सहित पार्टी के अन्य वरीय पदाधिकारी जिले में संगठन को अनुशासन की डोर से बांध रखने में कहां तक सफल होते हैं.

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