लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : भारतीय संस्कृति की परंपरा के अनुसार किसी की मृत्यु होने पर मुखाग्नि मृतक का बेटा, भाई, भतीजा, पति या पिता ही देता है. कोई मां, बेटी, बहन या पत्नी किसी का तारण कर सकती है या नहीं, इसको लेकर कई तरह के तर्क व वितर्क दिए जाते हैं. एक वो जमाना भी था जब श्मशान घाट पर महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी. लेकिन जिले के परबत्ता प्रखंड के सियादतपुर अगुवानी पंचायत के डुमड़िया बुजुर्ग में दत्तक पुत्री सोनल कुमारी ने अपनी मां को मुखाग्नि देकर पुरानी रुढ़िवादी परपंरा को मानने वालों को आइना दिखा दिया है.
दरअसल खादी ग्रामोद्योग संगठन के सेवानिवृत्त कर्मी डुमड़िया बुजुर्ग निवासी राधाकांत चौधरी व उनकी धर्मपत्नी रुपकला देवी के दांपत्य जीवन में जब लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी भांजी की ही बेटी के समान परवरिश करने लगे. फिर वक्त का पहिया घूमता गया और भांजी की शादी हो गई. बाद के दिनों में भांजी की पुत्री सोनल कुमारी को उस दंपत्ति ने विधिवत रूप से गोद ले लिया और उनकी लालन-पालन से लेकर पढाई तक की सारी जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली. दो वर्ष पूर्व उनकी दत्तक पुत्री सोनल ने बिहार पुलिस में योगदान दिया और वर्तमान में वे बक्सर जिले में पदस्थापित है.
इस बीच रुपलता देवी ने विगत वर्षों की तरह इस साल भी अपनी दत्तक पुत्री सोनल के लिये जितिया व्रत का उपवास रखा. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था और उपवास के दौरान ही रूपकला देवी इस दुनिया को छोड़ विदा हो गई. रूपकला देवी के निधन के बाद उनकी दत्तक पुत्री ने एक बेटे सा फर्ज अदा करते हुए ना सिर्फ मां स्वरूपा रूपलता देवी की अर्थी को अपना कांधा दिया बल्कि उन्होंने ही मुखाग्नि भी दी.
ग्रामीण बताते हैं कि रुपकला देवी एक अत्यंत ही धर्मपरायण महिला थी और उनका साल में आधे से अधिक दिन उपवास और व्रतों में ही बीतता था. उधर मातृ शोक में डूबी सोनल कुमारी बतातीं हैं कि उन्हें इस बात का जीवन भर मलाल रहेगा कि उन्होंने अपनी मां के लिए वो नहीं कर पाई, जो वो करना चाहती थी. बावजूद इसके बेटी होकर एक बेटे का फर्ज अदा करने पर उन्हें खुद में संतोष भी है. बहरहाल पुरानी रीतियों को तोड़ समाज के सामने एक नजीर पेश कर सोनल सुर्खियों में है.