
लोजपा/लोजपा (रा) : सिर्फ नाम व नेतृत्व बदला, नहीं बदली पार्टी की कार्यशैली !
लाइव खगड़िया (मनीष कुमार मनीष) : लोजपा (रा) के पूर्व जिलाध्यक्ष शिवराज यादव सहित पार्टी के 38 नेताओं के सामूहिक इस्तीफा के बाद जिले के राजनीतिक जगत में चर्चाएं गर्म है और एक बार फिर लोजपा के शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे है. हालांकि लोजपा नेतृत्व द्वारा कार्यकर्ताओं के समर्पण व संघर्ष की उपेक्षा का यह कोई पहला मामला नहीं हैं और पार्टी का टिकट वितरण प्रणाली पहले से ही चर्चाओं में रहा है. लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी ने उस कठिन वक्त को भी देखा था, जब रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस और बेटे चिराग पासवान के बीच खींच – तान मच गई थी और आखिरकार पार्टी दो भाग में बंट गया. जिसमें से एक का नेतृत्व पशुपति पारस करने लगे और चिराग पासवान के नेतृत्व में लोजपा (रा) अस्तित्व में आया. यह वो दौर था जब लोजपा (रा) को नए सिरे से संगठनात्मक ढांचा तैयार करना था और जमीनी स्तर पर उन्हें अपनी पहचान बनानी थी. उस वक्त जिले में यह दायित्व शिवराज यादव को मिली और वे लोजपा (रा) के जिलाध्यक्ष बनाये गए. जिसके बाद निरंतर शिवराज यादव पार्टी को मजबूत करने की दिशा में पहल करते रहे और विभिन्न मुद्दों को लेकर वे सड़क पर उतर पार्टी को एक नई पहचान देने में लगे रहे. इस बीच लोकसभा चुनाव में एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे में खगड़िया संसदीय सीट लोजपा (रा) के कोटे में आई और टिकट की रेस में पार्टी के तत्कालीन जिलाध्यक्ष शिवराज यादव का नाम भी सामने आया. लेकिन उस वक्त जब लोजपा (रा) ने खगड़िया संसदीय सीट के लिए पार्टी उम्मीदवार के तौर पर भागलपुर के राजेश वर्मा के नाम की घोषणा की तो एक बार फिर लोजपा की टिकट वितरण प्रणाली पर सवाल उठने लगा. हालांकि ऐसे तमाम सवालों पर चुप्पी साधते हुए चुनाव में पार्टी के जिलाध्यक्ष शिवराज यादव सहित स्थानीय नेताओं का राजेश वर्मा को भरपूर साथ मिला और उन्होंने चुनाव भी जीत ली. लेकिन उसके बाद जिलास्तर पर लोजपा (रा) में गुटबाजी का दौर शुरू हुआ और इस माह ही शिवराज यादव की जगह मनीष कुमार को जिलाध्यक्ष की कमान दी गई. जिसके बाद पार्टी में विद्रोह की आग भभक गई और पूर्व जिलाध्यक्ष शिवराज यादव सहित पार्टी के दर्जनों नेताओं ने पार्टी की कार्यप्रणाली और स्थानीय सांसद पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी.
दरअसल, चिराग पासवान ‘बिहार फस्ट, बिहारी फस्ट’ जैसे स्लोगन के साथ भले ही एक नई युवा सोच को प्रर्दशित करने में लगे हो, लेकिन लोजपा (रा) भी स्व रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा की राह पर चलती हुई दिखाई दे रही है. बात 2015 की है. उस वक्त भी युवा लोजपा के तत्कालीन जिला अध्यक्ष सुशांत यादव ने पार्टी की कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाते हुए से पार्टी से नाता तोड़ लिया था. उल्लेखनीय है कि सुशांत यादव लोजपा से बेलदौर विधानसभा से टिकट के दावेदार थे. लेकिन यहां से पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी नहीं बनाया. जिसके बाद सुशांत यादव ने भी उस वक्त पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगते हुए यहां तक कह डाला था कि लोजपा नेतृत्व को कार्यकर्ताओं की नहीं, बल्कि परिवार की चिंता है. साथ ही उन्होंने पार्टी पर लेन-देन के आधार पर टिकट बांटने तक का आरोप लगा दिया था. उनके इस आरोप को उस वक्त फिर हवा मिल गई, जब विगत लोकसभा चुनाव में जिले के तमाम लोजपा (रा) कार्यकर्ताओं की भावनाओं को रौंदते हुए पार्टी ने भागलपुर से खगड़िया संसदीय सीट के लिए उम्मीदवार आयात किया था. उल्लेखनीय है कि स्व. रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा को भी पार्टी के कठीन दौर में सुशांत यादव का भरपूर साथ मिला था. लेकिन उस वक्त भी पार्टी के संघर्ष के दिनों के कार्यकर्ता को तरहीज नहीं दी गई थी और आखिरकार सुशांत यादव ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया था.
बहरहाल, लोजपा (रा) के जिलाध्यक्ष के तौर पर अपने संघर्ष और मेहनत के दम पर जिले की राजनीति जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले शिवराज यादव ने अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लेकिन लोजपा (रा) छोड़ने के बाद पार्टी एवं पार्टी के स्थानीय सांसद के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है. उनके इस तेबर से लोजपा (रा) को कितना नुक़सान होता है, यह तो वक्त ही बताएगा. इधर शिवराज यादव सहित दर्जनों कार्यकर्ता व नेताओं द्वारा पार्टी छोड़ने का मामला चर्चाओं में हैं.