रजनीकांत की बड़ी जीत के क्या हैं मायने ?
लाइव खगड़िया (मनीष कुमार) : मैदान खेल का हो फिर राजनीति का… खिलाड़ी खेलने के लिए मैदान में जब उतरते हैं तो जीत-हार एक ही सिक्के के दो पहलू बन ही जाते हैं. इस खेल में किसी की जीत होती है तो किसी की हार. लेकिन जब कोई खिलाड़ी राजनीति के धुरंधरों की रणनीति को धत्ता साबित करते हुए बड़ी जीत की पटकथा लिख दें तो चर्चाएं होना लाजिमी है. इस जीत के मायने तब और भी बढ़ जाते हैं, जब खिलाड़ी खुद मैदान में उपस्थित ना हो और उनकी प्रतिबिंब ही राजनीतिक धुरंधरों के पसीने छुड़ा दे. माना जा सकता है कि पार्टी व जाति की राजनीति में उलझी जिले की राजनीति को रजनीकांत की बड़ी जीत ने एक नई दिशा दिखा दी है. हलांकि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं था. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि इस चुनाव में जिले के राजनीति के कई शूरमाओं की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भागीदारी रही थी. निश्चय ही रजनीकांत भी एक छात्र संगठन से नाता रखते हैं. लेकिन इस जीत को किसी संगठन विशेष की जीत के बंधनों से कतई नहीं बांधा जा सकता. यह जिले के एक युवा के जोश व जज्बे की जीत है, उनके संघर्ष व समर्पण की जीत है.
गौरतलब है कि रजनीकांत ने जेल में रहकर जिला परिषद क्षेत्र संख्या एक से जिला परिषद सदस्य पद पर ऐतिहासिक 8738 मतों के अंतर से जीत दर्ज की है. उन्होंने छात्र राजद से राजनीति की शुरुआत की थी. लेकिन बाद में उन्होंने एआइएसएफ की सदस्यता ग्रहण कर लिया और वर्तमान में वे एआइएसएफ के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं. फिलहाल वे एक मामले में कई महिनों से जेल में हैं. उन्होंने नामांकन भी जेल में रहते ही कराया था और फिर अलौली के जिला परिषद क्षेत्र संख्या एक से जिप सदस्य पद पर राजद के जिला अध्यक्ष कुमार रंजन ‘पप्पू’ की पत्नी रेणू कुमारी को करारी शिकस्त दी. उल्लेखनीय है कि अलौली विधानसभा की सीट राजद के कब्जे में है.
संघर्ष व सेवा के बल पर रजनीकांत बढ़े आगे
घटना 23 मई 2017 की है. जब संसारपुर के नजदीक ट्रेन से गिरकर हादसे में अपना दोनों पैर गंवा चुकी एक अंजान लड़की को चिकित्सकों के द्वारा सदर अस्पताल से रेफर करने कर दिया गया था. ऐसे में रजनीकांत ने मानवता दिखाई थी और उस अंजान लड़की के इलाज के लिए वे भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल उनके साथ गए थे. बाद में पीड़िता की पहचान जिले के अलौली प्रखंड के आनंदपुर प्रास गांव के सचितानंद यादव की बेटी रिंकी के रूप में हुई थी. रिंकी के परिजनों के हॉस्पिटल पहुंचने के पूर्व जिन्दगी व मौत से जूझ रही पीड़िता को रंजनीकांत की पहल से ही भागलपुर में ब्लड मिला और उन्होंने उनकी जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतना ही नहीं रिंकी के कटे पैरों के जख्म भरने के बाद उसे राजस्थान के उदयपुर स्थिति नारायण सेवा संस्थान में कृत्रिम पैर लगवाने तक रजनीकांत एक सार्थक पहल करते रहे. पीड़िता को कृत्रिम पैर लगवाने के क्रम में रजनीकांत को दो सप्ताह तक राजस्थान के उदयपुर में भी प्रवास करना पड़ा था.