14 दिवसीय मधुश्रावणी पूजा को लेकर बना भक्ति का माहौल
लाइव खगडिया (मुकेश कुमार मिश्र) : मिथिला संस्कृति का लोकपर्व मधुश्रावणी पूजा शुक्रवार को अखंड सौभाग्य की कामना के साथ शुरू हो गया. इस क्रम में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर नवविवाहिता विधि-विधान से पूजा आरंभ किया. इसके पूर्व गुरुवार को नहाय खाय की ऱस्म अदा की गई थी. चौदह दिवसीय पूजा को लेकर भक्ति का माहौल बन चुका है पूजा के प्रथम दिन नवविवाहिता को सुहागिन महिलाओं ने सुहाग दिया. साथ ही नवविवाहिता ने सुहागिन महिलाओं को मेंहदी एवं अन्य सामग्री भेंट किया और कथा वाचक के द्वारा प्रथम दिन शीत बसंत एवं बिषहरी की कथा का श्रवण नवविवाहिता को कराया गया.
पूजा के पहले दिन नाग-नागिन व उनके पांच बच्चे (बिसहरा) को मिंट्टी से गढ़ा गया. साथ ही हल्दी से गौरी बनाने की परंपरा पुरी की गई. 14 दिनों तक हर सुबह नवविवाहिताएं फूल और शाम में पत्ते तोड़ेगी .इस त्यौहार के साथ प्रकृति का भी गहरा नाता है. मिट्टी और हरियाली से जुड़े इस पूजा के पीछे आशय पति की लंबी आयु होती है.
ससुराल से श्रृंगार पेटी
यह पूजा नवविवाहिताएं अक्सर अपने मायके में ही करती हैं. पूजा शुरू होने से पहले ही उनके लिए ससुराल से श्रृंगार पेटी आ चुकी है. जिसमें साड़ी, लहठी (लाह की चूड़ी), सिन्दूर, धान का लावा, जाही-जूही (फूल-पत्ती) होता है. मायकेवालों के लिए भी तोहफे शामिल है.
माता गौरी के गाए जाते हैं गीत
सुहागिनें फूल-पत्ते तोड़ते समय और कथा सुनते वक्त एक ही साड़ी हर दिन पहनती हैं. पूजा स्थल पर अरिपन (रंगोली) बनायी जाती है. फिर नाग-नागिन, बिसहरा पर फूल-पत्ते चढ़ाकर पूजा शुरू किया गया.
नाग नागिन पर बासी फूल चढाया गया
नवविवाहित काजल, रिचा , शिवानी, जया भारती, निधि आदि ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि माता गौरी को बासी फूल नहीं चढ़ता जाता है और नाग-नागिन को बासी फूल-पत्ते ही चढाया जाता है. पूजा के प्रथम दिन मैना (कंचू) के पांच पत्ते पर हर दिन सिन्दूर, मेंहदी, काजल, चंदन और पिठार से छोटे-छोटे नाग-नागिन बनाया जाता है. कम-से-कम 7 तरह के पत्ते और विभिन्न प्रकार के फूल पूजा में प्रयोग किया जाता है.
पुरोहित के रूप में महिला पंडित
मिथिलांचल का इकलौता ऐसा लोकपर्व है, जिसमें पुरोहित की भूमिका में महिला ही होती हैं. इसमें व्रतियों को महिला पंडित न सिर्फ पूजा बल्कि कथावाचन भी करती हैं. व्रतियां पंडितजी को पूजा के लिए न सिर्फ समझौता करती हैं, बल्कि इसके लिए उन्हें दक्षिणा भी देती हैं. यह राशि नवविवाहिता के ससुराल से आती है पंडित जी को वस्त्र व दक्षिणा देकर व्रती विधि-विधान व परंपरा के अनुसार व्रत करती है. कहा जाता है कि इस पर्व में जो पत्नी -पति गौड़ी-विषहरा की आराधना करते हैं, उसका सुहाग दीर्घायु होता है. व्रत के दौरान कथा के माध्यम से उन्हें सफल दांपत्य जीवन की शिक्षा भी दी जाती है.
फूल लोढ़ने की परंपरा
जब नवविवाहिता सज धज कर फूल लोढ़ने के लिए बाग-बगीचे में सखियों संग निकलती हैं, तब घर-आगन, बाग-बगीचा, खेत -खलिहान व मंदिर परिसर में इनकी पायलों की झंकार व मैथिली गीतों से माहौल एक अपना एक अलग ही रंग ले लेता है. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण को लेकर बहुत सी परंपरा देखने को नहीं मिल सकती है. पूजा के दौरान नवविवाहिताएं दिन में फलाहार के बाद रात में ससुराल से आए अन्न से तैयार अरवा भोजन ग्रहण करतीं हैं.