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एक ऐसे शिक्षक जो अध्यापन कार्य के दौरान कभी कक्षा में कुर्सी पर नहीं बैठे – Live Khagaria
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एक ऐसे शिक्षक जो अध्यापन कार्य के दौरान कभी कक्षा में कुर्सी पर नहीं बैठे




लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : जिले के परबत्ता प्रखंड अंतर्गत कवेला पंचायत के डुमरिया खुर्द गांव निवासी साहित्यकार व शिक्षाविद् जनार्दन राय की अनुशासन आज भी शिक्षकों के लिए एक प्रेरणा है. अपनी सारी उम्र साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित कर देने वाले श्री राय की एक अलग पहचान शिक्षकों के बीच रही है. उनका जन्म 1925 ई० में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा श्री कृष्ण उच्च विद्यालय नयागांव एवं उच्च शिक्षा टीएनजे कॅालेज भागलपुर से पूरी की थी. अब यह कॅालेज टीएनबी के नाम से जाना जाता है. 1950 ई० में हिन्दी विषय से उन्होंने एमए तथा डीआईपी इन एड की डिग्री प्राप्त किया था. वक्त के साथ वो उसी विद्यालय में एक शिक्षक के रूप में प्रतिनियुक्त हुए, जहां कभी उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की थी. उस विद्यालय में 1950 से 1952 ई० तक एक शिक्षक तौर पर अपनी सेवाएं देते रहे. 1952 ई० में वे सारण जिले के शीतलपुर हाईस्कूल में चले गये. जिसके उपरांत वे उसी जिले के एक प्रतिष्ठित विद्यालय जय गोविन्द हायर सकेंडरी स्कूल दीघवाडा का उप प्राचार्य बनें. जबकि 1969 ई० में तत्कालीन दरभंगा जिले के उच्च विद्यालय भगवानपुर देशवा में प्रधानाध्यापक पद पर सेवा देते हुए वहीं से 1982 ई० में सेवानिवृत्त हो गए.

अनुशासन के लिए सदैव रहे चर्चाओं में

शिक्षक जनार्दन राय अनुशासन के प्रति बेहद ही गंभीर रहते थे. अपने अध्यापन कार्य के दौरान उन्होंने कभी भी कक्षा में कुर्सी पर बैठकर बच्चों को शिक्षा नहीं दी. यहां तक ही छात्रों की उपस्थिति पंजी भी वे खड़े होकर ही बनाते थे. समय पर विद्यालय आना और समय से विद्यालय छोडना उनकी आदतों में शुमार रहा था.

विभाग के वरीय पदाधिकारी की पैरवी को भी गये थे टाल

बात उन दिनों की है जब वे प्रधानाध्यापक हुआ करते थे. इसी दौरान एक बार विभागीय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन्हें अपने विद्यालय में एक ऐसे छात्र का नामांकन करने का आदेश दिया जो राज्य के एक उच्च पद पर बैठे राजनीतिज्ञ का पोत्र था. जिसपर उन्होंने पैरवी करने वाले विभागीय पदाधिकारी को नामांकन के अंतिम तिथि के बाद किसी छात्र का नामांकन नहीं करने के उन्हीं के लिखित आदेश का हवाला देते हुए छात्र के नामांकन से इंकार कर दिया. साथ ही उन्होंने लिखित आदेश के बाद ही नामांकन लेने की बात कह डाली. उस वक्त उनके ईमानदारी की बातें राज्यभर में फैल गई और अपनी इसी ईमानदारी की वजह से वे वर्षों तक शिक्षक संघ के पदाधिकारी के पद पर विराजमान रहे. साथ ही वे दरभंगा, समस्तीपुर जिला शिक्षक संघ के पदाधिकारी रहते हुए राज्य कार्यकारिणी के सदस्य भी बने.

माध्यमिक शिक्षक संघ में भी रहा महत्वपूर्ण योगदान

बिहार के निजी उच्च विद्यालय को राजकीयकृत की घोषणा को लेकर राज्य के माध्यमिक शिक्षकों के द्वारा आंदोलन किया जा रहा था. इस आंदोलन में श्री राय भी काफी सक्रिय रहे थे. जिसकी वजह से उन्हें हजारीबाग के चंदबाडा कैम्प जेल भी जाना पड़ा था. शिक्षक के आंदोलन का परिणाम यह रहा कि बिहार के अराजकीयकृत माध्यमिक स्कूल को राजकीयकृत करने की घोषणा सरकार को करनी पड़ी थी.

श्री राय की टोपी की भी थी अपनी अलग पहचान

श्री राय 1948 ई० में बीए की परीक्षा दे रहे थे. परीक्षा तिथि के दिन ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हो गई और परीक्षा रद्द हो गया. इस घटना से वे इतने मर्माहत हुए कि उसी दिन से उन्होंने गांधी टोपी पहनना प्रारंभ कर दिया.

चर्चित रही है जनार्दन राय की कई कृतियां

साहित्यकार व सेवानिवृत्त शिक्षक जनार्दन राय की कई कृतियों. पाठ्य पुस्तक में भी शामिल हुई. जिसमें गीत अगीत, देवाधीदेव, प्ररेणा प्रदीप, रीत पूनीत आदि प्रमुख हैं. साथ ही उनके द्वारा कई शैक्षणिक पुस्तक व नाटक भी लिखे गये हैं. इस बीच राज्य संघ द्वारा प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘प्राच्य प्रभा’ में वे वर्षों तक संपादकीय विभाग से जुड़े रहे. इनकी रचना महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली के पत्र- पत्रिका में भी प्रकाशित होती रही है. साथ ही पटना व दरभंगा आकाशवाणी से शैक्षणिक विषय सहित उनके कविताओं का भी प्रसारण होता रहा है.

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प्रशासनिक सम्मान से रहे हैं अबतक उपेक्षित

प्रतिभावान साहित्यकार सह सेवानिवृत्त शिक्षाविद् जनार्दन राय को आज तक जिला प्रशासन के द्वारा कभी भी किसी मौके पर सम्मानित नहीं किया जा सका है. हलांकि श्री राय या उनके परिजनों को इसके लिए कोई मलाल भी नहीं है. लेकिन अपने जीवन के युवा काल में स्वतंत्रता संग्राम में एवं उसके बाद साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले श्री राय को यूं भूलाना भी उचित नहीं है.

दिल्ली की संस्था ने किया था सम्मानित

शिक्षा के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए दिल्ली की संस्था जगदीश चौरसिया मेमोरियल ट्रस्ट ने द्वारा उन्हें वर्ष 2015 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॅाड से नवाज़ा गया था. साथ ही वे राज्य के दूरदर्शन के साहित्य सांस्कृतिक संस्थान के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अमूल योगदान के लिए सम्मान पा चुके है.

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