शीतलता का प्रतीक ‘सतुआनी’ पर्व रविवार को,अगले दिन जूड़शीतल
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : लोक पर्व सतुआनी इस वर्ष 14 अप्रैल रविवार को है.इस अवसर पर श्रद्धालुओं के द्वारा गंगा स्नान कर नई मिट्टी का घड़ा, नए चने की सत्तू, आम का टिकोला, तार के पंखे आदि दान किया जाता है.पर्व के अगले दिन 15 अप्रैल को जूड़शीतल है. बैसाख मास के आगमन के अवसर पर मनाया जाने वाला इस पर्व के पहले दिन को सतुआनी कहा जाता है.जबकि दुसरे दिन को जूड़शीतल कहा जाता है.इस मौके पर नए चने की सत्तू व चटनी खाने की परंपरा रही है.जिसके उपरांत ही भोजन बनता है.जबकि अगले दिन बासी भात व बड़ी खाने की परंपरा रही है.

इस पर्व की महत्ता इसलिए भी है कि यह गर्मी में शरीर को शीतल प्रदान करने का संदेश देता है.बैशाख माह का स्वागत गेहूं की नयी फसल से किया जाता है. गर्मी और धूप की तपिश के अभिनन्दन एवं जीवन सुरक्षित करने का यह एक उद्देश्यपूर्ण पर्व है. जो पूर्वजों के सूझ-बूझ को भी दर्शाता है.जिन्होंने उत्सव के माध्यम से जीवन को प्रकृति से जोड़ कर मानवीय संवेदना से भी उसे जोड़ दिया.इसमें जल का स्थान सर्वोपरि है और माना भी जाता है कि जल ही जीवन है.

दो दिवसीय इस पर्व के दूसरे दिन सुबह-सवेरे उठकर बुजुर्ग महिलाएं घर के सभी सदस्यों के सिर पर बासी पानी डालकर शीतलता का एहसास कराती हैं और साथ ही आंगन को पानी से सराबोर कर दिया जाता हैं.इस दौरान मिट्टी से उठती सोंधी गंध वातावरण को प्रफुल्लित बना देती है.पौधे पानी के स्पर्श मात्र से झूम उठते हैं.तुलसी-चौड़ा में मिट्टी का घड़ा टांग दिया जाता है.जिसके छोटे छेद से बूंद-बूंद गिरती जल से तुलसी का पौधा सिंचित होता रहता है.
पानी का एक एक बूंद अमृत के समान
बैशाख की चिलचिलाती धूप में पौधे जल के लिए लालायित रहते हैं .पानी की एक-एक बूंद इनके लिए अमृत बन जाता है.जड़ से शीर्ष तक शीतलता प्रदान करने की कवायद की ही वजह से शायद पूर्वजों ने इस पर्व का नाम जूडशीतल रखा.आज भी गांव के लोग इस पुरानी परंपरा को बरकरार रखकर आने वाले पीढ़ी को यह बता रहे हैं कि मानव जीवन को किस तरह प्राकृतिक चीजों से प्रेम कर सुरक्षित रखा जा सकता है.समृद्ध विरासत को अगली पीढी तक पहुंचाने के संकल्प के साथ मधुबनी जिला निवासी मुक्ति झा ने मिथिला पेंटिंग के माध्यम से बड़ी ही खूबसूरती से इस पर्व को दर्शाया है.
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