सजने लगा है कन्हैया का दरबार,कृष्णाष्टमी कल
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला पर्व कृष्णष्टमी के मद्देनजर घर-घर तैयारियां जोरों पर हैै.इस वर्ष 2 सितम्बर को मनाया जाने वाला कृष्णाष्टमी व्रत सनातन धर्म के लिए अनिवार्य माना जाता है.जिसे मोह रात्रि अष्टमी व्रत भी कहा जाता है.ऐसे में समाज के सभी वर्गों के लोग भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते हैं.संसारपुर के स्थानीय पंडित अजय कांत ठाकुर की मानें तो विश्वविद्यालय मिथिला पंचाग के मुताबिक दो सितम्बर को संध्या 5:16 बजे में अष्टमी तिथि का प्रवेश हो रहा है.जबकि रोहिणी नक्षत्र का प्रवेश भी संध्या सात बजे से है.वहीं अष्टमी का समापन तीन सितम्बर को दोपहर 3:37 बजे होगा.ऐसे में 2 सितम्बर की सुबह से मध्य रात्रि यानी बारह बजे तक उपवास रखा जायेगा और अर्द्ध रात्रि के समय शंख तथा घंटों के साथ श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा.
दूसरी तरफ आयोजन को लेकर विभिन्न मंदिरों में तैयारियां अंतिम चरण में है.कुछ मंदिरों में रात के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खीरा चीर कर बालगोपाल की लीला,भजन ,गोविन्द उत्सव मनाया जायेगा.बताया जाता है कि इस क्रम में उपवास करने वाले भक्तों को कृष्णाष्टमी की रात्रि में “ऊँ नमोभगवतेवासुदेवाय”का जाप आवश्य करना चाहिए.विष्णु धर्म के अनुसार रोहिणी में कृष्णाष्टमी व्रत करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है और साथ ही अष्टमी व्रत फलदायी भी है.इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए.लेकिन फल ग्रहण किया जा सकता है.कृष्णाष्टमी की रात्रि “श्यामा तेरी आरती कन्हैया तेरी आरती सारा संसार करेगा…” जैसे भक्ति भजन से वातावरण गुंजायमान हो जाएगा.आमतौर पर यह व्रत घर घर किया जाता है.
त्याग और उपकार से ओतप्रोत कृष्णलीला :
श्री कृष्ण भगवान का जन्म द्वापर युग में हुआ था.श्री कृष्ण भगवान् धरती पर फैले अत्याचार व बुराइयों को मिटाने,दानवों व राक्षसों का वध करने, मानव जाति की रक्षा व लोक कल्याण का कार्य करने के लिए धरती पर अवतार लिए थे.उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति के भलाई का कार्य किया.सुदामा जैसे गरीब को अपना दोस्त बनाया और अपनी शरण में लिया.मामा कंस जैसे बलशाली राक्षस का वध किया और महाभारत में द्रोपदी की लाज बचाई .इस प्रकार श्री कृष्णा ने लोक कल्याण के लिए अनेकों कार्य किये.जिसकी वजह से ही आज कृष्ण भगवान को कन्हैया ,नंदलाला,गायों का ग्वाला, मुरलीवाला, बंशीवाले, मोहन मुरलीवाले,यशोदा का नन्दलाल ,गोपियों का ग्वाला आदि विविध नामों से प्यार से पुकारा जाता है. श्री कृष्ण भगवान बहुत ही नटखट थे.वे मथुरा की गोपियों को अपने इशारो पर नचाते थे और गोपियों की दही से भरी हांड़ी को फोड़ देते थे.साथ ही मथुरा की गुजरियों का दही खा जाते थे और गोपियों के साथ नाचते-गाते थे.ऐसे नटखट कार्य और मानव जाति के लिए किया गया त्याग और उपकार की वजह से लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
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