कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों… जी हां, आत्मविश्वास के बल पर आत्मनिर्भर बनाने की यह कहानी एक ऐसे दिव्यांग की है, जिसने गुरबत के वो दिन भी देखे थे, जब दो वक्त की रोटी के लिए भी वे मोहताज रहा करते थे. इस दौरान उन्हें काम के लिए परदेश भी जाना पड़ा, लेकिन हादसे में वे अपना बायां हाथ गंमा बैठे. लेकिन आज वे अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति से आत्मनिर्भर हैं और गांव में एक सफल व्यवसायी के रूप में जाने जाते हैं.
जिले के परबत्ता प्रखंड के कबेला निवासी रूबुल कुमार मिश्र पांच वर्ष पूर्व हरियाणा के किसी कंपनी में कार्यरत थे और कार्य के दौरान उनका बांया हाथ कट गया. जिसके बाद कंपनी ने इलाज करवाने के बाद उन्हें घर भेज दिया. हालांकि कंपनी की तरफ उन्हें पेंशन की तौर पर कुछ राशि मिल रही है. लेकिन मंहगाई के युग में जीवन यापन के लिए नाकाफी था. ऐसे में दिव्यांग हो चुके रूबुल ने अपने गांव में ही जेनरल स्टोर खोलकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने लगा. इस काम में हर मोड़ पर उन्हें अपनी पत्नी का साथ मिलता रहा. इतना ही नहीं वे बच्चों की पढाई के प्रति भी संवेदनशील रहे. कोरोना काल के बाद स्कूल खुलते ही उन्होंने एक ई-रिक्शा खरीदा और अपने बच्चों को कबेला से परबत्ता के एक स्कूल पहुंचने लगे. इन दिनों दिव्यांग रूबुल गांव के बच्चों को भी ई-रिक्शा से स्कूल पहुंचाने का काम करते हैं. साथ ही अपना जेनरल स्टोर भी चला रहे हैं. एक हाथ से दिव्यांग रुबुल 14 किलोमीटर की यात्रा ई-रिक्शा से बेहद ही सावधानी पूर्वक करते हैं. बताया जाता है कि रूबुल दिव्यांग होने के पूर्व दो ओर चार पहिया वाहन चलाते थे. रूबुल का बच्चों को स्कूल जाने के लिए बुलाने का तरीका भी अलग है. डुमरिया खुर्द निवासी डॉ अविनाश कुमार ने बताते हैं कि सुबह गांव की मुख्य सड़क पर जब भक्ति संगीत की आवाज सुनाई पड़ती है तो लोग समझ जाते हैं कि रूबूल बच्चों के साथ ई-रिक्शा लेकर स्कूल की ओर बढ़ रहे हैं.