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झूलनोत्सव विशेष : चलो सखा देखें सिया रघुवर झूलनवा झूली रहे – Live Khagaria
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झूलनोत्सव विशेष : चलो सखा देखें सिया रघुवर झूलनवा झूली रहे

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : जिले के परबत्ता प्रखंड अन्तर्गत खजरैठा गांव में अतिप्राचीन भगवान श्री राम मंदिर में पांच दिवसीय झूलनोत्सव रामायण परायण के साथ बुधवार से आरंभ हुआ.कार्यक्रम 26 अगस्त तक चलेगा.“मजा सावन की मौसम जो आईं हैं,दशरथ के बांके छैले ने झुला लगाईं हैं”, “शरत सुहावन अति मन ?भावन सावन सुखद अपार, झूले- परणति झूलत- अवध विहारी” आदि भावपूर्ण भक्ति संगीत से खजरैठा गांव में स्थित अति प्राचीन भगवान श्रीराम मंदिर में झूलनोत्सव कार्यक्रम  से माहौल भक्ति मय हो उठा है और साथ ही गांव में उत्साह का माहौल बना हुआ है.आयोजन के मद्दनजर भगवान श्री राम मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया गया है.जहां सुबह-शाम भक्ति संगीत का कार्यक्रम लगातार पांच दिनों तक चलेगा.बताया जाता है कि यह जिले के एकलौता मंदिर है जहां का झूलनोत्सव कार्यक्रम सदियों  पुरानी है.कार्यक्रम में अंग प्रदेश के मशहूर संगीत कलाकार भागलपुर जिले के सिमरा निवासी स्व.दिगंबर महंत के पुत्र नरेन्द्र महंज अपने पिता के विरासत में चार चांद लगाएं हुए हैं और अपने मधुर संगीत से श्रोतागण को मंत्र मुग्ध कर रहे है.संगीत कला से निपुण मंटू महंत के आगमन को लेकर संगीत प्रेमियों के बीच उत्साह का माहौल बना हुआ है.

भगवान श्री राम मंदिर का इतिहास :

खजरैठा गांव में भगवान श्री राम की मंदिर अति प्राचीन है.इस संदर्भ में पूर्व जिला परिषद सदस्य पंकज कुमार राय ने बताया कि हमारे पूर्वज स्व.गोपाल राय के द्वारा विक्रम संवत 1969  ई० में भगवान श्री राम मंदिर का स्थापना किया गया.उस वक्त अयोध्या से आए हुए पंडित राम दास जी के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था.सन् 1957 ई० में गंगा की गोद में मंदिर सहित गांव विलिन हो जाने के उपरांत पुन: स्व.छेदी प्रसाद राय एवं  स्व.लक्ष्मी नारायण राय ने मंदिर भवन निर्माण कर पूजा प्रारंभ किया.आज भी मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित भगवान श्री राम,लक्ष्मण,जानकी, हनुमान जी ,  लक्ष्मी नारायण, भगवान विष्णु, भगवान सालीग्राम का आकर्षक प्रतिमा देखकर भक्त भाव विहोर हो जाते हैं.

पालनें में झूल रहें भगवान :

सदियों से चली आ रही हैं परम्परा को स्थानीय स्व.गोपाल राय के वंशज आज भी बरकरार रखें हुए हैं.बताया जाता है कि वजनदार झूला चांदी का हैं.जिसके पालनें पर भगवान श्री राम के साथ लक्ष्मण, माता जानकी ,हनुमान जी, लक्ष्मी नारायण,भगवान विष्णु,भगवान सालीग्राम को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी से लेकर श्रावण की पूर्णिमा तक झूलनोत्सव किया जाता है.

पांच दिन तक बहेगी भक्ति की गंगा :

खजरैठा गांव में अवस्थित भगवान श्री  राम मंदिर के प्रागंण में आयोजित झुलनोत्सव कार्यक्रम में दूर दराज से आए हुए संगीत कलाकार अपना जलवा दिखाएगें और यहां लगातार पांच दिनों तक भक्ति संगीत की गंगा बहेगी. भक्ति संगीत के साथ कथा प्रसंग का भी श्रोतागण रस पान करेंगे.वहीं सुबह एवं संध्या बेला में विशेष पूजन के साथ प्रसाद का वितरण भी किया जाता हैं.इस मंदिर में झूलनोत्सव कार्यक्रम के अलावा रामनवमी,कृष्ण जन्मोत्सव,शरद् पूर्णिमा आदि मौके पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है.

श्रावण मास में झूलनोत्सव कार्यक्रम का एक विशेष महत्व :

श्री राम मंदिर का स्थापना के संबंध में स्थानीय पंकज कुमार राय ने बताते है कि स्व. गोपाल राय को संतान तो होती थी लेकिन कुछ समय के बाद उनकी मृत्यु हो जाती थी.ऐसे में अपने वंश को आगे बढ़ाने की चिंता में वे काफी परेशान रहते थे.इस दौरान अयोध्या से बड़े-बड़े पंडितों को बुलाया गया और उनके बीच मामले को लेकर गहन मंथन किया गया.वहीं पंडित राम दास जी ने बताया कि वंश आगे बढाने के लिए भगवान श्री राम एवं भगवान कृष्ण मंदिर का स्थापना करने से सारे संकट दूर हो जायेंगे. उसके बाद स्व. गोपाल राय के द्वारा भगवान श्री राम मंदिर का निर्माण किया गया और इसके उपरांत उनका वंश भी आगे बढा.साथ ही उन्होंने अपनी सारी जमीन मंदिर के नाम पर कर दिया.

झूलनोत्सव का महत्व :

कहा जाता है कि सावन में झूला झुलाने की परंपरा त्रेता से ही चली आ रही है और भारतीय संस्कृति में झूलनोत्सव का विशेष महत्व है. झूलनोत्सव की शुरूआत मणिपर्वत से ही होती है..मणिपर्वत से कई किवदंतिया जुडी हुई है.मान्यता है कि राजा जनक जब अपनी बेटी सीता के घर आए तो परंपरा के अनुसार बेटी के घर न रुक कर उन्होंने रुकने के लिए जो स्थान लिया उसके एवज में उन्होंने इतनी मणियां दे दी कि उसने पहाड़ का रूप धारण कर लिया और जिस स्थान पर वे रहते रहे उस स्थान का नाम जनकौरा पड़ा. जो वर्तमान में जनौरा के नाम से जाना जाता है. एक किवदंती यह भी है कि राजा कुश ने नागराज की बेटी पर क्रोधित होकर सम्पूर्ण नागवंश को समाप्त करने की बात कही तो नागराज ने इतनी मणियां उगली कि वह पर्वत बन गया.यही आगे चल कर मणि पर्वत के नाम से विख्यात हुआ. एक अन्य मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो सीता जी ने एक दिन यूं ही कह दिया कि हरियाली युक्त पर्वतों पर विचरण की याद आ रही है. उसी समय भगवान राम ने गरुण से वैसे ही पर्वत के निर्माण का आग्रह किया और गरुण ने मणियों से युक्त पर्वत का निर्माण कर दिया.जहां सीताजी क्रीड़ा करने आती रहीं.यहीं पर सावन में उनके लिए झूला पड़ता रहा.यही वजह है कि झूलनोत्सव मणिपर्वत से ही शुरू हुआ और सावन में झूला पूजा का खास महत्त्व रहा है.

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