
अंतिम वक्त में अपनों का नहीं मिला साथ तो डॉ गुलसनोबर का बढ़ा हाथ
लाइव खगड़िया : कोरोना वायरस का डर इस कदर कहर बरपा गया है कि संदेहास्पद मौत के बाद भी जानने व पहचाने वाले भी अलविदा तक कहने नहीं आ रहे हैं और लोग अंत्येष्टि में शामिल होने तक से परहेज करने लगे हैं. लेकिन इसी समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो तमाम खतरों से खेलते हुए ना सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं बल्कि मानवता का फर्ज व सामाजिक दायित्वों को निभाते हुए दोहरी जिम्मेदारी अदा कर एक मिसाल कायम कर रहे हैं. ऐसे ही कुछ नामों में एक नाम जिले के सदर अस्पताल में कार्यरत डॉ. गुलसनोबर का आता है. जिन्होंने वैश्विक महामारी के इस दौर में दोहरी भूमिका अदा करते हुए सामाजिक सौहार्द की एक ऐसी मिसाल कायम दी है, जिसे कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
दरअसल श्रमिक स्पेशल ट्रेन से एक युवक दिल्ली से खगड़िया पहंचा था. लेकिन खगड़िया जंक्शन पर उतरने के बाद 22 वर्षीय युवक की तबीयत बिगड़ गई और वो स्टेशन पर ही बेहोश हो गया. जिसके बाद स्टेशन पर मौजूद मेडिकल टीम ने उन्हें आनन-फानन में सदर अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया. लेकिन उनकी मौत हो गई. मृतक जिले के सदर प्रखंड के बछौता पंचायत का निवासी बताया जाता है. घटना की सूचना मिलते ही मृतक की बूढी मां सुधबुध खो बैठी. इस बीच कुछ ग्रामीण सदर अस्पताल जरूर पहुंचे. लेकिन युवक में कोरोना संक्रमण के लक्षण पाये जाने की भनक लगते ही सभी खिसक लिए.
दूसरी तरफ प्रशासन मृतक के परिजनों द्वारा शव ले जाने का इंतजार करती रही. लेकिन देर रात तक किसी परिजन व समाज के लोगों के नहीं पहुंचने के बाद प्रशासन के द्वारा शव का अंतिम संस्कार किये जाने का फैसला लिया गया. लेकिन सुरक्षा के तमाम एतियात बरतने के बाद भी जब कई कर्मी अपने हाथ खड़े कर दिये तो इस कार्य के लिए डॉ. गुलसनोवर सामने आये. बताया जाता है कि उन्होंने शव का हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार बीती देर रात अंतिम संस्कार किया. मामले का महत्वपूर्ण पहलू यह भी रहा कि डॉ गुलसनोबर मुस्लिम समाज से आते हैं. ऐसे में उन्हें हिन्दू रीती-रिवाज की अच्छी तरह से जानकारी नहीं थी. बावजूद इसके उन्होंने हिन्दू समाज के लोगों सहित यू-ट्यूब से रीति-रिवाज की जानकारी लेकर सम्मान के साथ अंत्येष्टि किया. बहरहाल मृतक का सैंपल जांच के लिए भेजे गया है. जांच की रिपोर्ट अपनी जगह है. लेकिन दोनों ही स्थितियों में डॉ गुलसनोबर द्वारा की गई पहल को समाज शायद कभी भूला नहीं पायेगा.