70 साल पूर्व का कुआं, आज भी बुझा रहा लोगों की प्यास
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : लगभग तीन दशक पूर्व तक अधिकांश गांवों में पेयजल एवं सिचाई के लिए सबसे अधिक प्रयोग कुआं का ही किया जाता था. लेकिन आज कुओं का वजूद समाप्त हो रहा है. अधिकांश लोग चापाकल व समर्सिबल पर निर्भर हो गए हैं और शहर की बात तो दूर गांव में भी अब लोग नल पर निर्भर होने लगे हैं. लेकिन जिले में एक ऐसा भी कुआं है जो 70 वर्षों से लोगों की प्यास बुझा रहा और पानी की जरूरतों को पूरा कर रहा है.
जिले के परबत्ता प्रखंड के कबेला पंचायत अंतर्गत डुमरिया खुर्द गांव से लगभग 5 किलोमीटर पश्चिम (पुरनकी) गोगरी अंचल के शिरनियां मौजा में दशकों पूर्व की कुंआ आज भी दो जिलों के सैकड़ों लोगों की प्यास बुझा रही है. हलांकि कई बार यह कुंआ गंगा के बाढ़ की विभिषका भी झेल चुका है. लेकिन कुंआ अपनी अस्तित्व को बरकरार रखा है. यह कुंआ खगड़िया-मुंगेर सीमावर्ती क्षेत्र झौवा बहियार के समीप है.
कुआं को लेकर डुमरिया खुर्द निवासी मुरारी ठाकुर व सुभाष ठाकुर ने बताया है कि 7 दशक पूर्व उनके पूर्वज स्व जगदम्बी ठाकुर ने अपने जमीन पर इसे स्थापित किया था. वहीं पहले डुमरिया खुर्द गांव बसा हुआ था. पीढ़ी दर पीढ़ी स्व ठाकुर के परिवार इस कुंआ को संरक्षित करने में लगे रहे. बताया जाता है कि यह कुंआ विष्णुपुर, कबेला, डुमरिया खुर्द, आश्रम गोगरी सहित मुंगेर जिले के हरिणमार आदि गांव के किसान व आमजनों की प्यास आज भी बुझा रही है. कहा जा रहा है कि दियारा इलाके में प्यास बुझाने के लिए यह एक मात्र कुंआ है. इस कुंआ के बदौलत ही दियारा क्षेत्र में आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित होता आ रहा है. इस कुएं की पानी की अपनी एक अलग पहचान है.
इधर डॉ अविनाश चन्द्र राय कहते हैं कि एक जमाने में कुआं जल संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन होता था. तपती धूप में कुआं मुसाफिरों के लिए पानी पीने का एक मात्र जरिया हुआ करता था. फ्रिज युग से पहले कुआं के पानी को ठंडा जल स्त्रोत माना जाता था. वर्षों पहले लोग कुआं जनहित में खुदवाते थे. लेकिन उपेक्षा के कारण आज कुआं का अस्तित्व समाप्त होने लगा है. साथ ही हमारी संस्कृति भी कुआं के पानी को शुद्ध मानती है. लोक आस्था का महापर्व छठ व्रत के दौरान भी व्रती कुआं के पानी से ही प्रसाद बनाती है.