संस्कृत महाविद्यालय का गौरवशाली अतीत झेल रहा वर्तमान की टीस
लाइव खगड़िया (मनीष कुमार) : जिले के सदर प्रखंड स्थित रहीमपुर के अवध बिहारी संस्कृत महाविद्यालय को आज भले ही छात्रों को पढाने के लिए समुचित वर्ग कक्ष तक नहीं हो, लेकिन इसका अतीत बड़ा ही गौरवशाली रहा है. संस्कृत भाषा के उत्थान में साथ ही सनातन संस्कृति जागरण में इस महाविद्यालय की अपनी ख्याति रही है. यहां सौ छात्रों के नि:शुल्क रहने, खाने-पीने व शिक्षा प्राप्त करने की व्यवस्था थी. इतना ही नहीं छुट्टी के समय घर जाने व आने के लिए छात्रों को महाविद्यालय की तरफ से खर्च भी मिलता था. लेकिन वक्त ने कुछ ऐसी करवट बदली कि यह सभी बातें आज अतीत की यादें बन कर रह गई है. सरकार व कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा की उदासीनता के कारण यह महाविद्यालय वर्तमान की टीस झेलने को विवश है.
बताया जाता है कि महाविद्यालय के पास करीब 1600 बीघा जमीन है. महाविद्यालय के संस्थापक अवध बिहारी बाबू ने संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए अपनी सारी भूमि महाविद्यालय के नाम कर दी थी. 1981 तक यह कॉलेज ट्रस्ट के अधीन संचालित थी. खेती से आई उपज यानी अनाज रखने को गोदाम, शिक्षक का आवास व छात्रावास, वर्ग कक्ष को लेकर पर्याप्त भवन कॉलेज के पास था. उस समय तक यहां की व्यवस्था पुरानी गरिमा का निर्वहन करते हुए आगे बढ़ रही थी. लेकिन 1978 में गंगा के कटाव में इसका वर्ग कक्ष व कार्यालय नदी में विलीन हो गया और महाविद्यालय समस्याओं से जूझने लगा. हालांकि उस वक्त ट्रस्ट ने पुन: व्यवस्था करनी शुरू ही की कि कॉलेज का अधिग्रहण कामेश्वर सिंह संस्कृत विवि, दरभंगा ने कर लिया. 1982 में यह कॉलेज कामेश्रर सिंह संस्कृत विश्व विद्यालय दरभंगा का अंगीभूति इकाई बन गई. जिसक साथ ही कुलपति की अध्यक्षता में गठित भू प्रबंध समिति कॉलेज का देखरेख करने लगी और साथ ही महाविद्यलय की स्थिति दिन -प्रतिदिन बिगड़ती ही चली गई. बताया जाता है कि कॉलेज की जमीन जिले के एनएच-31 के समीप सहित रहीमपुर दियरा, एकनियां, पचनियां, बरार, धमहरा एवं सहरसा जिले के कचौत में हैं और सरकार व विश्व विद्यालय प्रशासन की उदासीनता के कारण महाविद्यालय के भू-भाग अतिक्रमण व अवैध कब्जा का शिकार बन रहा है. बहरहाल अपने गौरवशाली अतीत को समेटे हुए जिले के अवध बिहारी संस्कृत महाविद्यालय को आज भी तारणहार का इंतजार है.