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आखिर किस दिशा की ओर बढ़ रहा परबत्ता की राजनीति ?




लाइव खगड़िया (मनीष कुमार) : टिकट पाने से लेकर चुनाव प्रचार तक में तनाव की जो स्थिति परबत्ता विधानसभा क्षेत्र में रही है, वो जिले के किसी अन्य विधानसभा क्षेत्रों में नहीं दिखी है. शायद यही कारण रहा है परबत्ता विधानसभा को जिले का सबसे हॉट सीट कहा जाने लगा है. हलांकि दूसरे चरण में तीन नवंबर को जिले में मतदान की प्रक्रिया संपन्न हो गई है. बावजूद इसके यहां कि स्थितियां नहीं बदली है और पक्ष व विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर जारी है. इस बीच चुनाव के दौरान जो तस्वीर उभरकर सामने आई है, उसने समाज को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर परबत्ता की राजनीति किस दिशा की ओर बढ़ती जा रही है.

लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अभिव्यक्ति का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार होता है और यह व्यवस्था ही लोकतंत्र को अन्य व्यवस्थाओं से अलग करता है. लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी है. लेकिन इस स्वतंत्रता को असीम व निर्बाध स्वतंत्रता के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए. शायद यह न तो किसी व्यक्ति के हित में है और ना ही यह व्यवस्था व समाज के लिए ही हितकर है. क्योंकि असीम व निर्बाध स्वतंत्रता किसी भी समाज को उच्छृंखलता की ओर ले जाती है और अंततः यही समाज के विघटन का कारण बनती है. चुनावी मौसम में कुछ ऐसी ही स्थिति इस बार परबत्ता में बन आई है.

मतदान के दिन जदयू उम्मीदवार डॉ संजीव कुमार पर हुए हमले, इसके पूर्व इसी प्रत्याशी के प्रचार वाहन को निशाना बनाना और उसपर सवार उनके समर्थक के साथ पिटाई का मामला जैसे कई अन्य मामले सामने आये हैं जो चुनाव के दौरान समर्थकों के बीच के तनाव को दर्शाता है. इसके पूर्व भी एक न्यूज चैनल के चुनावी कार्यक्रम के बाद दो प्रत्याशियों के समर्थकों के बीच नोक-झोंक का मामला सामने आया था. आरोप-प्रत्यारोपों से भरे सोशल साइट पर की राजनीतिक पोस्ट तो अपनी जगह है. उधर निष्पक्ष चुनाव के प्रशासनिक दावों के बीच लोजपा प्रत्याशी आदित्य कुमार शौर्य उर्फ बाबूलाल शौर्य ने 10 मतदान केन्द्रों पर फर्जी मतदान का आरोप लगाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गये थे. हलांकि तीसरे दिन उन्होंने अनशन तोड़ दिया है और मामले को कोर्ट में ले जाने की बातें कही है. हलांकि किस आरोप में कितनी सच्चाई है, यह एक जांच का विषय हो सकता है लेकिन मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद भी परबत्ता का राजनीतिक बबंडर थमता हुआ प्रतित नहीं हो रहा है. 10 नवंबर मतगणना होना है और परिणाम के बाद इसमें और उछाल आने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हलांकि जिला निर्वाचन पदाधिकारी ने विधि-व्यवस्था को लेकर विजय जुलूस पर रोक लगा दी है. लेकिन विजयी प्रत्याशी व उनके समर्थक इस आदेश पर कितना अमल करते हैं, यह देखना दीगर होगा. साथ ही पराजित उम्मीदवार के समर्थकों का संयम और प्रशासनिक व्यवस्थाओं का भी कड़ा इम्तिहान होना है.

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