कोरोना काल में गुम हुई चरखे की आवाज, बढ़ गई कामगारों की परेशानी
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : कोरोना की वजह से लॉकडाउन के बीच हर तरफ परेशानियों का आलम है. कोरोना के कारण उपजे वर्तमान हालात ने जिले के परबत्ता प्रखंड के सियादतपुर अगुवानी पंचायत के समृद्ध खादी भंडार डुमरिया बुजुर्ग केन्द्र पर सुनाई देने वाली चरखा की आवाज को भी गुम कर दिया है. कभी चरखा की संगीत से गुंजती केन्द्र पर आज में विरानी छाई हुई है. बताया जाता है कि इस केन्द्र की वजह से सियादतपुर अगुवानी पंचायत के डुमरिया बुजुर्ग गांव की दो दर्जन महिलाएं आत्मनिर्भर हो गई थी. लेकिन कोरोना काल में केन्द्र के बंद होने से इन महिलाओं की परेशानियां बढ गई है. उल्लेखनीय है कि एक दशक पूर्व डुमरिया बुजुर्ग गांव की एक महिला इन्दु देवी ने पहल करते हुए सूत काटने की परंपरा शुरू की थी.
मामले पर भागलपुर जिला खादी ग्राम उद्योग के अध्यक्ष सत्येन्द्र प्रकाश का कहना है कि फरवरी माह तक समृद्ध खादी भंडार डुमरिया बुजुर्ग का केन्द्र चला था. मार्च में केन्द्रीय खादी ग्रामोद्योग पूनी संयत्र हाजीपुर से पूनी लाकर केन्द्र को देना था. लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन के बीच कार्य को गति नहीं मिल सकी. साथ ही वे बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद केन्द्र में फिर से काम चालू हो जाएगा. साथ ही उन्होंने बताया कि भागलपुर प्रशासन से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कार्य शूरू करने के लिए अनुमति मांगी गई है. लेकिन फिलहाल इस तरह का कोई निर्देश नही मिला है.
समृद्ध खादी भंडार, डुमरिया बुजुर्ग की रही है एक अलग पहचान
समृद्ध खादी भंडार डुमरिया बुजुर्ग केन्द्र का संचालन भागलपुर जिला खादी ग्राम उद्योग के अंतर्गत होता है. बताया जाता है कि अन्य केंन्द्रो की अपेक्षा इस केन्द्र की महिलाएं कम समय में चरखा से अधिक सूत काट लेती है. जहां से सूत को सुल्तानगंज खादी भंडार लाया जाता है तथा वहां बुनकर के द्वारा गमछा, लुंगी, धोती आदि तैयार की जाती है.
आत्म निर्भर योजना से जगी एक नई आस
कोरोना काल में केन्द्र सरकार ने आत्म निर्भर योजना के तहत विभिन्न क्षेत्रो के लिए पैकेज की घोषणा की है. खादी ग्रामोद्योग से जुड़े लोगों का मानना है कि इस योजना से एक नई आस जगी हैं. स्वदेशी वस्तु को बढ़ावा देने की कड़ी में खादी ग्रामोद्योग भी महत्वपूर्ण है. साथ ही बताया जाता है कि खादी आज भी भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में प्रासंगिक है. इसके माध्यम से बेरोजगारी दूर करते हुए लोगों को आत्मनिर्भर भी बनाया जा सकता है.
सूत काटने में माहिर है इस केन्द्र की महिलाएं
भागलपुर जिला खादी ग्राम उद्योग के सचिव बरूण कुमार एवं समृद्ध खादी भंडार, डुमरिया बुजुर्ग केन्द्र के मैनेजर पंचानंद शर्मा ने बताया कि इस केन्द्र की महिलाएं चरखा से सूत काटने में काफी माहिर है. यदि पूनी की उपलब्धता सुलभ कर दिया जाये तो इस केन्द्र की मजदूरी हर माह पचास हजार से आधिक का हो सकता है. साथ ही उन्होंने बताया कि सूत काटने वाली महिलाओ की मजदूरी सीधे उनके खाते में दी जाती है और केन्द्र के कामगारों को फरवरी माह तक का भुगतान किया जा चुका है.
सूत काटने वाली महिलाओं ने लगाई सरकार से गुहार
सूत काटने वाली महिलाओं इन्दु देवी, भारती देवी, माला देवी, रूपकला देवी, सुगनी देवी, रेणू देवी, लीला देवी, मीना देवी, गुंजन देवी, चांनो देवी, सुधा देवी, जोगा देवी, सुमा देवी, जागो देवी, चानो देवी, पुष्पा देवी, डीम्पल देवी, सरमिष्टि देवी, शिरोमणि देवी, शुभा देवी, अंजनी देवी आदि ने बताया कि लॉकडाउन में काम बंद होने से उनलोगों को विकट परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा है. साथ ही कामगारों ने सरकार से सहायता राशि की मांग किया है.
आजादी के आंदोलन में चरखे की रही थी अहम भूमिका
आजादी के आन्दोलन के दौरान चरखा की अहम भुमिका रही थी. उस वक्त घर क पुरुष वर्ग अमूमन स्वतंत्रता संग्राम में व्यस्त रहते थे और घर की महिलायें चरखा पर सूत काट कर अपने घर का संचालन करती थी. आंदोलन के दौरान चरखा न केवल परिवार को आत्मनिर्भर होने में सहयोग करता था बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को अंग्रेजी हुकुमतों से मुक्त करने का एक माध्यम भी रहा था.