व्यंग्य : पुल प्रकरण बनाम माथा – पच्ची जांच आयोग
लाइव खगड़िया (विनोद कुमार विक्की) : जनता से अभियंता तक सभी चिंतित हैं, चिंता लाजिमी है. आखिर विकास पानी में जो बह गया था. अरबों रुपए की लागत से तैयार होने वाला पुल बनने से पहले ही नदी में ढह गया. पिछले साल हवा में उड़ गया था, इस साल जल में मिल गया. निर्माण एजेंसी बचाव और सरकार बयान की तैयारी में जुट गए. रही बात जनता की, तो क्षेत्रीय जनता ने विकास ना सही लेकिन पुल के सुपर स्ट्रक्चर के रूप में विकास का ट्रेलर तो देख ही लिया था. सदियों से बिना पुल के रह रहे हैं, दो-तीन दशक और नाव डेंगी से गुजारा कर लेंगे तो कौन सा मंगल ग्रह पर जीवन का लोप होने वाला है. वैसे भी जनता नामक जीव की सहनशीलता एमआरएफ टायर की तरह मजबूत होता है. नेताओं के आश्वासन की हवा पर दो-तीन पीढ़ियों का सफर तो ये आराम से काट ही लेते हैं.
जिस प्रकार समाज में विवाहोपरांत विदाई और सुहागरात की विधि होती है, वैसे ही हमारे देश में हादसा के पश्चात विपक्ष विलाप और जांच आयोग का गठन अनिवार्य प्रक्रिया है. अरबों रुपए का पुल गुल हो गया. मीडिया और विपक्ष का दबाव देख आनन-फानन में माथा महतो और पच्ची सिंह की दो सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया.
जांच आयोग घटनास्थल पर पहुंचती, उससे पहले ही संतरी से मंत्री तक निर्माण एजेंसी की तात्कालिक सेवा पहुंच गई. पुल का पाया जल में एवं माया माननीयों के महल में.
“यह तो हद हो गया माथा भाई, भारतीय मुद्रा की तरह सारा पुल ही भरभराकर गिर गया…” घटनास्थल का मुआयना करते हुए पच्ची सिंह ने अपनी उत्सुकता जाहिर की. “सच कहते हो भाई राजधानी में बेटियां और इस प्रदेश में पुल तो बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है…. लोहा का पुल हो तो चोरी होने में और कंक्रीट का हो तो गोताखोरी करने में विलंब नहीं करता भाई…”माथा महतो ने अपना अनुभव साझा किया. घंटों स्थल एवं निर्माण मैटेरियल का निरीक्षण कर माथा-पच्ची ने अपना रिपोर्ट तैयार किया. जांच आयोग एवं पदाधिकारियों द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया गया.
“सर अरबों रुपए का पुल स्ट्रक्चर आखिर कैसे गिर गया”? पहला प्रश्न बाल की खाल न्यूज चैनल के पत्रकार ने किया.
देखिए सृष्टि और संहार तो प्रकृति का नियम है, इंसानी जीवन का कोई भरोसा नहीं यह तो कृत्रिम पुल मात्र है… माथा महतो ने जवाब दिया.
“तो इसमें सरकार दोषी है या निर्माण एजेंसी…?”
अगला प्रश्न कह के लूंगा मीडिया के रिपोर्टर का था.
पच्ची सिंह ने गहरी सांस ली और कहना शुरू किया-
“अपलोग भी न कमाल करते हैं. जब सरकार को पुल गिराना ही होता तो वह बनवाती ही क्यों ? और कभी सुना है कि जन्म देने वाली मां बच्चे को जन्म देने से पहले ही मार डालना चाहती हो, तो फिर निर्माण करने वाले मासूम इंजीनियर भला क्यों बनने से पहले ही पुल गिराना चाहेंगे.
तब फिर पुल गिरा कैसे ? उपस्थित सभी पत्रकार एक साथ पूछ बैठे.
वही बताने के लिए आप लोगों को बुलाया है…माथा पच्ची संयुक्त स्वर में बोले. देखिए हम गहराई से तफतीश कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पुल ना तो घटिया मैटेरियल और ना ही निर्माण एजेंसी की गलती से गिरा है. ऐसा है कि घटना वाले दिन वातावरण का तापमान बयालीस डिग्री से ज्यादा था. प्रचंड गर्मी के कारण पुल का पाया पिघल गया और सुपर स्ट्रक्चर भरभराकर गिर गया.
माथा पच्ची की बात सुन सभी मीडिया कर्मी एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. असंभव, गर्मी की वजह से पुल का पिलर कैसे पिघल सकता है ? समाजतक का रिपोर्टर पूछ बैठा.
भाई जी, जब थाना मालखाना से करोड़ों रुपए की शराब चूहा पी सकता है तो ग्लोबल वार्मिंग से पुल का पिलर नहीं पिघल सकता क्या ! माथा-पच्ची के इस बयान के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस और जांच की प्रक्रिया का संयुक्त रुप से आधिकारिक समापन कर दिया गया.