नप चुनाव : कायम रहेगी मनोहर यादव की बादशाहत या फिर…
लाइव खगड़िया : नगर परिषद चुनाव को लेकर शहर में सियासी हलचलें शुरू हो चुकी है. नगर सभापति चुनाव की प्रक्रिया बदलने के साथ ही सियासी शह और मात की बिसात पर मोहरे का खेल जारी है. घोड़े अढ़ाई कदम तो हाथी सीधे चल रहा है. लेकिन इस बीच राजनीतिक फिजां में एक सवाल भी तैर रहा है कि क्या बादशाह पूरी तरह से महफूज हैं !!
दरअसल बेताज बादशाह के तौर पर डेढ़ दशक से शहर में मनोहर कुमार यादव का राज रहा है और नगर परिषद के विगत के तीन चुनावों में वे हर बार अपनी बादशाहत साबित करते आ रहे हैं. हलांकि वर्ष 2017 के चुनाव में नगर सभापति का सीट महिला के लिए आरक्षित हो जाने के बाद उनके सामने एक नई चुनौती जरूर आई थी. लेकिन उस वक्त उन्होंने अपनी पत्नी सीता कुमारी को पहली बार चुनावी मैदान में उतारा और जीत के साथ उन्हें सभापति की कुर्सी तक पहुंचाने में मनोहर यादव कामयाब रहे थे. उसके पूर्व के दो चुनावों में मनोहर यादव खुद सभापति की कुर्सी पर आसीन रहे थे. ऐसे में 15 सालों से सीता-मनोहर की जोड़ी का नगर सभापति की कुर्सी पर कब्जा रहा है. लेकिन इस वर्ष के चुनाव में मनोहर यादव के सामने नई चुनौती है और माना जा रहा है कि यह उनके लिए नगर की राजनीति में किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं रहने वाली है.
हाल के दिनों में नगर परिषद के पूर्व सभापति मनोहर कुमार यादव ने अपनी राजनीतिक राहें बदल ली है. कल तक जाप के पप्पू यादव के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले मनोहर यादव फिलहाल राजद में हैं. लेकिन जिस राजनीतिक महत्वाकांक्षा व उम्मीद के साथ उन्होंने पार्टी बदली थी उस उम्मीद को बीते विधान पार्षद चुनाव में झटका लगा था. हलांकि राजद ने उन्हें एमएलसी चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया. लेकिन वे जीत की मंजिल तक पहुंचने से चूक गए और राजद की राह पर चलकर सियासी मंजिल तक पहुंचने की उनकी पहली कोशिश असफल रहा था. ऐसे में भविष्य की राजनीति के लिए नगर परिषद चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पार्टी के थिंक टैंक का ध्यान आकृष्ट कराने का एक अघोषित दबाब भी उनपर होगा.
मनोहर यादव को अपनी पत्नी सीता कुमारी को एक बार फिर नगर सभापति की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए नई चुनौतियों का भी सामना करना है. अब तक वे निर्वाचित वार्ड पार्षदों को अपने पक्ष में खड़ा कर इस मुकाम को हासिल करते आ रहे थे. लेकिन इस बार नगर सभापति का चुनाव सीधे आम मतदाताओं को करना है. वह भी उस दौर में जब नगर परिषद का क्षेत्र विस्तारित हो चुका है. कुल मिलाकर नगर परिषद का इस वर्ष का चुनाव सीता-मनोहर के 15 वर्षों के कार्यकाल का एक पैमाना भी होगा और परिणाम ही तय कर जायेगा कि यह युगल जोड़ी नगरवासियों की उम्मीदों पर कितना खड़े उतर पायें हैं.