नहाय खाय के साथ सूर्योपासना का चार दिवसीय लोक पर्व ‘छठ’ शुरू
लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : लोक आस्था का महान पर्व ‘छठ’ सोमवार को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया. प्राचीन धार्मिक संदर्भ पर यदि दृष्टि डालें तो यह पूजा महाभारत काल के समय से देखा जा रहा है. मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव भगवान की बहन है और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती हैं.
चार दिवसीय पूजा का पहला दिन नहाय खाय
छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन ओर महत्वपूर्ण पर्व है. जो कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से आरंभ होता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी संपन्र होता हैं. इस दौरान छठ व्रती 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं और व्रत समाप्ति के बाद ही अन्न एवं जल ग्रहण करती हैं.
दूसरे दिन मंगलवार को खरना
खरना पूजन के साथ ही घर घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है. मंगलवार की रात्रि में खरना पूजन किया जाएगा. जिसमें पवित्रता एवं सादगी का विशेष महत्त्व है. इस दौरान छठ मैया पर आधारित लोकगीतों से माहौल भक्ति मय बना जाता है. खरना पूजन में प्रसाद के रूप में गन्ने की रस से बनी चावल की खीर, घी पूरी, चावल का पिट्ठा बनाकर छठ व्रती भगवान को भोग लगाते हैं. इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है. खरना का प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत छठ व्रती 36 घंटा निर्जला उपवास में रहेगी.
तीसरे दिन बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को छठ का प्रसाद बनाया जाता है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल का लड़ूआ एवं फल शामिल होता है. इस दिन शाम में बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और फिर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाट की ओर चल पडते हैं. सभी छठ व्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इक्ट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान करते हैं. वहीं छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती हैं और भगवान सूर्य को जल एवं दूध का अर्घ्य दिया जाता है.
चौथे दिन गुरूवार को उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य
चौथे दिन गुरूवार को उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. उस दिन व्रती पुनः वहीं इक्ट्ठा होते हैं, जहां उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था. फिर पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है. जिसके साथ ही पूजा संपन्न हो जाता है. जिसके बाद वर्ती घर आकर शरबत पीकर तथा प्रसाद ग्रहण कर व्रत पूर्ण करते हैं.