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दीपावली : हुक्का-पाती खेलने व आकाश दीप जलाने की रही है पौराणिक परंपरा

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : भारत की आत्मा गांवों में बसती है और यह भी एक सच्चाई है कि बदलते परिवेश में भारतीय संस्कृति की परंपरा को गांव के लोगों के द्वारा सहेज कर रखा जा रहा है. बात यदि रोशनी का त्योहार दीपावली में हुक्का-पाती खेलने की परंपरा की करें तो आज भी गांव में यह बरकरार है. दूसरी तरफ शहर में हुक्का-पाती बनाने व खेलने की पौराणिक परंपरा धीरे-धीरे कम हो रहा या फिर बदल रहा है. जबकि गांव में आज भी दीपावली के दिन कुल देवता, खेत-खलिहान, चापाकल, तुलसी के पेड़ के लिए जूट के पौधे से निकाला गया संठी से हुक्का-पाती बनाया जाता हैं. साथ ही दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के बाद हुक्का-पाती खेला जाता है और घर में माता लक्ष्मी के आगमन हेतु विनती की जाती है. जिसके उपरांत बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है.




आकाश दीप भी सिमट गया अब छत की ऊंचाई तक

कार्तिक मास में दीपावली के मौके पर आकाश दीप जलाने की परंपरा सदियों पुरानी रही है. मान्यता है कि आकाश दीप पितरों एवं देवों की राह आलोकित करते हैं. एक वक्त था जब लोगों में होड़ मची रहती थी कि दीपावली के समय किसका आकाश दीप सबसे ऊंचा होगा. लेकिन अब आकाश दीप भी छत की ऊंचाई तक ही सिमट गया है. जबकि पूर्व में बांस के सहारे काफी उंचाई पर आकाश दीप टिमटिमाते नजर आता था. लेकिन भागदौड़ की जिन्दगी के बीच अब पुरानी परंपरा को भी भूला जाने लगा है. एक वो वक्त भी था जब आकाश दीप बांस के कमाची ओर सप्तरंग के कागजों से झमकदार बनाया जाता था. लेकिन वक्त के साथ अब बहुत कुछ बदल गया है. ग्रामीण क्षेत्र में आज भी कुछ लोग आकाश दीप बनाते हैं.लेकिन शहरी क्षेत्रों में रेडिमेड आकाश दीप खरीदकर काम चला लिया जाता है. दीपावली से छठ पूजा तक टिमटिमाते रहने वाला हवाई जहाज, दिलनुमा, स्टार, त्रिभुजाकर, गोलाकार आकृति जैसा आकाश दीप अब बहुत ही कम नज़र आता है.




आकाश दीप का इतिहास

आकाश दीप की संकल्पना त्रेतायुग में आई थी. बताया जाता है है कि राम के राज्याभिषेक के समय श्रीराम के चैतन्य से पुर्नीत वायुमंडल का स्वागत घर-घर में आकाशदीप लगाकर किया गया था.

शास्त्र के अनुसार आकाश दीप का महत्व

मान्यता रही है कि दीपावाली की कालावधि में आपमय तत्त्व-तरंगों से संबंधित अधोगामी तरंगों का उर्ध्व दिशा में प्रक्षेपण होना आरंभ होता है. जिससे वातावरण में जड़ता आकर अनिष्ट घटकों के प्रादुर्भाव में वृद्धि होने के कारण घर में जडता का समावेश होकर पूरी वास्तु दूषित कर देती है. जिसे रोकने हेतु दीपावाली के पूर्व से ही घर के बाहर आकाश दीप लगाया जाता है. जिसके तेजतत्त्व का समावेश होने से ऊर्ध्व दिशा में कार्यरत आपमय तरंगें नियंत्रित होती हैं और तेजतत्त्व की जागृतिदर्शक तरंगों का गोलाकार पद्धति से संचारण होता है.



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