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महागठबंधन के बैलेंसिंग फैक्टर मुकेश सहनी का खुद की सीट पर बैलेंस बनाना आसान नहीं – Live Khagaria
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महागठबंधन के बैलेंसिंग फैक्टर मुकेश सहनी का खुद की सीट पर बैलेंस बनाना आसान नहीं




लाइव खगड़िया : यादव बहुल खगड़िया संसदीय सीट पर महागठबंधन ने वीआईपी के मुकेश सहनी को अपना उम्मीदवार बनाया है.सन ऑफ मल्लाह के नाम से मशहूर मुकेश सहनी को राजनीतिक विश्लेषक बिहार की राजनीति में बैलेंसिंग फैक्टर के तौर पर देखते हैं.निषाद जाति के हितों की मांग उठाकर मुकेश सहनी अपनी जाति के एक नेता के तौर पर उभड़े और फिर पिछले साल नवंबर में उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी का गठन कर लिया.जानकार बताते हैं कि बिहार में 10 प्रतिशत आबादी वाले निषाद समुदाय कम से कम एक दर्जन लोकसभा सीटों पर निर्णायक की भूमिका निभाते रहे हैं.शायद यही वजह रही है कि महागठबंधन ने उन्हें तब्बजों दी और महज 5-6 माह पुरानी एक पार्टी को लोकसभा चुनाव में तीन सीटें मिल गई.लेकिन वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी को एक उम्मीदवार के रूप में खगड़िया संसदीय सीट पर महागठबंधन के वोट बैंक को सहेज कर रखना इतना आसान भी नहीं होगा.हलांकि खगड़िया संसदीय क्षेत्र के जातिय समीकरण का कोई प्रमाणिक आंकड़ा मौजूद नहीं है.लेकिन बिहार की राजनीति में जातिय आंकड़ा रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विरेन्द्र यादव के रिकॉर्ड पर यदि विश्वास करें तो खगड़िया लोकसभा क्षेत्र में यादव वोटरों की संख्या 16.44 प्रतिशत, मुसलमान 12.09 प्रतिशत, ब्राह्मण 2.07 प्रतिशत, राजपूत 3.16 प्रतिशत, भूमिहार 3.24 प्रतिशत, कोईरी 5.78 प्रतिशत, कुर्मी 7.29 प्रतिशत, मल्लाह 3.87 प्रतिशत, बनिया 1.72 प्रतिशत, धानुक 1.79 प्रतिशत, कलवार 1.15 प्रतिशत, तेली 4.06 प्रतिशत, रविदास 3.83 प्रतिशत, पासवान 4.76 प्रतिशत और मुहसर वोटरों की संख्‍या 6.20 प्रतिशत है.हलांकि इस जातिगत समीकरण पर कमोबेश का विवाद हो सकता है.लेकिन इतना तो माना ही जा सकता है कि यादव बहुल इस संसदीय क्षेत्र में मुसलमान सहित कोईरी व कुर्मी मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है.बात यदि 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो उस चुनाव में राजद के ‘माय समीकरण’ में एनडीए समर्थित लोजपा के प्रत्याशी चौधरी महबूब अली कैसर सेंधमारी करने में सफल रहे थे.सेंट्रल हज कमेटी के अध्यक्ष महबूब अली कैसर एक बार फिर यहां से लोजपा के प्रत्याशी हैं.ऐसे में माना जा सकता है कि इस बार भी वे मुस्लिम समुदाय के वोट बैंक को अपनी तरफ मोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.यदि वे इसमें सफल होते हैं तो वीआईपी उम्मीदवार मुकेश सहनी की राह कठिन हो जायेगी. विगत लोकसभा चुनाव में राजद की प्रत्याशी रही कृष्णा कुमारी यादव की खामोशी भी मुकेश सहनी के लिए परेशानियों का सबब बन सकता है.कृष्णा कुमारी यादव पूर्व विधायक रणवीर यादव की पत्नी हैं.जिनका क्षेत्र में अपना एक अलग प्रभाव रहा है.इस बार भी कृष्णा कुमारी यादव का नाम राजद से उम्मीदवारी के मामले में सबसे आगे रहा था.लेकिन महागठबंधन में खगड़िया की सीट वीआईपी के कोटे में चले जाने से उनकी उम्मीदों पर पानी फेर गया.पिछले पांच सालों से राजद के झंडे को बुलंद करने वाली कृष्णा कुमारी यादव का पार्टी से निष्कासन उनके जले पर नमक छिड़कने के समान था.हलांकि महागठबंधन से उम्मीदवार घोषित होने के बाद मुकेश सहनी ने उनसे मिलकर चुनाव में उनका समर्थन प्रात करने की कोशिश जरूर किया.लेकिन राजद से निष्कासन के संदर्भ में उन्होंने जो शर्त रख दी उसे चुनाव के पूर्व पूरा कर पाना मुकेश सहनी के लिए आसान नहीं दिखता.ऐसे में कृष्णा फैक्टर भी मुकेश सहनी के जीत की राह में कांटा बनकर सामने आ सकता है.




खगड़िया संसदीय क्षेत्र राजद की परंपरागत सीट मानी जाती रही है और कई मौके पर यहां राजद से यादव उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया है.राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं पर यदि विश्वास करें तो चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले स्थानीय यादव समुदाय के नेता आंतरिक तौर पर कदापि नहीं चाहेंगे कि वे यादव बहुल क्षेत्र में किसी गैर-यादव उम्मीदवार के जीत के मार्ग को प्रशस्त कर अपने भविष्य की चुनावी राजनीति के लिए एक बाधा तैयार कर लें.दूसरी तरफ महागठबंधन के एक प्रमुख घटक दल कांग्रेस से डॉ चंदन यादव का नाम भी इस सीट से उम्मीदवारी को लेकर काफी चर्चाओं में रहा था.हलांकि पार्टी की गाइड लाइन अपनी जगह है.लेकिन गैर-यादव की उम्मीदवारी चुनाव में क्षेत्र के यादव मतदाताओं के जोश को बरकरार रख पाता है या नहीं,यह देखना दीगर होगा.साथ ही हाल के दिनों में विभिन्न दलों द्वारा पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का चुनावी राजनीति से अलग करने का दर्द भी वक्त-वेवक्त सामने आने लगा है और कई मौकों पर स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा भी उछलता हुआ देखा गया है.मुकेश सहनी मूल रूप से दरभंगा जिले के हैं.तेज होती चुनावी माहौल के बीच यदि यह मुद्दा गर्म हुआ तो महागठबंधन के प्रत्याशी के लिए एक नई मुसीबत साबित हो सकता है.बावजूद इसके चुनाव में फतह हासिल करने के लिए मुकेश सहनी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है.बीते दिनों उनके पोस्टर लगी एक वाहन से लाखों रूपये की बरामदगी भी कई सवाल छोड़ गया है.हलांकि महागठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में तेजस्वी यादव,उपेन्द्र कुशवाहा,जीतन राम मांझी आदि जैसे नेता सभा कर मतदाताओं को गोलबंद करने का प्रयास कर गये हैं और निषाद समाज में मुकेश सहनी के उम्मीदवारी को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है.बहरहाल ऊंट किस करवट बैठता है यह तो वक्त ही बतायेगा.लेकिन फिलहाल मतदाताओं की खामोशी के बीच उनके मिजाज को आंकना इतना आसान भी नहीं दिख रहा.लेकिन इतना तो माना ही जा सकता है कि महागठबंधन समर्थित प्रत्याशी के तौर पर वीआईपी के मुकेश सहनी का खगड़िया संसदीय सीट से जीत की राह बहुत आसान भी नहीं रहने वाली है.


 

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