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भक्ति भाव से ओतप्रोत छठ लोकगीत माहौल को बना रहा और भी भक्तिमय

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : छठ में प्रसाद बनाते समय,खरना के समय,अर्घ्य के लिए जाने-आने के वक्त,अर्घ्य दान के समय आदि जैसे विभिन्न अवसरों पर सुमधुर व भक्ति-भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं.वैसे तो दीपावली के बाद से ही घर-घर में व्रती छठ गीत गुनगुनाने लगते हैं.इन भावपूर्ण भक्ति गीतों से माहौल बिल्कुल ही भक्तिमय हो जाता है.



ऐसे ही कुछ खास छठ गीतों को भी सुनें :

“केलवा जे फरेला घवद से…ओह पर सुगा मेड़राय”

इस गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है.तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी.जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे.बावजूद इसके तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है.ऐसे में उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी ? कैसे सहे इस वियोग को ? अब तो सूर्यदेव उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते.उसने आखिर पूजा की पवित्रता को नष्ट कर दिया है.यह लोक गीत इस पर्व में पवित्रता का खास संदेश देता हुआ प्रतित होता है.

“कांच ही बांस के बहंगिया…बहंगी लचकत जाए”

“सेविले चरन तोहार हे छठी मइया…महिमा तोहर अपार”

“ऊगा हो सुरुज देव”

“निंदिया के मातल सुरुज अंखियो न खोले हे”



भगवान सूर्य आरोग्य देवता 

पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था.सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी.ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका विशेष प्रभाव पाया था.संभवतः यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो.भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था. इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी. जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था.

भक्ति भाव से आराधना का पर्व

छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है.जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है.हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है.सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं.छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है.प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है.



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