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विद्या व संगीत की देवी के आराधना का दिन है बसंत पंचमी




लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : इस वर्ष सरस्वती पूजा 10 फरवरी को है और पूजा की तैयारियों में सरकारी व प्राईवेट स्कूल सहित सार्वजनिक व निजी स्थलों के आयोजक जुट गए हैं. एक तरफ मूर्ति कलाकार प्रतिमा को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं तो दूसरी तरफ पूजा पंडाल निर्माण को लेकर गहन मंथन जारी है.खास तौर पर पूजा को लेकर छात्र-छात्राओं के बीच उत्सव का माहौल देखा जा रहा है.माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है.माना जाता है कि विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव इसी दिन हुआ था.इसलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है.हिंदूओं के पौराणिक ग्रंथों में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है और नए काम की शुरुआत के लिए यह बहुत ही मंगलकारी माना जाता है.

बसंत पंचमी के संदर्भ में पौराणिक कथा

ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना तो कर दी लेकिन वे इसकी नीरसता को देखकर असंतुष्ट थे. फिर उन्होंनें अपने कमंडल से जल छिटका जिससे धरा हरी-भरी हो गई व साथ ही विद्या, बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी प्रकट हुई.ब्रह्मा जी ने आदेश दिया कि इस श्रृष्टि में ज्ञान व संगीत का संचार कर जगत का उद्धार करो. तभी देवी ने वीणा के तार झंकृत किया जिससे सभी प्राणी बोलने लगे,नदियां कलकल कर बहने लगी, हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुए संगीत पैदा कर दिया. तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती पूजी जाने लगी.

इसलिए है खास बसंत पंचमी

•बसंत पंचमी के दिन को माता पिता अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत के लिए शुभ मानते हैं.

•बच्चों को उच्चारण सिखाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है.

•6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है.

•बसंत ऋतु प्रेम की रुत मानी जाती है और कामदेव अपने बाण इस ऋतु में चलाते हैं. इस लिहाज से अपने परिवार के विस्तार के लिए भी यह ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसलिए बसंत पंचमी को परिणय सूत्र बंधन के लिए भी शुभ माना जाता है और बहुत से युगल इस दिन अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं.

•गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता हैं.




ऐसे करें बसंत पंचमी में पूजा

प्रात:काल स्नानादि कर पीले वस्त्र धारण करें.मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात क्लश स्थापित कर भगवान गणेश व नवग्रह की विधिवत पूजा करें.फिर मां सरस्वती की पूजा करें. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं. फिर माता का श्रंगार कराएं.माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं.प्रसाद के रुप में खीर अथवा दूध से बनी मिठाईयां चढा सकते हैं और श्वेत फूल माता को अर्पण किये जा सकते हैं.

विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों के बीच कलम व पुस्तकों का दान करें.

संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें.

मंत्र

“या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्तावृता या वीणावरदण्डमणि्डकर या श्वेपद्धासना या ब्रह्मच्यूत शंकर प्रभृतिभिदैव: सदा वन्दिता सा माँ पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाडयापहा” वीणावादिनी  मंत्र का जाप करना चाहिए.

विश्वविद्यालय पंचांग के आधार पर पंडित कृष्णकांत झा के अनुसार पूजा का शुभ मुहूर्त

बसंत पंचमी – 10 फरवरी (रविवार)

पूजा का मुहूर्त – प्रातः 07.15 से 12.52 तक

पंचमी तिथि का आरंभ – शनिवार रात्रि 08.26

पंचमी तिथि समाप्त – रविवार रात्रि  09.27 तक

वसंत पंचमी के साथ वसंत ऋतु का आगाज 

खेतों में सरसों फूली हो,आम की डाली बौर से झूली हों,जब पतंगें आसमां में लहराती हैं,मौसम में मादकता छा जाती है,तो रुत प्यार की आ जाती है,जो बसंत ऋतु कहलाती है.” सिर्फ खुशगवार मौसम, खेतों में लहराती फसलें व पेड़-पौधों में फूटती नई कोपलें ही बसंत ऋतु की विशेषता नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के उल्लास, प्रेम के चरमोत्कर्ष , ज्ञान के पदार्पण, विद्या व संगीत की देवी के आराधना का त्योहार भी बसंत ऋतु में मनाया जाता है.

इसी दिन जगत की नीरसता को खत्म करने व समस्त प्राणियों में विद्या व संगीत का संचार करने के लिए मां देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था.इसलिए इस दिन शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थानों में मां सरस्वती की विशेष रुप से पूजा की जाती है और देवी से प्रार्थना की जाती है कि वे अज्ञानता का अंधेरा दूर कर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें.इसी दिन से फगुआ का गीत ग्रामीण इलाकों में गाए जाने लगते हैं और अबीर-गुलाल भी लोग लगाना शुरू कर देते हैं.



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