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प्रसंग विशेष : जफर बासा की घटना को दोहरा गया दुधैला

लाइव खगड़िया : अपराधियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए जिले के पसराहा थानाध्यक्ष आशीष कुमार सिंह का अंतिम संस्कार रविवार को उनके पैतृक गांव सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर थाना क्षेत्र के सरोजा में राजकीय सम्मान के साथ किया गया.शहीद हुए दारोगा को मुखाग्नि उनके सात वर्षीय पुत्र शौर्यवीर ने दिया और इसके साथ ही वहां गमगीन हुए माहौल को शब्दों में नहीं उतरा जा सकता है.मौके पर सिमरी बख्तियारपुर के डीएसपी मृदुला सिन्हा की मौजूदगी में पुलिस के जवानों ने शहीद को सलामी दी.इसके पूर्व बिहार सरकार के मंत्री दिनेश चंद्र यादव,पूर्व विधायक अरुण कुमार यादव आदि भी पहुंच कर शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित किया और पीड़ित परिवार को सांत्वना दिया.इस बीच शहीद के अंतिम संस्कार के मौके पर जिले के वरीय पदाधिकारियों के नहीं पहुँचने पर भी चर्चाएं होती रही थी.लेकिन शाम सहरसा डीएम शैलेजा शर्मा के नेतृत्व में प्रशासनिक टीम का शहीद के गांव पहुंचने की खबर है.

उल्लेखनीय है कि शुक्रवार की देर रात खगड़िया-नवगछिया पुलिस जिला के सीमावर्ती इलाके के दुधैला दियारा में दिनेश मुनि गिरोह के साथ हुए मुठभेड़ में पसराहा थानाध्यक्ष आशीष कुमार शहीद हो गए थे.हालांकि घटना के बाद सूबे के वरीय पुलिस अधिकारीयों के द्वारा उनकी शहादत बेकार नहीं जाने देने और अपराधियो को मुंहतोड़ जवाब देने की बातें कही गई.लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि जिले के सीमावर्ती दियारा इलाके में पुलिस की वर्दी पर अपराधियों के द्वारा खून की होली खेलने की यह कोई पहली घटना नहीं थी.करीब दो दशक पूर्व भी खगड़िया-सहरसा सीमावर्ती दियारा क्षेत्र में अपराधियों की गोली से डीएसपी सतपाल सिंह शहीद हो गए थे और मामले के मुख्य अभियुक्त की गिरफ़्तारी में पुलिस को वर्षों का लंबा वक्त लग गया था.इस घटना के बाद आरोपी रातो-रात अपराध की दुनिया का एक चर्चित नाम बन गया था.साथ ही साथ उनके आतंक का साम्राज्य भी बढ़ता गया.ऐसे में शायद यह कहना अनुचित नहीं होगा कि अतीत की घटना से सबक लेकर पुलिस प्रशासन दुधैला कांड के अभियुक्तों को शीघ्र सलाखों के अंदर पहुंचा कर ही उस सफर को मुकाम दे सकते हैं जिस सफर में एक जाबांज ने अपनी जान लूटा दी और यह ही शायद शहीद दारोगा आशीष कुमार सिंह के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी.हलांकि सीमावर्ती दियारा क्षेत्रों में पुलिस की संयुक्त छापेमारी अभियान जारी है.

यादों के झरोखे में डीएसपी हत्याकांड :

खगड़िया-सहरसा सीमावर्ती क्षेत्र के बनमा ओपी के नौनहा गांव के जफर बासा पर 7 दिसंबर 1998 को घातक हथियारों से लैस करीब एक दर्जन अपराधियों के जमा होने की सूचना पर तत्कालीन डीएसपी सतपाल सिंह कुछ पुलिस बल के साथ नौनहा गांव पहुंचते है और देर रात तक अपराधियों की घेराबंदी करते हुए सुबह अपराधियों को आत्मसमर्पण करने को कहा जाता है.लेकिन आधुनिक हथियारों से लैस अपराधियों के द्वारा पुलिस पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी जाती है.ऐसे में डीएसपी एवं पुलिस बल के द्वारा भी जबावी फायरिंग की जाती है.इसी क्रम में अपराधियों कि एक गोली हवलदार गणेश रजक को जा लगती है.पुलिस संभल पाती इसके पूर्व ही एक गोली डीएसपी सतपाल सिह को भी लग जाती है और डीएसपी शहीद हो जाते हैं.

डीएसपी सतपाल सिह की हत्या में कुसमीही गांव निवासी जाहिद उर्फ कमाण्डों का नाम आने के बाद वे रातों रात अपराध की दुनिया में चर्चित हो जाते हैं.फ़ौज से भागें इस अपराधी की अपराध जगत में तूती बोलने लगती है.जिसके बाद वे अपने भाईयों के साथ मिलकर एक से बढ़कर एक अपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं.हलांकि वर्ष 2001 में कमांडो पुलिस की गिरफ्त में आ गया था लेकिन अगले ही साल जेल में सुरंग बना कर भाग निकलता है.आखिरकार फिर वो वर्ष 2009 में पटना में एसटीएफ के हत्थें चढ़ गया.मामले में सहरसा न्यायालय के द्वारा 31 मार्च 2010 को उन्हें फांसी कि सजा सुनाई गई.लेकिन उच्च न्यायालय ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.जबकि इस घटना के कुल 64 आरोपियों में से दर्जनों साक्ष्य के अभाव में बरी हो गये और दो दशक के बाद भी कई आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं.

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