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ढ़िशुम…ढ़िशुम… 21 वर्षों से अपने हक के लिए सिस्टम से लड़ रहा एक सैनिक

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : अमूमन किसी सैनिक का युद्ध के मैदान में लड़ाई के चर्चे आम होते हैं. लेकिन यह कहानी है एक सैनिक का सुस्त व शिथिल सिस्टम के विरूद्ध लड़ाई की. सच्चाई यह भी है कि करीब दो दशक की जद्दोजहद के बाद भी सिस्टम की नींद नही खुली है और जंग अभी जारी है.

दरअसल, बिहार सरकार के खास महाल नीति 1953 के अनुसार भारतीय सेना में सेवा देने वाले भूमिहीन (जिसे 50 डिसमिल से कम जमीन हो) सैनिक को खेती के लिए दो एकड़ एवं आवास के लिए 12‌ डिसमिल भूमि बंदोवस्ती करने का प्रावधान है. जो कि जिला पदाधिकारी के द्वारा किया जाना है. इसी नियम के तहत जिले के परबत्ता प्रंंखड के सौढ उत्तरी पंचायत के सतीश नगर निवासी थल सेना के सूबेदार इन्द्रदेव कुमार भूषण ने वर्ष 2002 में परबत्ता के अंचल अधिकारी को आवेदन देकर नियमानुसार खेती के लिए गैरमजरुआ जमीन की बन्दोबस्ती करने का आग्रह किया था. लेकिन उनका आवेदन वर्षों तक फाइलों में धूल फांकती रही और 14 वर्षों के बाद भी नतीजा ढ़ाक का तीन पात निकला. ऐसे में थक हारकर सैनिक ने वर्ष 2016 में अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष मामला दर्ज कराया. लोक शिकायत निवारण में सुनवाई के दौरान परबत्ता के अंचल अधिकारी ने प्रतिवेदित देते हुए बताया कि परिवादी के द्वारा जिस खेसरा का जमीन आवेदन में जिक्र किया गया है, वह सरकार तथा पूर्व के जमींदार के द्वारा पहले ही बन्दोबस्त कर दिया गया है. अंततः लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने 19 अगस्त 2016 को लोक प्राधिकार सह अंचल अधिकारी को निर्देशित करते हुए इस वाद को समाप्त कर दिया कि परिवादी को किसी अन्य गैरमजरूआ भूमि बन्दोबस्त कर एक माह के भीतर सूचित किया जाय. माह भर बाद भी इस आदेश का अनुपालन नहीं होने पर परिवादी ने जिला स्तरीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष परिवाद दर्ज कराया. जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने भी 20 दिसम्बर 2016 को परिवादी के पक्ष में आदेश पारित करते हुए वाद को समाप्त कर दिया. जिसके पश्चात परिवादी ने जिला पदाधिकारी के समक्ष अपील दायर कर न्याय की गुहार लगाई. जिला पदाधिकारी ने बीते वर्ष 2017 को परिवादी के पक्ष में आदेश पारित करते हुए गोगरी अनुमंडल के भूमि सुधार उप समाहर्ता को कार्रवाई करने का आदेश दिया. बावजूद इसके नतीजा शून्य रहने पर परिवादी ने मुंगेर के प्रमंडलीय आयुक्त के समक्ष आवेदन दिया. दिनांक 11 फरवरी 2018 को प्रमंडलीय आयुक्त ने इसे मामले में परिवादी के दावा को स्वीकार करते हुए आदेश पारित किया कि इस मामले में जिला पदाधिकारी के स्तर से निर्णय लिया जाना है. बाद में सैनिक ने राजस्व विभाग के सचिव को आवेदन दिया तथा सचिव ने 13 अप्रेल 2018 को आदेश पारित कर परिवादी के दावे की पुष्टि किया. लेकिन जमीनी स्तर पर कोई सकारात्मक पहल नहीं होने पर परिवादी ने संयुक्त सचिव को आवेदन दिया. संयुक्त सचिव के द्वारा 24 जुलाई 2018 को आदेश पारित किया गया. लेकिन फिर भी जमीन बन्दोबस्त करने या दूसरी जमीन को ढूंढकर बन्दोबस्त करने की कार्यवाई नहीं हुई. जिसके बाद सैनिक मामले को लेकर प्रधान सचिव को आवेदन दिया और कोई कार्रवाई होने पर उन्होंने पीएमओ कार्यालय को भी तीन बार लिखा. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी आवेदन दिया गया.

इधर मामले में अपर समाहर्ता खगड़िया के पत्रांक 2453 दिनांक 4 दिसंबर 21 में कहा गया है कि बंदोबस्ती वाद संख्या 1/16-17 (परबत्ता अंचल) अनुशंसा के साथ प्राप्त हुआ है. पूर्व में जो जमीन का प्रस्ताव भेजा गया था, वह विवादित था. जिसके कारण बंदोबस्ती नहीं हो सका. पुन: अंचलाधिकारी के प्रतिवेदन अनुसार आवेदक के द्वारा प्रेषित आवेदन में 6 डिसमिल आवासीय जमीन दिए जाने हेतु सहमति व्यक्त किया गया. जिसके बाद मामला तस का तस पड़ हुआ है. सैनिक इन्द्रदेव भूषण बताया है कि 24 बार विभिन्न स्तर पर जमीन बंदोबस्ती करने का निर्देश उच्च पदाधिकारी ने खगड़िया प्रशासन को दिया. ‌लेकिन 21 वर्षों के बाद भी उन्हें जमीन प्राप्त नहीं हो सका है और प्रशासनिक स्तर से तरह-तरह के बहाने बनाये जा रहे हैं.

बहरहाल इंद्रदेव भूषण थल सेना में सिपाही से सूबेदार बन चुके हैं. बात उन दिनों की है जब वे थल सेना में भर्ती ही हुए थे और उनकी मूंछें भी नहीं निकली थी. लेकिन स्थिति यह है कि सिस्टम से अपने अधिकारी की लड़ाई लड़ते-लड़ते उनकी मूंछे एवं दाढ़ी सफेद होने लगी हैं. लेकिन हौसले उनके कम नहीं हुये हैं और सिस्टम को नींद से जगाने के अपने जिद पर कायम है. इधर मामले पर परबत्ता प्रंंखड के प्रभारी अंचलाधिकारी चंदन कुमार ने बताया कि जिस जमीन पर सहमति बनी है. उसकी जांच-पड़ताल कर्मचारी के माध्यम से चल रही है. मामले की जांच के बाद ही कुछ बताया जा सकता है.

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