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इरशाद अली : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले…




लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले…वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा”. शहादत जिन्दा रहती है और शहीद अमर हो जाता है. ऐसे ही शहीदों में एक नाम जिले के परबत्ता प्रखंड अंतर्गत कुल्हरिया गांव के वीर सपूत इरशाद अली का भी आता है. शहीद लांस नायक इरशाद अली 12 जनवरी 2002 को राजस्थान में भारत-पाकिस्तान सरहद पर चौकसी के दौरान बारुदी सुरंग विस्फोट में शहीद हो गये थे और मंगलवार को उनका शहादत दिवस है. कुल्हड़िया – महेशलेट मोड़ मुख्य सड़क के बीच स्थित शहीद का कब्र आज भी युवाओं को देशभक्ति की प्रेरणा दे रहा है और इस राह से आते-जाते राहगीर उनकी शहादत को नमन करना नहीं भूलते हैं.

इरशाद अली का जन्म जिले के कुल्हरिया गांव में 5 जनवरी 1968 को एक सामान्य परिवार में हुआ था.तीन भाईयों तथा दो बहनों में दूसरे स्थान पर रहने वाले इरशाद अली ने अपनी आरंभिक शिक्षा दीक्षा जगन्नाथ राम उच्च विद्यालय सलारपुर पूरी की थी.बताया जाता है कि बचपन से ही उनमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी.जिले के कोशी कॉलेज में पढाई करते हुए वे कृषि बाजार समिति में लगाये गये सेना की भर्ती शिविर में चयनित होकर विशेष प्रशिक्षण के लिये बंगलोर चले गये. 


प्रशिक्षण के उपरांत उन्होंने थल सेना के बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप में ड्राफ्टमेंन के रुप में पदभार संभाला.इरशाद बचपन से ही नेकदिल व शांतचित् इंसान थे.सेना में रहकर भी वे शराब तथा अन्य नशा से दूर रहे.जांबाज लांस नायक इरशाद ने रुड़की, जालंधर, देहरादून, जम्मू कश्मीर आदि स्थानों पर अपनी जिम्मेदारियों का बाखुबी निर्वहन किया. लेकिन 12 जनवरी 2002 को बारूदी सुरंग विस्फोट में देश की सेवा करते हुए शहीद हो गये.

शहादत के उपरांत सेना के द्वारा उनके पार्थिव शरीर को सम्मानपूर्वक कुल्हरिया लाया गया था.जहां तत्कालीन एसडीओ तथा डीएसपी की उपस्थिति में बंदूकों की सलामी के साथ नम आँखों से उन्हें अंतिम सलामी दी गई थी. स्थानीय लोग बताते हैं कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पुराने मुंगेर जिला के परबत्ता प्रखंड का भी अतुलनीय योगदान रहा है.स्वतंत्रता के बाद भी यह क्षेत्र देश के लिए बलिदान देने की अपनी परंपरा को निभा रहा है. इस कड़ी में कुल्हरिया के इरशाद अली सहित मुरादपुर के अरविन्द झा, झंझड़ा के दिवाकर कुमार जैसे वीर सपूतों का नाम लिया जाता है. साथ ही प्रखंड सहित जिले के लोग अपने वीर सपूत की कुर्बानी को प्रति वर्ष याद कर गर्व महसूस करते रहे हैं.

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