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रात हम भी गुजारे कभी जाग कर, दास्तान आज सुनना पड़ेगा…

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : आज विश्व दिव्यांगता दिवस है और इस मौके जिले के परबत्ता प्रखंड के सियादतपुर अगुवानी पंचायत के सेवानिवृत्त शिक्षक शत्रुघ्न प्रसाद सिंह व विनिता देवी के पुत्र विकास कुमार सिंह की कहानी दिव्यांगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं माना जा सकता है. 35 वर्षीय विकास कुमार सिंह अपने दोनों पैर से लाचार हैं. लेकिन अपनी दिव्यांगता को उन्होंने कभी अभिशाप नहीं बनने दिया और शायद यही कारण रहा कि उन्होंने दिव्यांगों को मिलने वाले सरकारी योजनाओं सहित आरक्षण की तरफ कभी मुड़कर भी नहीं देखा. अपनी मेहनत व खुद के विश्वास के बल पर आज वे सुल्तानगंज के कृष्णानंद  सूर्यमल इंटर विद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक शिक्षक पद पर कार्यरत हैं. उन्होने अर्थशास्त्र सहित हिंदी से भी एमए, बीएड एवं एमएड किया है. इतना ही नहीं कार्यक्षेत्र में अपने व्यस्त दिनचर्या के बीच वो समय- समय पर आर्थिक रूप से कमजोर  छात्र- छात्राओ को नि:शुल्क शिक्षा देते रहे हैं और उनका मार्गदर्शन प्राप्त कर उनके कई छात्र सरकारी सेवा में कार्यरत हैं.




दूसरी तरफ विकास की साहित्य में भी काफी रूची रही है और उन्होंने अपने साहित्यिक प्रेम को भी कभी कम नहीं पड़ने दिया. उनके जज्बे का ही कमाल है कि दोनों पैरों से लाचार विकास के जब शब्द दौड़ते हैं तो उनकी दिव्यांगता छोटी लगने लगती है. उन्होनें हिन्दी में कविता, गजल सहित अंगिका में भी कई रचनाएं लिखी हैं और अब वे साहित्य से जुड़ी पुस्तक प्रकाशित करने की योजना बना रहे हैं. कहना अनुचित नहीं होगा कि दिव्यांग विकास कुमार सिंह का स्वाभिमान, मेहनत, लगन और जज्बा आज ना सिर्फ दिव्यांगों के लिए बल्कि विषय परिस्थितियों से जूझ रहे हर व्यक्ति के लिए एक प्ररेणा हैं.

एक नजर विकास कुमार सिंह के चंद रचनाओं पर भी…

गजल

घर से बाहर निकलना पड़ेगा तुम्हें 

आग पे आज चलना पड़ेगा तुम्हें ।

मौत से आज लड़ ना सके तुम अगर 

मौत से पूर्व मरना पड़ेगा तुम्हें ।

रात ऐसी घनी फिर न आए कभी 

दीप ऐसा जलाना पड़ेगा तुम्हें ।

साथ तेरा हमारे लिए खास है

बात यह भी समझना पड़ेगा तुम्हें ।

रोटियों की वजह से भले हम मरें

हेतु कुछ और कहना पड़ेगा तुम्हें ।

खबर में खबर तेरा छपेगा नहीं

खबर यह भी छुपाना पड़ेगा तुम्हें ।

रात हम भी गुजारे कभी जाग कर 

दासतां आज सुनना पड़ेगा तुम्हें ।

राह पर तो हजारो चले हैं मगर 

आज पत्थर हटाना पड़ेगा तुम्हें ।

कल गगन में सितारे दिखेंगे नहीं

चाँद बनके उतरना पड़ेगा तुम्हें ।

मील के हैं तो पत्थर हजारों मगर

और पत्थर लगाना पड़ेगा तुम्हें  ।




गाछ कहै छै (अंगिका)

नै काटो नै चीरो फाड़ो, हमरो में छै प्राण ।

अपनों ओछो सुख के खातिर, नै ले हमरो जान।।

पहर आठ हम खड़ा रहे छी, बारिश जाडा धूप। 

मानव के ही रक्षा खातिर,हमरो छै हर रूप ।।

                         नै काटो नै चीरो …!

प्राण वायु हम जग के दै छी, जीवन भी अनमोल ।

के जाने छै हमरे कारण,टिकलो छै भूगोल ।।

पर्यावरण के नष्ट करै में ,लगलो छै इंसान ।

पर्यावरण के रक्षा करना, हमरो छै अरमान ।।

                            नै काटो नै…!

खटिया बनबै कुर्सी बनबै, बनबै कोय पलंग ।

कोई काटी के अन्न पकाबे,कोय सेकै छै अंग।।

हमरा काटी मनुख करै छै, हमरो घर वीरान।

तै पे उच्चो फर्म बनाबै, आरो नगर दुकान ।।

                                नै काटो नै  …!

हम्में दे छी दुनिया भर के, गंध हवा फल फूल।

आरो जड़ से फुनगी तक हम,औषधि भी अनुकूल।।

चाही के भी होतै केना ,दुनिया के कल्याण ।

मानव सबकुछ जानी के भी, बनलो छै अनजान ।।

                           नै काटो नै  …!

हमरा में ही ब्रह्म बिराजे ,विष्णु आरो महेश ।

संरक्षण जे करतै हमरो ,पैतै फोल अशेष ।।

भष्मा रं नै अजमाबो सब, पाबी के वरदान ।

वेद पुराणों में लिखलो छै हमरो सब अवदान।।

                       नै काटो नै चीरो …!


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