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पांच दिवसीय दीपावली महोत्सव 25 से शुरू,जान लें हर दिन का महत्व

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : दीपावली या दिवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है. अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला इस त्योहार में धन-धान्य की देवी माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता सुखकर्ता गणेश भगवान की पूजा की जाती हैं. दीपावली को दीयों का भी त्योहार कहा जाता है. दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या की मनाई जाती है. वैसे यह त्योहार पांच दिनों तक चलता है. जिसकी शुरूआत धनतेरस के साथ होती है.




पहला दिन 25 अक्टूबर को धनतेरस

पहले दिन को धनतेरस कहते हैं. दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है. जो इस वर्ष 25 अक्टूबर को है. इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं. धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी प्राप्त हुआ था. तभी से इस दिन का नाम ‘धनतेरस’ पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई.




दूसरा दिन 26 अक्टूबर को यमदीरी

धनतेरस के बाद गांव में यमदीरी मनाया जाता हैं. जिसे छोटी दिवाली या यम चतुर्दशी भी कहा जाता हैं. इन दिन गोबर का दीप घर से बाहर दक्षिण दिशा में जलाने की परंपरा है. यह दीप यमराज को समर्पित किया जाता है.




तीसरा दिन 27 अक्टूबर को दीपावली

तीसरे दिन को ‘दीपावली’ कहा जाता है. यह मुख्य पर्व होता है. दीपावली का पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है. मान्यता है कि कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं. जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं. ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से क्षेत्र रोशन हो जाए. एक दूसरी मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान रामचन्द्रजी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर घर लौटे थे. ऐसे में श्रीराम के स्वागत के लिए उस वक्त अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाकर नगर को आभायुक्त कर दिया था. जिसके उपरांत दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा चल पड़ी.




चौथे दिन 28 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है. इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन घर के पालतू बैल, गाय, बकरी आदि अन्य पशुओं को स्नान कराकर सजाया जाता है. फिर इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनका पूजन कर पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है. इस दिन को लेकर मान्यता है कि त्रेतायुग में जब इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी थी तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांववासियों को गोवर्धन की छांव में सुरक्षित कर दिया था. बताया जाता है कि उस वक्त से ही इस दिन गोवर्धन पूजन की परंपरा चली आ रही है.




पांचवां दिन 29 अक्टूबर को भाई दूज

इस दिन को भाई दूज और यम द्वितीया कहा जाता है. भाई दूज पांच दिवसीय दीपावली महापर्व का अंतिम दिन होता है. भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है. रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को अपने घर बुलाता है जबकि भाई दूज पर बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक कर भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. इस दिन को लेकर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए पधारेंगे. साथ ही जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी. तभी से भाई दूज की परंपरा चल पड़ी. दीवाली के दिन की विशेष रूप से माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मीे पूजन किया जाता है. दीवाली के दिन गृहस्थ और व्यवसायिक वर्ग के लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते है. जबकि साधु-संत और तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने तांत्रिक कर्म करते है.


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