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नरक जाने से बचाती है यह चतुर्दशी,नरक निवारण चतुर्दशी आज




लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : नरक निवारण चतुर्दशी को लेकर रविवार को गंगा के विभिन्न तटों एवं शिव मंदिर श्रद्धालुओ की उमड़ पड़ी है. माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्व माना जाता है.जिसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता है.पुराणों के अनुसार इस तिथि पर शंकर भगवान की पूजा करने से आयु में वृद्धि होती है और इस दिन शिव का ध्यान करने से सिद्धियों की प्राप्ति होती है.इस व्रत में बेर का प्रसाद अर्पित करने का विधान है.शास्त्रों के अनुसार इस दिन पार्वती माता और भगवान शिव का विवाह तय हुआ था.

इस तिथि के ठीक एक महीने के बाद फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह संपन्न हुआ था. इसलिए यह दिन खास महत्व रखता है. वैसे तो हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार माघ और फाल्गुन माह की चतुर्दशी शंकर भगवान को सर्वप्रिय है.जिस कारण इन दोन को शिवरात्रि के समकक्ष ही माना जाता है.इस दिन शिव ही नहीं शिव के साथ पार्वती और गणेश की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है.




हिंदू धर्म के अनुसार मृत्यु के बाद अपने कर्मों के हिसाब से स्वर्ग और नरक की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार जहां स्वर्ग में मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है वहीं नरक में अपने बुरे कामों के फलस्वरुप कष्ट झेलने पड़ते हैं.इससे मुक्ति पाने के लिए यह तिथि विशेष है.इसलिए इसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता है. इस दिन विधि-विधान से पूजा करके नरक से मुक्ति मिलती है.

इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र और बेर जरूर चढ़ाना चाहिए.अगर उपवास करें तो व्रत को बेर खाकर तोड़ना चाहिए.साथ ही इस दिन रुद्राभिषेक करने से मिलने वाला फल कई गुना बढ़ जाता है.भगवान शिव का व्रत रखने वाले श्रद्धालु पूरे दिन निराहार रहकर शाम में व्रत खोलेगे.व्रत खोलने के लिए सबसे पहले बेर और तिल ग्रहण किये जाने की परंपरागत रही है.मान्यता है कि इससे पाप कट जाते हैं और व्यक्ति स्वर्ग में स्थान पाने का अधिकारी बन जाता है.



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