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उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के उपरांत सूप लूटाने की भी रही है परंपरा

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : चार दिवसीय लोक आस्था का महान पर्व छठ को लेकर जिले भर में माहौल बिल्कुल ही भक्तिमय है.साथ ही इस दौरान लोगों के बीच भाईचारा का अद्भूत नजारा देखने को मिल रहा है. 


छठ पूजा में सूप लूटाने की एक विशेष परंम्परा भी रही है.जो हर साल विभिन्न घाटों पर देखने को मिल जाता है.भक्तजन की मन्नत पूर्ण होने पर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ व्रती के हाथों सूप सहित फल व पकवान घाट के पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है.जिसे आम तौर पर सूप लूटाना कहा जाता है.जिसके उपरांत श्रद्धालुओं के बीच पानी में प्रवाहित सूप समेत उसके प्रसाद को लूटने की होड़ लग जाती है.



श्रद्धालु बताते हैं कि सादगी से भरा यह पर्व कई मायनों में अहम है.इस क्रम में भगवान सूर्य की आराधना में एकजुटता की अनुपम छटा देखने को मिलती है.मन्नत पूर्ण होने के बाद भी समान पूजन सामग्री से ही भगवान भास्कर की आराधना की जाती है.साथ ही बताया जाता है कि छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष उसकी सादगी,पवित्रता और लोकपक्ष है.भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण यह पर्व में बांस निर्मित सूप,टोकरी,मिट्टी के बर्तन,गन्ने का रस,गुड़,चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास छोड़ जाता है.शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना का व्रत है.जिसके केंद्र में वेद व पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है.जिस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता होती है और न ही पुरोहित की जरूरत पड़ती है.साथ ही पास-पड़ोस का सहयोग भी सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक मिलता है.पर्व के मद्देनजर जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है.व्रतियों के गुजरने के रास्तें का प्रबंधन से लेकर तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान तक की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता है.साथ ही पर्व के खरना से लेकर अर्घ्यदान तक समाज की उपस्थिति बनी रहती है.



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