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खरना संपन्न, अस्तचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य कल

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : लोक आस्था का महापर्व छठ के दूसरे दिन मंगलवार की रात खरना पूजन संपन्न हुआ. इस दौरान छठ मैया पर आधारित लोकगीतों से माहौल भक्ति मय बना रहा. खरना पूजन में प्रसाद के रूप में गन्ने की रस से बनी चावल की खीर, घी पूरी, चावल का पिट्ठा बनाकर छठ व्रती भगवान को भोग लगाया तथा देवी षष्ठी का आह्वान किया गया .इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा गया. खरना का प्रसाद ग्रहण कर छठ व्रती का 36 घंटा का निर्जला उपवास शुरू हो गया. 

चार दिवसीय छठ के छठ गीत से माहौल भक्तिमय बन चुका है. ‘केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय’, ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’,
‘सेविले चरन तोहार हे छठी मइया, महिमा तोहर अपार’,
‘उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर’, ‘निंदिया के मातल सुरुज आंखियो न खोले हे’, ‘चार कोना के पोखरवा,
हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी’ जैसे गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है. जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है. तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी. जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे. लेकिन फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है.

पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था. सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी गयी. ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया. सम्भवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो. भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था. इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था. 

छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. हिन्दू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं, जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है.
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं. छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है. प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है.


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