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संगीत का यह साधक कभी माथे पर साज लेकर मीलों चला करते थे पैदल

लाइव खगड़िया (मुकेश कुमार मिश्र) : “पहर हस्ती ने मुझे पार उतरने न दिया…हम तो मरते थे,मुझे आपनों ने मरने न दिया…मेरे शेरो में रोनाईयां थी खूशबू की…इन गरीबी ने मुझे,मेरे फन को उभरने न दिया”…

गजल सम्राट जगजीत सिंह एवं मेंहदी हसन को अपना आर्दश मानने वाले जिले के परबत्ता प्रखंड अंतर्गत अगुवानी डुमरिया बूजुर्ग निवासी संगीतज्ञ स्वर्गीय पंडित रामावतार सिंह के 42 वर्षीय पुत्र राजीव सिंह की मखमली आवाज राज्य के संगीत प्रेमियो के दिलो में बसती है.गजल,भजन,लोकगीत,भोजपुरी सहित फिल्मी गीतों से  संगीतप्रेमियो का दिल को जीतने वाले राजीव सिंह का जन्म वर्ष 1976 को अगुवानी डुमरिया बूजुर्ग गांव में हुआ था.प्रारंभिक शिक्षा गांव में से प्राप्त कर प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से उन्होंने संगीत से बी.ए. की डिग्री प्राप्त किया.बचपन से ही संगीत के प्रति लगाव रखने वाले राजीव सिंह अपने पिता से शास्त्रीय संगीत  एवं भजन भिखारी सम्राट स्वर्गीय फनीभूषण से सुगम संगीत की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत गीत-संगीत के दुनियां में खुद को समर्पित कर दिया.

दर्जनो पुरस्कार से सम्मानित कलाकार राजीव सिंह की मखमली स्वर सुगम संगीत एवं लोकगीत की गहराईयों में बरबस ही श्रोताओं को डूबने को मजबूर कर देेता है.उनकी इसी प्रतिभा की वजह से ही अक्सर उनका कार्यक्रम आकाशवाणी भागलपुर एवं डीडी वन टीवी चैनल से भी प्रसारित होता रहा है.भोजपुरी फिल्म “दण्ड भूमि” को उनके गीत से एक अलग पहचान मिली.भिखारी भजन सम्राट स्वर्गीय फणीभूषण के द्वारा रचित गीत व गजल को अपनी आवाज देकर संगीत प्रेमियो के दिल में बस जाने वाले राजीव सिंह दो दशक पूर्व सुलतानगंज में गजल गायन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर चुके है.




संगीत कलाकार राजीव सिंह ने लाइव खगड़िया से एक खास बातचीत के दौरान बताया कि पिता एवं गुरु भजन भिखारी सम्राट स्वर्गीय फणीभूषण के बदौलत ही वो आज इस मुकाम को हासिल कर पाये हैं.वहीं उन्होंने कहा कि संगीत की दुनियां में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए उन्हें बचपन से ही कड़ी मेहनत करनी पड़ी.इस दौरान उन्हें पिता व गुरू के साथ भी कई बार मंच साझा करने का अवसर मिला.संगीत साधना के दौरान कभी ऐसे भी वक्त आये थे जब यातायात व्यवस्था के आभाव में कार्यक्रम में शामिल होने संगीत का साज माथे पर लेकर पांव पैदल ही दस-दस किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी थी.साथ ही वो बताते हैं कि शास्त्रीय संगीत के बगैर संगीत की कल्पना नही की जा सकती है और शास्त्रीय संगीत पर पकड़ रखने वाले ही संगीत के क्षेत्र मे आगे बढ़ सकते है.’शास्त्रीय संगीत’ में ही संगीत की आत्मा भी बसती  है.




उल्लेखनीय है कि संगीत कलाकार राजीव सिंह के संगीतज्ञ पिता स्वर्गीय पंडित रामावतार सिंह से दर्जनो युवा संगीत की शिक्षा प्राप्त कर ना सिर्फ गांव बल्कि राज्य का नाम रौशन कर रहे है.कहा जाता है कि राजीव के मखमली आवाज में वो जादू है जो श्रोताओं को गजल सम्राट जगजीत सिंह,मेंहदी हसन की याद दिला जाती है.बताया जाता है कि उनके स्वर में साक्षात सरस्वती का वास है.गायन के साथ हरमोनियम के पटरी पर उनके बांये हाथ की अंगुलियां की तेजी उनकी अलग पहचान बनाती है.संगीत के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले युवाओं के लिए स्थानीय संगीत कलाकार राजीव सिंह एक प्रेरणा बनकर उभरे हैं.



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